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कविता

गीता मेरे गीतों में , गीत 38 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

बौद्धिक उत्कृष्टता

जहां-जहां ‘विभूति’ है जग में और दिखा करती ‘श्री’ कहीं,
वह बनकर ‘अंश’ मेरे ‘तेज’ का , मानो जग में चमक रही।
मैं अपने तेज के कारण अर्जुन! जगत को धारण किए रहूं,
यह सृष्टि -नियम-अनुकूल बात है मानस में मेरे दमक रही।।

जो भी सृष्टि में दिख रहा उसे भगवान की विभूति कहते हैं,
प्राचीन काल से ऋषिगण उसको सादर ‘अनंत’ कहते हैं ।
सृष्टि की सीमा होने से इसको तो ‘सान्त’ बताया गया,
उस ‘अनंत’ की झलक सृष्टि में – ज्ञानी जन देखा करते हैं।।

कृष्ण ने दिव्य – दृष्टि देकर अर्जुन का था उत्कर्ष किया,
‘बौद्धिक’ पिलाया अर्जुन को , उसके मन में भर हर्ष दिया।
भगवान का भक्त बनाया अर्जुन और जीवन का बोध दिया,
‘विभूति दर्शन’ करवा कर ,उसे रण हेतु तैयार सहर्ष किया।।

भगवान की विलक्षण शक्ति को आदर से ‘विभूति’ कहते हैं,
उसकी ‘विभूति’ का अंत नहीं – ज्ञानी जन ऐसा कहते हैं।
जिनके भीतर विलक्षण शक्ति होती वे महापुरुष कहलाते हैं,
अपनी विलक्षण शक्ति से वे जग में अपना स्थान बनाते हैं।।

जिनकी पूजा जग करता वह विभूति संपन्न हुआ करते,
शंकर , गणेश, विष्णु की जग में हम इसीलिए पूजा करते।
हमने हर कंकर में ‘शंकर’ माना , उसका भी सम्मान किया,
जहां-जहां ‘विभूति’ को पहचाना – हम उसका वंदन करते।।

जड़पूजा करना ठीक नहीं पर विभूति – सम्मान करो मन से,
करके अंतर दोनों में, फिर निराकार का भजन करो मन से।
किसने रोका उन कदमों को जग में जो मंजिल की ओर बढ़े,
अपनी ही ‘विभूति’ को समझो , रगड़ो उसको गहरे मन से।।

अर्जुन ! उन्नत जीवन करने हेतु, तुम करो साधना ईश्वर की,
है तेरे पास विलक्षण शक्ति, दे भ्रान्ति मिटा अपने मन की ।
जो ना अपने को जान सका, कर पाया नहीं कुछ भी जग में,
वही मानव कुछ कर पाता है, जो समझे विभूति ईश्वर की।।

यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004

डॉ राकेश कुमार आर्य

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