Pak atankvad terror
  • डॉ राकेश कुमार आर्य

बात 1962 की है जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जे0एफ0 कैनेडी ने भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के सामने न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी सांझा करने का प्रस्ताव रखा था। जिसे नेहरू ने महान बनने के चक्कर में ठुकरा दिया था । पूर्व विदेश सचिव महाराज कृष्ण रसगोत्रा के अनुसार यदि भारत इस प्रस्ताव को उस समय स्वीकार कर लेता तो निश्चय ही वह एशिया में चीन से भी पहले न्यूक्लियर पावर बन चुका होता। जिसके अलग ही परिणाम दिखाई देते। तब बहुत संभव था कि चीन भारत पर हमला नहीं करता। उसके पश्चात राजनीति में नए परिवर्तन हुए और भारत चीन के हाथों पराजित हुआ। अमेरिका भी समय के अनुसार भारत से दूरी बनाकर अलग चला गया। बाद में नेहरू जी की बेटी इंदिरा गांधी ने जब 1974 में परमाणु परीक्षण किया तो उन्होंने भी अपनी महानता को प्रकट करने के चक्कर में भारत के परंपरागत शत्रु पाकिस्तान को ही परमाणु टेक्नोलॉजी सांझा करने का प्रस्ताव दे डाला था। कांग्रेस के नेताओं के द्वारा अपने आप को महान दिखाने की ऐसी सोच देश के लिए बड़ी घातक रही है।

यह विश्व राजनीति का कालचक्र होता है। जो परिवर्तित होता रहता है। आज भी विश्व राजनीति में नये परिवर्तन होते दिखाई दे रहे हैं। सभी देश ऐसे कार्य कर रहे हैं जिससे तीसरा विश्व युद्ध बहुत निकट दिखाई देता है, परंतु दिखावटी आचरण इस प्रकार का है कि जैसे वे सभी विश्व शांति के प्रति प्रतिबद्ध हैं और किसी भी स्थिति में नहीं चाहते कि संसार को तीसरा विश्व युद्ध देखना पड़े। वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वार्थ और अपने पापों को छुपाते हुए इस प्रकार चालाक बनकर दिखाने का प्रयास करता है कि आने वाले समय में जब उसका किसी के साथ भी वाद-विवाद या झगड़ा हो तो उसमें विजय तो उसकी हो और अगले वाले का अधिक से अधिक विनाश हो जाए। वह यह भूल जाता है कि अगले वाला भी इसी दृष्टिकोण से प्रेरित होकर तैयारी कर रहा होता है। आज प्रत्येक देश एक दूसरे को समाप्त करने की तैयारी करते हुए अपनी राजनीति को सिरे चढ़ाने का प्रयास कर रहा है । इसी सोच के चलते विश्व राजनीति के नए समीकरण बनते बिगड़ते दिखाई दे रहे हैं। अमेरिका ने व्यापार का जिस प्रकार का नया युद्ध छेड़ा है, उसके चलते विश्व के दूसरे देशों के कान खड़े हो गए हैं। अमेरिका नहीं चाहता कि भारत सहित कोई भी देश व्यापार के क्षेत्र में उसकी बराबरी करे और यह तो कदापि नहीं कि कोई भी देश व्यापार के क्षेत्र में उससे आगे निकले ।
वर्तमान विश्व में अमेरिका के द्वारा चलाया गया यह एक नया अघोषित युद्ध है । जिसे चीन, रूस, फ्रांस , ब्रिटेन सभी समझ चुके हैं। अब लड़ाई उपनिवेश स्थापना की नहीं है। लड़ाई का स्वरूप परिवर्तित हो चुका है और लड़ाई व्यापार के माध्यम से दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था को चकनाचूर कर अपने वर्चस्व को स्थापित करने तक आ गई है। यद्यपि पिछले कई दशकों से यह खेल चल रहा था परन्तु अमेरिका ने अब इसे नए आयाम दिए हैं। यह अघोषित युद्ध कब विश्व युद्ध में परिवर्तित हो जाएगा ?- कुछ कहा नहीं जा सकता।

भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव के संदर्भ में भी हमें विश्व राजनीति की परिवर्तित होती हुई अवस्था पर विचार करना चाहिए। इस समय ब्रिटेन हमारे साथ खड़ा दिखाई दिया है । इसका कारण यह नहीं था कि अब ब्रिटेन का हृदय परिवर्तित हो चुका है और वह भारत के साथ अपने पुराने सभी पापों का प्रायश्चित करते हुए नए संबंधों का सृजन करना चाहता है ? इसका अभिप्राय है ब्रिटेन की तेजी से बदलती हुई जनसांख्यिकीय स्थिति। जिसमें मुस्लिम मजहब को मानने वाले लोगों ने तेजी से अपना विस्तार किया है और अब ब्रिटेन के लिए अपने इसी स्वरूप को बचाए रखना बहुत कठिन हो चुका है। स्थिति उसके गले को रेतने तक आ गई है। वहां पर कब क्या हो जाएगा, यह भी नहीं जा सकता। दूसरों को धर्मनिरपेक्षता का उपदेश देने वाला ब्रिटेन अब स्वयं अपने ही उपदेश के जाल में फंस चुका है। उससे भारत को भी शिक्षा लेने की आवश्यकता है । अपनी इसी मजबूरी के कारण ब्रिटेन ने परिस्थितियों को देखते हुए भारत के साथ खड़ा होने का प्रयास किया है।

इसी समय अमेरिका और चीन ने जब देखा कि उनके द्वारा पाकिस्तान को दिए गए सभी हथियार भारत ने बच्चों के खिलौनों की भांति तोड़फोड़ कर समाप्त कर दिए हैं तो चतुर अमेरिका ने अपनी पोल संसार के सामने और न खुलने देने के डर से पाकिस्तान को समझा दिया कि भारत के साथ यथाशीघ्र युद्ध विराम करो। अमेरिका नहीं चाहता था कि उसके हथियारों की पोल संसार के देश के सामने खुले और उसका हथियार आपूर्ति करने का व्यापार चौपट हो जाए। यद्यपि इसी समय संसार के अनेक देश वास्तविकता को समझ गए । परिणाम यह निकला कि कई देशों ने भारत के साथ युद्ध सामग्री खरीदने के सौदा कर डाले। जिसके चलते भारत को 23600 करोड़ रुपए के हथियार निर्यात करने का अवसर मिला।

ऐसे हथियार निर्यातक सक्षम और समर्थ भारत के साथ इस समय सभी देश अपने नए संबंधों की आधारशिला रखने को आतुर दिखाई देते हैं। चीन चाहे व्यापार के क्षेत्र में भारत को कितना ही नष्ट करने का क्यों न प्रयास कर रहा हो परंतु वह भी नए भारत के साथ नए संबंध स्थापित करने को आतुर है । रूस ने चीन को साथ लेकर उसे यह समझाने का प्रयास किया है कि यदि रूस, चीन और भारत मिलकर विश्व नेतृत्व करें तो अमेरिका की सारी दादागिरी समाप्त हो सकती है। व्यापार के क्षेत्र में अमेरिका जिस प्रकार आतंक मचा रहा है, रूस, चीन और भारत की निकटता उसकी इस आतंकी सोच को भी समाप्त कर सकती है। इसको चीन ने थोड़ा समझने का भी प्रयास किया है। यही कारण है कि उसने पाकिस्तान के साथ अपनी निकटताओं के उपरांत भी भारत के साथ कहीं ना कहीं सहनशीलता का परिचय दिया है । यद्यपि भारत ने भी बहुत सावधानी बरतते हुए अपनी सफल विदेश नीति और कूटनीति का परिचय देकर पाकिस्तान के साथ तनाव पैदा करने से पहले चीन के साथ मिलती अपनी लंबी सीमा पर पूरी सावधानी बरतने में तनिक सी भी चूक नहीं की है। यही होना भी चाहिए। भारत को चीन के साथ दस कदम दूर रहकर नहीं सौ कदम दूर रहकर अपने नए संबंध स्थापित करने होंगे। उसे अमेरिका को भी समझना होगा और ब्रिटेन को भी।

डॉ राकेश कुमार आर्य
(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं)

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