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वैदिक संपत्ति

वैदिक सम्पत्ति : तृतीय खण्ड : अध्याय , ईसाई और आर्यशास्त्र

गतांक से आगे……

हमने यहाँ तक यह थोड़ी सी किन्तु देर तक गौर करने योग्य बात ईसाइयों , ईसाई शासकों और ईसाई थियोसो फिस्ट की लिखी है । यह वर्तमान जमाने की बात है , जो सबके सामने है , तो भी कितनी पेंचदार है ? पढ़े लिखे हिन्दू , पारसी , मुसलमान आदि सभी इसके फेर में हैं । सभी को आक्सिजन , हाइड्रोजन , इलक्ट्रीसिटी , ईथर और इलेक्ट्रोन की थियरी बताकर और स्प्रिचुअलिज्म , योग और वेदान्त को बातें सुनाकर तथा भूतप्रेत और आत्मा के इनर प्लानों की बातें सिखाकर ये लोग भोले मनुष्यों को चक्कर में डालते हैं । पढ़े लिखे किन्तु भोले लोग ही
इनके चक्कर में पढ़ते हैं और अपना हर प्रकार से पतन कर लेते
हैं । वे आर्योचित कर्तव्य के योग्य नहीं रहते और ईसाई प्रचारकों के अनुकूल हो जाते हैं । इसलिए इनको अब सचेत हो जाना चाहिये और निश्चय कर लेना चाहिये कि , इस पंथ में हमारा कल्याण नहीं है । क्योंकि जिस ईसाई धर्म की ही ओर थिओसोफिस्ट ले जाते हैं , उस धर्म को योरपनिवासी अपने लिये लाभदायक नहीं समझते , प्रत्युत वे दूसरों का सत्यानाश करने के लिए ही इसे पादरियों के द्वारा दूसरे देशों में भेजते हैं । फ्रेंच पार्लियामेंट में बजट सम्बन्धी वाद विवाद के समय जब ईसाई धर्मप्रचार के खर्चपर आपत्ति की गई , तो इस आपत्ति का उत्तर देते हुए मन्त्री ने कहा कि ‘ Christanity is not for home consumption it is for colonial export ‘ अर्थात् ईसाइयत धर्म के लिए नहीं , प्रत्युत उपनिवेशों में भेजने के लिये है । ईसाइयत यदि अच्छी चीज होती , तो घर के योग्य अवश्य समझी जाती । पर निकम्मी चीज है और निकम्मी चीज के जरिये दूसरे देशों को निकम्मा बनाना है , इसलिये उसका प्रचार दूर देशों में किया जाता है । ईसाइयों के द्वारा और ईसाई धर्मप्रचार के द्वारा दूसरे देशों को किस प्रकार निकम्मा बनाया जाता है , इसका उदाहरण ढूँढने की आवश्यकता नहीं है । इसका प्रत्यक्ष उदाहरण भारतवर्ष है । किस प्रकार इन्होंने अपनी कुटिल नीति से इस देश की आत्मिक , शारीरिक और सामाजिक शक्तियों का सत्यानाश किया है , वह सबके सामने है और सभी उसका फल भोग रहे हैं । प्रत्येक वर्ष कहीं न कहीं दुष्काल , नाना प्रकार की जनसंहारिणी बीमारियाँ और परस्पर कलहाग्नि भारत के कोने कोने में व्याप्त हो रही है । ईसाई शासकों , ईसाई प्रचारकों और ईसाई व्यापारियों ने इस देश में ऐसी ऐसी बीमारियाँ फैला दी है कि इस देश का प्रलयपर्यंत कल्याण नहीं दिखलाई पड़ता । ऐसी चेपी बीमारियों में से उपदंश की बीमारी इन्हीं की फैलाई हुई है । इनके आने के पूर्व तक इस देश में इसका कोई नाम भी नहीं जानता था । पर पोर्टुगीजों के पाते ही यह भवदुर रोग इस देश में फैल गया । कहने का मतलब यह कि ईसाइयों के द्वारा इस देश की जो हानि हुई है , वह अकथनीय है ।
(क्रमश:)

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