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इतिहास के पन्नों से

वीरता और चातुर्य का प्रतिबिंब रानी नायकी देवी सौलंकी

– लेखक अशोक चौधरी मेरठ।
भारतीय संस्कृति में नारी का स्थान पुरुष से अधिक रहा है। राधे श्याम, सीताराम, गंगा पुत्र भिष्म,कुंती पुत्र अर्जुन,राधेय सुत कर्ण, कौशल्या नंदन राम,देवकी/यशोदा नंदन कृष्ण नाम जब लिए जाते हैं तब यह आभास अपने आप ही हो जाता है।
भारत का इतिहास भी इस बात का गवाह है जब जब हमारे सम्मान और सम्पत्ति को किसी दुष्ट ने लूटने का प्रयास किया है और इस कुत्सित प्रयास को रोकने में पुरुष वर्ग असमर्थ दिखाई देने लगा है तब उस संकट की घड़ी में नारी शक्ति ने आगे बढ़कर अपने अदम्य साहस का परिचय देकर दुश्मनों के कुत्सित इरादों को कुचल कर रख दिया है।
ऐसी ही एक घटना सन् 1178 ई मे घटी।तब गजनी के शासक मोहम्मद गोरी ने तत्कालीन समय के गुर्जर देश, जिसकी राजधानी अन्हिलवाड़ा थी,पर अधिकार करने का असफल प्रयास इसलिए किया कि उस समय गुर्जर देश का राजा मूलराज सोलंकी द्वितीय एक अल्प व्यस्क बालक था तथा उसकी माता रानी नायकी देवी कार्यवाहक राजा के रुप में राज कार्य सम्भाल रही थी।
अजमेर के शासक सम्राट सोमेश्वर चौहान के मामा अन्हिलवाड़ा के सौलंकी थे तथा सोमेश्वर चौहान गुजरात से ही अजमेर शासक बनने के बाद गये थे, परन्तु इस समय ऐसी विषम परिस्थिति थी कि अजमेर के शासक सोमेश्वर चौहान की भी मृत्यु हो चुकी थी। अजमेर का शासक भी अल्प व्यस्क सम्राट पृथ्वीराज चौहान थे, अजमेर का शासन भी कारयवाहक राजा के रूप में पृथ्वीराज चौहान की माता कर्पूरी देवी सम्भाले हुए थी और अन्हिलवाड़ा का शासन राजा मूलराज सोलंकी द्वितीय की माता नायकी देवी के हाथ में था।
सन् 961 ई मूलराज सोलंकी प्रथम ने अपने स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर ली थी। मूलराज सोलंकी प्रथम के समय इस क्षेत्र को लाट देश के नाम से जाना जाता था। मूलराज सोलंकी प्रथम ने अन्हिलवाड़ा को अपनी राजधानी बनाया तथा इस क्षेत्र को गुर्जरात्रा /गुजरात नाम दिया। भारत के शक्तिशाली गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिरभोज के पोत्र सम्राट महिपाल (सन् 912-944) के समय में ही गुर्जर प्रतिहार राजाओं की केंद्रीय शक्ति कमजोर होने लगी थी।10 वी शताब्दी के कन्नड़ साहित्य के रचयिता जैन कवि पम्प द्वारा रचित विक्रमार्जुन विजय नामक ग्रंथ में सम्राट महिपाल को गुर्जर राजा लिखा है।
सम्राट महिपाल के अंतिम समय में महोबा के चंदेल,सांभर के चौहान, चित्तौड़ के गुहिल, ग्वालियर के कच्छपघट/कछवाहे एक तरह से स्वतंत्र शासक बन गए थे।इन परिस्थितियों में ये सामंत और इनके अधिकारी अपने राज्य स्थापित करने में तल्लीन हो गये थे,इस आपाधापी में वो यह भूल गए थे कि स्वतंत्र रहने के लिए शक्ति चाहिए, शक्ति एकता मे होती है बिखराव में नही। लेकिन होनी को कौन टाल पाया है।इसी समय गुजरात के सोलंकी जो चावडा शासक के सेनापति थे ने मूलराज सोलंकी प्रथम के नेतृत्व में अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया था।इस वंश में ही आगे चलकर अजयपाल सौलंकी नाम के एक शासक हुए,जिनकी शादी इतिहासकार अशोक कुमार मजूमदार के अनुसार महोबा के चंदेल राजा परमरदी/परमाल की राजकुमारी नायकी देवी से सम्पन्न हुई। अजयपाल सन् 1171 में राजा बने, परंतु सन् 1175 में एक अंगरक्षक ने राजा अजयपाल सोलंकी की हत्या कर दी।इस परिस्थिति में अजयपाल सोलंकी के अल्प व्यस्क पुत्र मूलराज सोलंकी द्वितीय को शासक बनाया गया। राज्य का कार्य संरक्षिका के दायित्व के अनुसार रानी नायकी देवी ने सम्भाला।
सन् 1175 में मोहम्मद गोरी मुल्तान के किले पर अधिकार कर चुका था, सन् 1176 मैं चुनाब व झेलम नदी के बीच स्थित उच्च के किले पर भी मोहम्मद गोरी ने अधिकार कर लिया था।
गुर्जर देश/गुजरात एक सम्पन्न राज्य था। देश का राजा अल्प व्यस्क था,एक महिला देश की कमान सम्भाले थी।
उपयुक्त अवसर जान सन् 1178 में मोहम्मद गोरी एक बडी सेना लेकर सिंध के रास्ते से गुजरात की ओर चल दिया। मोहम्मद गोरी के आने की सूचना जैसे ही रानी नायकी देवी पर पहुची,वह सन्न रह गई।रानी ने तुरंत अपने
मंत्री परिषद को बुलाया, उसमें यह तय हुआ कि दुश्मन की सेना विशाल है, इसलिए कोई ऐसी योजना बनाई जाय जिससे शत्रु सेना से युद्ध पहाड़ी क्षेत्र में हो जाय। युद्ध के लिए आबू पर्वत की तलहटी में बसे कायन्द्रा गांव को चुना गया जो आज सिरोही जिले में आता है। इतिहास में इस युद्ध को कायन्द्रा का युद्ध भी कहा जाता है।
रानी नायकी देवी ने अपने सामंत जालौर के कीर्ति पाल चौहान,नाडौल के कल्हण चौहान और आबू के पंवार धारा वर्ष को युद्ध के लिए सूचित कर दिया।रानी ने अन्हिलवाड़ा से सभी शाही महिलाओं को नाडौल के किले में भेज दिया।रानी ने अपने आसपास के सभी राजाओं को सहायता के लिए पत्र लिखा।इस पत्र-व्यवहार के कारण नरवाला के राव ने एक युद्ध में प्रशिक्षित हाथियों की सेना सहायतार्थ भेजी।
मोहम्मद गोरी ने रानी को अपनी अधिनता स्वीकार करने तथा आत्मसमर्पण करने के लिए संधि पत्र लिखा।जिसके उत्तर में रानी ने लिख भेजा कि वह आत्मसमर्पण के लिए तैयार हैं, अपने राजा पुत्र के साथ हाथी पर आ रही है। मोहम्मद गोरी लगातार जीतता आ रहा था,उस अहंकार में वह अपने चारों ओर के खतरे को भांप ही न सका।रानी के निर्देश के अनुसार सेनापति ने मोहम्मद गोरी की सेना को चारों ओर से घेर लिया था।जब रानी युद्ध में प्रशिक्षित हाथियों की सेना के साथ एक हाथी पर अपने पुत्र के साथ सवार होकर मोहम्मद गोरी की सेना की ओर चली।तभी इशारा मिलते ही रानी की सेना ने मोहम्मद गोरी की सेना पर हमला कर दिया।रानी की सेना ने मोहम्मद गोरी की सेना को कुचल डाला। उसमें भगदड मच गई। मोहम्मद गोरी की पूरी सेना इस युद्ध में समाप्त हो गई। गोरी कुछ घुड़सवारों के साथ बडी मुश्किल से जान बचाकर भागा तथाा घायल अवस्था में मुल्तान के किले में जाकर रूका।
सन् 1305 के समय में जैन आचार्य मैनतुंग ने अपने ग्रंथ प्रबंध चिंतामणि में इस युद्ध का वर्णन लिखा है।
उस समय के लेखक अपने राजा की हार नही लिखते थे। जैसे पृथ्वीराज विजय मे पृथ्वीराज चौहान के दरबारी पं जयानक ने पृथ्वीराज चौहान की विजय का वर्णन लिखा है,हार वाले युद्ध का वर्णन नही लिखा,उसी प्रकार मोहम्मद गोरी के दरबारी लेखक हसन निजामी के द्वारा रचित ग्रंथ ताज – उल – मासिर में मोहम्मद गोरी के इस कायन्द्रा के युद्ध की हार तथा तराईन के प्रथम युद्ध की हार को नही लिखा है, तराईन के द्वीतिय युद्ध में हुई विजय को लिखा है।
कायन्द्रा युद्ध की विजेता रानी नायकी देवी को शत-शत नमन।वह भारत की नारी के शौर्य का प्रतीक है।
समाप्त।

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