आतंकवाद के नाम पर भारत के खिलाफ पाकिस्तान और चीन की जुगलबंदी

अंकित सिंह 

भारत की ओर से तो साफ तौर पर यह कह दिया गया है कि चीन की हर गतिविधि पर उसकी नजर रहती है। वहीं, चीन लगातार अच्छे संबंध बनाए रखने का राग अलापता तो है लेकिन उसके रास्ते अक्सर भारत विरोधी हो जाते हैं।

चाहे कोई भी मुद्दा हो चीन हमेशा पाकिस्तान के साथ खड़ा रहता है। जबकि भारत के विरोध में वह अक्सर दिखाई दे जाता है। चीन ने एक बार फिर से पाकिस्तान और उसके आतंकवादियों का संयुक्त राष्ट्र में समर्थन कर दिया है। यह कहीं ना कहीं भारत के खिलाफ चीन की साजिश को बेनकाब करता है। दरअसल, पाकिस्तानी आतंकवादी अब्दुल रहमान मक्की को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंधित सूची में शामिल करने के भारत और अमेरिका एक संयुक्त प्रस्ताव लाया गया था। हालांकि, चीन ने आखिरी क्षणों में इसे बाधित कर दिया। दरअसल, भारत और अमेरिका ने सुरक्षा परिषद की अल कायदा प्रतिबंध समिति के तहत मक्की को एक वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने का संयुक्त प्रस्ताव पेश किया था। लेकिन चीन ने पाकिस्तानी आतंकवादी का समर्थन कर दिया। मक्की कोई छोटा मोटा आतंकवादी नहीं है, बल्कि लश्कर-ए-तैयबा के सरगना और 26/11 मुंबई हमलों के मुख्य साजिशकर्ता हाफिज सईद का रिश्तेदार है। मक्की को अमेरिका ने बहुत पहले ही आतंकवादी घोषित कर दिया था। 

संयुक्त राष्ट्र में भी भारत और अमेरिका को कामयाबी मिल जाती। लेकिन पाकिस्तान के मित्र चीन ने मक्की के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव का आखिरी क्षणों में बाधित कर दिया। हालांकि, यह पहला मौका नहीं है जब भारत और उसके सहयोगी देशों द्वारा पाकिस्तानी आतंकवादियों को सूचीबद्ध करने के प्रयासों में चीन ने बाधा उत्पन्न किया है। इससे पहले भी ऐसे कई मौके आए हैं, जब चीन पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों के पक्ष में खड़ा होता दिखाई दिया था। हालांकि, यह बात भी सच है कि भारत ने मई 2019 में संयुक्त राष्ट्र में एक बड़ी राजनयिक जीत हासिल की थी, जब वैश्विक निकाय ने पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर को ‘‘वैश्विक आतंकवादी’’ घोषित कर दिया था। ऐसा करने में भारत को करीब एक दशक का समय लग गया था। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यीय निकाय में चीन एक मात्र ऐसा देश था, जिसने अजहर को कालीसूची में डालने के प्रयासों को बाधित करने की कोशिश की थी। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पांच राष्ट्र – अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस और रूस – स्थायी सदस्य हैं। इनके पास ‘वीटो’ का अधिकार है यानी यदि उनमें से किसी एक ने भी परिषद के किसी प्रस्ताव के विपक्ष में वोट डाला तो वह प्रस्ताव पास नहीं होगा।

चीन की दोगली नीति
इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत से तगड़ा जवाब मिलने के बावजूद भी चीन हमारे देश के खिलाफ साजिशें रच का रहता है। भारत और चीन के रिश्तों में तनाव 2020 की गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद से बढ़ गए हैं। भारत के सेना ने चीन को मुंहतोड़ जवाब भी दिया था। बावजूद इसके चीन मानने को तैयार नहीं है। अभी भी खबर यह है कि एलएसी पर चीन लगातार निर्माण कार्य कर रहा है। हालांकि इसको लेकर भारत विरोध जताता रहता है। भारत की ओर से तो साफ तौर पर यह कह दिया गया है कि चीन की हर गतिविधि पर उसकी नजर रहती है। वहीं, चीन लगातार अच्छे संबंध बनाए रखने का राग अलापता तो है लेकिन उसके रास्ते अक्सर भारत विरोधी हो जाते हैं। हाल में ही चीन के रक्षा मंत्री जनरल वेई फेंगे ने कहा था कि चीन एवं भारत पड़ोसी हैं और आपस में अच्छे संबंध बनाए रखना दोनों देशों के हितों को पूरा करता है तथा दोनों देश वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। 

ब्रिक्स की बैठक 
इन सबके बीच ब्रिक्स की बैठक में एक बार फिर से चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आमने-सामने होंगे। दरअसल, हाल में ही ब्रिक्स के सदस्य देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की एक बैठक हुई थी जिसमें बहुपक्षवाद एवं वैश्विक शासन को मजबूत करने जैसे मुद्दों तथा राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े नये खतरों और चुनौतियों से निपटने को लेकर आम सहमति जताई गई थी। इसके बाद यह भी खबर निकल कर आई है कि 14 वां शिखर सम्मेलन 23 जून को बीजिंग में डिजिटल माध्यम से आयोजित किया जाएगा। ब्रिक्स देशों में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल है। चीन इस बार ब्रिक्स का अध्यक्ष है। यही कारण है कि इस बार के ब्रिक्स की अध्यक्षता शी जिनपिंग करेंगे। शिखर सम्मेलन का विषय ‘‘उच्च गुणवत्ता वाली ब्रिक्स साझेदारी को बढ़ावा देना, वैश्विक विकास के लिए एक नए युग की शुरुआत’’ है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्राजील एवं दक्षिण अफ्रीका के नेताओं के शिखर सम्मेलन में भाग लेने की उम्मीद है।

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