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हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

*श्री गोलवलकर गुरुजी की राष्ट्र निर्माण दृष्टि: जैसी मैंने परखी**

    परम पूज्यनीय श्री गुरुजी की राष्ट्र निर्माण दृष्टिकोण समझने और समझाने के लिए यह तर्कसंगत होगा कि सर्वप्रथम हम उस प्रेरणा पूंज, प्रकाश स्त्रोत और आभामंडल को स्पर्श करें, जहां से श्री गुरु जी के चिंतन को पृष्ठ पोषण मिला है। श्री गुरु जी की राष्ट्र निर्माण दृष्टि का  सिंहावलोकन करते समय  अनेक अवसर पर हम पाते हैं कि उनके चिंतन में सनातन धर्म  ग्रंथों की वाणी के साथ-साथ श्री रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद तथा डॉक्टर हेडगेवार जी के राष्ट्र निर्माण स्वप्न को साकार करने की ललक व झलक दिखाई दिखाई देती है। यदि हम भक्ति पूर्वक स्वीकार करें, तो कह सकते हैं कि श्री गुरु जी का चिंतन और जीवन दर्शन सनातन धर्म के महान आदर्श को का वटवृक्ष है और एक सच्चे राष्ट्रभक्त और राष्ट्र प्रेमी के लिए अंगवार में रोपित होकर अनंत काल तक प्रस्फुटित  प्रगाढ़ होता रहेगा । जब हम श्री गुरु जी का राष्ट्र निर्माण दृष्टिकोण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दृष्टि से चिंतन- मनन करते हैं, तो यह देखकर  सुखद अनुभूति होती है कि उन्होंने तर्कपूर्ण तरीके से एक ओजस्वी, यशस्वी तथा दुर्भावना रहित सनातन धर्म की महान विशेषताओं के आधार पर हिंदू राष्ट्र निर्माण का सर्वगुण संपन्न सांचा और नक्शा प्रस्तुत किया है । यदि इक्कीसवीं सदी में भारतवासी श्री गुरु जी के चिंतन के अनुरूप साकार रूप देते हैं तो समूचा विश्व दांतो तले दबाकर कहेगा, वाह भारतवासी हिंदू समाज! तुमने अनहोनी को होनी कर डाला! तुम्हारी आने वाली पीढ़ी गर्व से कहेगी कि हम उस  हिन्द देश के वासी हैं , जहां कभी श्री गुरुजी संज्ञा प्राप्त हाड मास का जटाधारी हिंदू राष्ट्र निर्माण विचारधारा का व्यक्ति जन्मा था। जिसने भारतवर्ष के महान ऋषि मुनियों की सनातन राष्ट्र निर्माण दृष्टि को सहज, सरल और गंभीर सोच के साथ साकार रूप देने के लिए सदियों से बिखरे सनातनी समाज को संगठित कर हिंदू राष्ट्र बनाने का चिंतन और दृष्टिकोण दिया। श्री गुरु जी के समग्र वांग्मय  का अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि श्री गुरु जी तामझाम वाले आश्रम में आराम कुर्सी पर बैठकर राष्ट्र निर्माण चिंतन करने वाले दार्शनिक नहीं थे ।

उनका राष्ट्र निर्माण का चिंतन बहुआयामी है। जिसमें ‘किंतु- परंतु’और ‘यद्यपि – तद्यपि’ जैसे भ्रमित शब्दों का कोई स्थान नहीं है। श्री गुरुजी महिमा मंडित खोखले प्रचार-प्रसार के स्थान पर कर्म और धर्म में विश्वास रखते हैं और उन्होंने वैसा ही जीवन जिया, जैसा उनकी वाणी में निहित है।
श्री गुरु जी की राष्ट्र निर्माण दृष्टि और हिंदू समाज पर चिंतन इन्हीं विशेषताओं का विस्तार है और मेरे लघु शोध का मूलाधार भी यही है।
श्री गुरुजी अनूठे दार्शनिक, विचारक व कर्मयोगी महापुरुष थे। राष्ट्र निर्माण एवं राष्ट्र संचालन के प्रायः सभी पहलुओं पर उन्होंने अपने विचार प्रकट किए हैं । राष्ट्र की राजनीति, अर्थ नीति, आदर्श समाज की रचना, अस्पृश्यता निर्मूलन, मातृशक्ति आदि विषयों पर उन्होंने ऐसे समय अपना मूलगामी चिंतन प्रस्तुत किया, जब भारत विभाजन का संताप झेल रहा था। समाज में असमानता व्याप्त थी। हिंदू समाज में जाति प्रथा तथा अस्पृश्यता की भावना के कारण सनातन धर्म और भाईचारा खतरे में था। सहिष्णुता दम तोड़ रही थी और समता सामंतवाद की चौखट पर आंसू बहा रहीं थी। अंग्रेज़ी और वामपंथी परस्त हुकूमत भारत मां को लज्जित करने पर तुली हुई थी। पड़ोसी मुल्क- चीन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और म्यांमार हमारी शस्य श्यामला पर गिद्ध दृष्टि डाले हुए थे । इस विकट परिस्थिति में श्री गुरु जी ने जिस तरह अदम्य साहस का परिचय देते हुए राष्ट्रीय स्वयं संघ की सरसंघचालक की बागडोर संभाली और शेर की तरह दहाड़ मारी – “यह हिंदू राष्ट्र है और हिंदू समाज उसका पुत्र रूप समाज है, हिंदू समाज के उत्थान में राष्ट्रोत्थाना है, उसके पतन में राष्ट्र का पतन है।” 1
इस तरह का साहस केवल दिव्य पुरुष में ही होता है। श्री गुरु जी कलम, चिंतन, तथा कर्म- धर्म धनी थे। उनका एक ही ध्येय था- “राष्ट्र उत्थान और हिंदुत्व की रक्षा करना।” उनके व्यक्तित्व में भक्ति, शक्ति और मानवता का अनोखा मिश्रण देखने को मिलता है। देहधारी श्री गुरुजी के अंदर एक महान चिंतक, दार्शनिक, साहित्यकार, कवि, समाज सुधारक, राष्ट्र प्रहरी, संस्कृति वाहक और समाज समन्वय की प्रतिमूर्ति विराजमान होने के साथ-साथ उनके ह्रदय में एक ‘पौराणिक संत’ का वास था। श्री गुरु जी ने सत्य को हमेशा समाज के सामने निर्भय होकर रखा। इतिहास जब भी निरपेक्ष भाव से राष्ट्र निर्माण अभियान में भारत पुत्रों के योगदान का आंकलन करेगा, तब उसे यह मान्य करना पड़ेगा कि ‘श्री गुरुजी का राष्ट्र निर्माण दृष्टिकोण’ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, दलितों के मसीहा डॉ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर, संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद, प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, महान विचारक श्री अरविन्द, शिक्षा शास्त्री मौलाना अब्दुल कलाम आजाद आदि की तुलना में कहीं ज्यादा पवित्र था! श्री गुरु जी का दृष्टिकोण था- “अखंड भारत, महान भारत, विकसित भारत, मार्गदर्शक भारत, कालजयी भारत और इन सबसे बढ़कर हिंदुओं का भारत।”
डॉ बालाराम परमार’हंसमुख’

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