Categories
समाज

आत्महत्या से कैसे बचाएं,अपने लाडले के जीवन को

मिथिलेश कुमार सिंह

खासकर, लॉकडाउन के समय सुशांत सिंह राजपूत से लेकर और भी कई सेलिब्रिटीज, यहां तक कि पूर्व सीबीआई निदेशक अश्विनी कुमार ने जिस प्रकार सुसाइड करके अपनी जीवन लीला समाप्त की, उसने हमारे समाज की कई परतें खोल कर रख दिया।

वर्तमान युग में जहां तमाम सुविधाएं बढ़ी हैं, वहीं सुविधाओं के साथ तनाव भी उसी अनुपात में बढा है। हम जहां चकाचौंध भरी जिंदगी जी रहे हैं, वहीं यह चकाचौंध भरी जिंदगी हमें और हम से अधिक हमारे लाडले को, देश के भविष्य बच्चों के हृदय को कहीं अंधकार से तो नहीं भर रही है, यह बात सोचने पर हम सब विवश हो गए हैं।

खासकर, लॉकडाउन के समय सुशांत सिंह राजपूत से लेकर और भी कई सेलिब्रिटीज, यहां तक कि पूर्व सीबीआई निदेशक अश्विनी कुमार ने जिस प्रकार सुसाइड करके अपनी जीवन लीला समाप्त की, उसने हमारे समाज की कई परतें खोल कर रख दिया। ना केवल बड़े लोग, बल्कि बच्चे भी इस प्रवृत्ति के बड़े स्तर पर शिकार हो रहे हैं। लोगों को शक होने लगा है कि कहीं उनका अपना बच्चा तो इस निराशा का शिकार नहीं हो रहां है? यह एक ऐसा फैक्ट है, जिसे आप को कतई अनदेखा नहीं करना चाहिए।

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन यानी डब्ल्यूएचओ के एक आंकड़े को आप देखेंगे तो हैरान रह जाएंगे। 15 वर्ष से लेकर 19 साल के बच्चों की मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण सुसाइड है। और टीन एजर्स के बीच जो सबसे बड़ी बीमारी हो रही है, वह है डिप्रेशन!

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, पूरे विश्व में प्रत्येक वर्ष तकरीबन 800000 लोग आत्महत्या करते हैं, अर्थात प्रत्येक 40 सेकेंड पर एक व्यक्ति। यह तो सिर्फ एक आंकड़ा है, एक दूसरे आंकड़े की बात करें जो नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो का है, तो 2019 में 139123 लोगों द्वारा आत्महत्या किया गया और इसमें भी 7.4 परसेंट संख्या सिर्फ छात्रों की थी अर्थात 10335।

यही आंकड़ा कहता है कि 18 से 30 साल की उम्र के लोगों द्वारा सर्वाधिक सुसाइड किया गया। ना केवल भारत में, बल्कि विश्व भर में इस समस्या को लेकर गहरी चिंता की लकीरें हैं।

ऐसी स्थिति में, प्रत्येक मां-बाप को बेहद सचेत होना चाहिए।

सबसे बड़ी बात यह है कि आप अपने बच्चों के कुछ लक्षणों पर बारीकी से ध्यान दें तो समस्या काफी हद तक हल हो सकती है।

जैसे क्या आपका बच्चा, किशोर, व्यस्क या घर का कोई अन्य सदस्य अकेले रहना अत्यधिक पसंद करने लगा है?

यूं कुछ देर अकेला रहना लोगों का स्वभाव भी होता है, किन्तु अत्यधिक अकेलापन कहीं ना कहीं सुसाइड के संकेतों में से एक हो सकता है। इसीलिए इसके प्रति सजग रहें।

जो व्यक्ति सुसाइड करता है. ऐसा नहीं है कि वह 1 दिन में ही यह निर्णय ले लेता है, बल्कि वह इस पर कई दिन से सोचता रहता है। आप गौर करेंगे तो महसूस होगा कि वह बातों ही बातों में निराशा की बातें करेगा। जैसे जीवन से जाने की बात, हर किसी से निराश होने की बात, या फिर आत्महत्या से संबंधित चीजों को अगर वह इंटरनेट इत्यादि पर देखता है, तो यह भी कोई सुसाइडल थॉट का लक्षण हो सकता है।

अचानक ही अगर किसी के विचारों में बड़ा परिवर्तन आता है, तो यह भी खतरे का संकेत है। जैसे कोई व्यक्ति खुश रहता है और अचानक से वह दुखी रहने लगे,. तो कहीं ना कहीं यह एक लक्षण हो सकता है और इसको आप कतई ना करें अनदेखा।

खासकर बच्चों की बात करें तो अगर आपका बच्चा बहुत ज्यादा गुस्सा करता है, अगर बात बात पर वह चिड़चिड़ा होने लगा है, छोटे मोटे सामानों को फेंक देता है, तोड़ देता है, तो कहीं ना कहीं यह एक लक्षण अवश्य हो सकता है।

ऐसी स्थिति में आप अपने बच्चे को, अथवा परेशान सदस्य को, मित्र को अकेला कतई न छोड़ें। अक्सर ऐसे लोग अकेले में ही खुद को नुकसान पहुंचाते हैं। तो उनके साथ बातचीत अवश्य करें। अगर एक व्यक्ति से को एक व्यक्ति बात नहीं कर पाता है तो दूसरे व्यक्ति से बातचीत करके उसके मनोभाव को पकड़ने की कोशिश करें। उसे बताएं कि यह दुनिया कितनी खूबसूरत है और उसे सभी लोग कितना चाहते हैं।

ध्यान रहे यह सिर्फ औपचारिकता नहीं लगनी चाहिए, बल्कि निराश व्यक्ति को महसूस होना चाहिए कि उसका कोई अपना अवश्य है।

इसी प्रकार योगा से लेकर काउंसलिंग और परिवार का सहयोग किसी व्यक्ति को इस स्थिति से बाहर ला सकता है। डॉक्टर की सलाह लेने में भी कतई हिचकिचाना नहीं चाहिए, क्योंकि कई बार स्थिति कंट्रोल से बाहर हो जाती है, तो इलाज से कहीं ना कहीं उस पर नियंत्रण किया जा सकता है।

बच्चों को लेकर ख़ास ध्यान रखें क्योंकि समय के अनुसार सेंसटिविटी बहुत ज्यादा बढ़ गई है और ऑलरेडी, इन्टरनेट के माध्यम से पूरी दुनिया से जुड़ने कारण बच्चों पर काफी दबाव होता है। अगर इन सब बातों का आप ध्यान रखते हैं तो बहुत मुमकिन है कि आप पकड़ पाएं कि कोई सिचुएशन कब खतरनाक हो सकती है?

सही जीवन जीने के लिए बच्चों को सही पोषण की डाइट दें, बच्चों को नास्तिक बनने से रोकें, बल्कि उन्हें धार्मिक ऐतिहासिक किताबें दें। इसी प्रकार की फिल्में दिखाएं, ताकि वह जुड़े और वह आत्महत्या और इस तरह के तमाम निराशावादी विचारों से खुद को बाहर ला सके। ध्यान रखें कि जिंदगी से जिसका मोह खत्म हो जाए, उम्मीद खत्म हो जाए, वही सुसाइड जैसे कदमों की तरफ बढ़ता है, किंतु इसके लिए आवश्यक है कि उसकी प्रॉब्लम को समझा जाए और प्रॉब्लम समझ के उचित मात्रा में, उचित समय पर उसका इलाज प्रबंधित किया जाए।

आज के समय में किसी के पास टाइम नहीं है। ऐसी स्थिति में कौन सा मनुष्य, कब डिप्रैस हो जाए, इस बात की गारंटी शायद ही कोई दे। इस भागमभाग जिंदगी में कई बार आपको ऐसा लगेगा कि आपका कोई अपना नहीं है, किंतु आप फिर भी खुद को भी सकारात्मक रख सकते हैं।

सुबह टहलने से लेकर योगा करने और अपनी मित्र मंडली में हमेशा जिंदा दिल रहने का प्रयास आपको किसी भी निराशा से पूर्ण रुप से बचाएगा।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version