क्या केवल 8400000 योनियों ही है ?

कुछ संख्याएं हिंदू समाज में प्रसिद्ध हो गई हैं जिनका कोई वास्तविक आधार नहीं है, जैसे 8400000 योनियां! योनियां अनंत है क्योंकि जीवात्मा भी असंख्य हैं, पृथ्वी पर ही कितने प्रकार के प्राणी हैं कोई नहीं गिन सकता ,तो 8400000 की संख्या में समेट देना तथ्य, तर्क के आधार पर संगत नहीं लगता ,फिर भी यह संख्या प्रसिद्ध है इस की व्याख्या की जा सकती है कि यह बहु- वाचक संख्या है जैसे किसी की किसी से लड़ाई होने पर कहते हैं कि तेरे जैसे पचासों देखे हैं या तेरे जैसे 365 देख रखे हैं, इसका मतलब यह नहीं होता कि सचमुच 365 देखे हुए हैं वह बस बहु- वाचक संख्या होती है .
इसी तरह से 108 की संख्या भी किस आधार पर प्रचलित हुई है इसका कोई शास्त्रीय आधार नहीं है .व्याख्या करने वाले लोगों के अनुसार इसका एक कारण यह बताया जाता है कि 24 वर्ष तक कम से कम ब्रह्मचर्य निभाने की व्यवस्था है जो प्रत्येक के लिए अनिवार्य है, उसके बाद भी कोई ब्रह्मचारी रहना चाहे, ब्रह्मचारी रहकर अध्ययन अनुसंधान करना चाहे तो 36 वर्ष तक रहेगा उसके बाद उसकी इच्छा होती है कि मैं और भी अधिक अध्ययन करूं और ईश्वर की उपासना योगाभ्यास में लीन होऊं, तो 48 वर्ष तक रह सकता है इसके बाद फिर या तो वह विवाहित हो जाए या सन्यासी हो जाए .तो जिन्होंने 24 ,36 ,48 तीनों प्रकार का ब्रह्मचर्य- काल पूरा करके जो आजीवन ब्रह्मचारी हो गए और पूरा जीवन देश और समाज के लिए समर्पित कर दिया ऐसे लोगों के नाम के आगे 108 की संख्या सम्मान पूर्वक लिखी जाने लगी, -ऐसा कहा जाता है.कुछ लोग फिर इसको और अधिक बढ़ाकर 10 गुना श्री 1008 कर देते हैं जिसका कोई औचित्य नहीं है.
माला में 108 दाने क्यों? इसके पीछे तो छोटा सा कारण हो सकता है कि 8 अतिरिक्त कर दिए सौ बार जपना है तो कहीं कोई मिस हो जाए ,कम ज्यादा हो जाए ,माला गिनते हुए उंगली आगे पीछे हो जाती है तो 108 दाने हो गए ,तो पूरी 100 संख्या हो जाएगी कुछ कम ज्यादा हो जाए तो कोई हर्ज नहीं है जैसे दक्षिणा देते हुए पुराने समय में सवा रुपया देते थे 25 पैसे ज्यादा, ₹1 सुरक्षित रहे रास्ते में खर्च हो जाएंगे 25 पैसे, अब ₹101 दे देते हैं 1100 दे देते हैं तो राउंड फिगर के प्रति एक मोह रहता है मन में ,तो ₹1000 सुरक्षित रहेंगे ₹100 खर्च हो जाएंगे तो पूरी राशि एक मुश्त सुरक्षित रहेगी .
तो ऐसे ही छोटे-मोटे मनोवैज्ञानिक कारण रहते हैं, और कोई बड़ा गहरा धार्मिक दार्शनिक आधार इसके पीछे नहीं है
डॉक्टर आचार्य वागीश जी के अनुसार

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