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महत्वपूर्ण लेख संपादकीय

बाबा की बुलडोजर क्रांति और विपक्ष

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा प्रदेश के सभी भू माफियाओं और दूसरों की भूमि, मकान या दुकान आदि पर अवैध रूप से कब्जा करने वाले लोगों के विरुद्ध जिस प्रकार बुलडोजर क्रांति की गई है वह देश के समकालीन इतिहास की बहुत बड़ी घटना है। जिन लोगों की भूमि, संपत्ति, मकान, दुकान आदि पर भू माफिया लोगों ने अवैध कब्जे कर लिए थे ऐसे शांतिप्रिय लोग इस प्रकार की क्रांति की बहुत देर से प्रतीक्षा कर रहे थे। जो लोग इन भू माफियाओं के हाथों अपनी संपत्ति को खो बैठे थे वे लोकतंत्र को दिन रात कोसते थे। क्योंकि उनके लिए लोकतंत्र भी अभिशाप बन चुका था। जिस लोकतंत्र में हर पांचवें वर्ष राजनीतिक पार्टियां लोगों को सामाजिक ,आर्थिक और राजनीतिक न्याय देने का वचन देकर लोगों के वोट मांगती हैं उन्हीं के शासन में यदि इस प्रकार का अन्याय लोगों के साथ हो रहा था तो ऐसा परिवेश उनके लिए निराशाजनक ही था।
कुछ लोगों का मानना है कि बुलडोजर क्रांति कोई क्रांति नहीं है बल्कि लोगों के अधिकारों का हनन करने का मुख्यमंत्री से तानाशाह बने योगी आदित्यनाथ का एक हथकंडा है। जिसमें न्याय, न्यायालय और न्यायिक प्रक्रिया को ताक पर रख दिया गया है। उनका कहना है कि इस समय उत्तर प्रदेश में जंगलराज स्थापित हो चुका है और सरकार एक तानाशाह के रूप में कार्य कर रही है। यद्यपि विपक्ष की इस प्रकार की आलोचना में कोई ओज और तेज दिखाई नहीं देता है ।।वह भीगी बिल्ली की भांति सरकार की आलोचना कर रहा है।
इस समय चाहे दबी जुबान में विपक्ष की ओर से योगी आदित्यनाथ के इस प्रकार के निर्णय की आलोचना की जा रही हो परंतु कोई भी विपक्षी दल सड़क पर उतरकर बाबा के इस प्रकार के साहस का सामना नहीं कर पा रहा है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि बाबा जो कुछ भी कर रहे हैं वह बहुत सही कर रहे हैं। वास्तव में विपक्ष जिस प्रकार बाबा के सामने इस समय हताश और निराश है, उसका एक ही कारण है कि उत्तर प्रदेश में जब अवैध ढंग से भू-माफिया दूसरों की संपत्तियों पर कब्जा कर रहे थे तब सपा या बसपा सत्ता में रहकर उनको संरक्षण प्रदान कर रही थीं। यदि आज अपने ही पाप का विरोध सपा बसपा करती हैं तो उनकी फजीहत होगी।
बाबा के तेजस्वी आभामंडल के समक्ष इस समय विपक्ष आंखें मिलाने का साहस नहीं कर पा रहा है । विपक्ष के कुछ नेता ऐसा अवश्य कहते सुने जा रहे हैं कि देश में कानून का शासन स्थापित रहना चाहिए। यद्यपि यह घिसे पिटे बयान हैं, परंतु यदि इन पर भी विचार किया जाए तो हमें मानना पड़ेगा कि जिस समय दूसरों की भूमियों पर या मकान, दुकान आदि पर भूमाफिया कब्जा कर रहे थे तो उस समय भी तो कानून का ही शासन था। जिसे उन्होंने उस समय तार-तार कर के रख दिया था। आज यदि पूर्व अवस्था में लाने के लिए बाबा बुलडोजर क्रांति कर रहे हैं तो समझिए कि वह कानून के राज की रखवाली कर रहे हैं या कानून के राज का सम्मान कर रहे हैं।
जहां तक ऐसी परिस्थितियों में न्यायालयों के अधिकारों की बात है या न्यायालयों के दरवाजे खटखटाकर न्याय पाने के लोगों के मौलिक अधिकारों की बात है तो न्यायालय पीड़ित पक्षों को न्याय देने के लिए बनाए गए हैं। किसी के साथ उत्पीड़न ना हो या किसी को पीड़ित ना किया जाए – इसके लिए सरकार होती है। यदि योगी सरकार इस निष्कर्ष पर पहुंच गई है कि कुछ मुट्ठी भर लोग दूसरे शांति प्रिय लोगों के अधिकारों का हनन करके उनको कष्ट पहुंचा रहे हैं तो ऐसे लोगों के विरुद्ध सरकार को कार्यवाही करने का विशेष अधिकार है।
वैसे भी सरकार ऐसे असामाजिक लोगों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए ही बनाई जाती है। ऐसे प्रकरणों में भी यदि सरकार न्यायालय के आदेशों की प्रतीक्षा करती हुई दिखाई देगी तो समझिए कि सरकार ने चूड़ियां पहनी हुई हैं। उत्तर प्रदेश को पहली बार एक ऐसी सरकार मिली है जो सरकार के दायित्वों का निर्वाह करना जानती है । इसलिए लोगों को बाबा की बुलडोजर क्रांति रास आ रही है।
इस क्रांति से कुछ लोगों को कष्ट होता हुआ दिखाई दे रहा है, लेकिन अधिकांश लोगों को इससे बहुत बड़ी राहत मिली है। इसका सकारात्मक परिणाम यह निकलेगा कि लोग देर तक दूसरों की संपत्तियों पर अवैध कब्जा करने से पहले 10 बार सोचेंगे। सपा के शासनकाल में दूसरों की संपत्तियों पर कब्जा करना सत्तासीन पार्टी के कार्यकर्ताओं का मौलिक अधिकार बन गया था। आज लोगों को सपा और योगी सरकार का अंतर स्पष्ट दिखाई दे रहा है। पहली बार ऐसा देखा जा रहा है जब वोटों की राजनीति को दरकिनार कर शासन अपने दायित्वों के निर्वाह को पूर्ण निष्ठा के साथ क्रियान्वित कर रहा है।
मैं क्योंकि विधि व्यवसाय से जुड़ा हूं , इसलिए मुझे सपा सरकार के समय का स्मरण है जब मेरे पास दो-तीन लोग ऐसे आए थे जो उस समय जनपद गौतम बुद्ध नगर नोएडा में नियुक्त एक बड़े अधिकारी के दूर के संबंधी थे। उक्त अधिकारी उस समय के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के निकट संबंधी थे। मेरे पास आए वह लोग भू माफिया थे। जो मेरे सामने प्रस्ताव रख रहे थे कि यदि कोई विवादित मामला है तो हमें बताना। हम उसका निस्तारण करा देंगे। निस्तारण कराने का उनका ढंग ऐसा था जिसे सुनकर मैं भी दंग रह गया था। उनका कहना था कि रुपए में से 25 पैसे वादी के, 25 प्रतिवादी के, 25 हमारे और 25 अधिकारी के होंगे । इस प्रकार सपा सरकार में उस समय न्याय भी तार तार होकर रह गया था । उस समय बड़ी संख्या में लोगों ने एक दूसरे की संपत्तियों पर कब्जे कर लिए थे। वास्तव में वह जंगलराज था। आज उस जंगलराज को मिटाकर योगी आदित्यनाथ लोगों को वास्तविक न्याय दिला रहे हैं । जिससे न्याय और शासन – प्रशासन के प्रति लोगों के विश्वास में वृद्धि होगी।
विपक्ष योगी आदित्यनाथ के इस प्रकार के निर्णय का विरोध तो करना चाहता है परंतु वह स्वयं चोर है । इसलिए उसके पांव बड़े कमजोर हैं। विरोध करने के लिए पांवों का मजबूत होना बड़ा आवश्यक है।
योगी आदित्यनाथ का दूसरा निर्णय धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर को उतरवा देना है। वास्तव में धर्म स्थलों से लाउडस्पीकर के माध्यम से आने वाली आवाज से जिस प्रकार ध्वनि प्रदूषण फैल रहा था उससे जनसाधारण का जीवन बड़ा कष्टपूर्ण हो गया था। ऐसे बहुत लोग हैं जो ध्वनि प्रदूषण से बहुत अधिक दुखी रहते हैं, परंतु उनके पास कोई उपाय नहीं था, अर्थात ध्वनि प्रदूषण के मध्य घुट-घुट कर मरना उनके लिए अभिशाप हो गया था। ऐसे बहुत से विद्यार्थी होते हैं जो सामान्य परीक्षाओं के साथ साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे होते हैं। उनके घर मोहल्ले में पड़ने वाले धर्म स्थलों से प्रातः काल में ही लाउडस्पीकर्स की आवाजें आने लगती हैं। जिससे वह अपनी परीक्षाओं की सही तैयारी नहीं कर पाते। हम बचपन में जब पढ़ा करते थे तो पिताजी अक्सर हमें खेत पर एकांत में पढ़ने के लिए भेज दिया करते थे। इसका अभिप्राय है कि पढ़ने के लिए एकांत की आवश्यकता होती है। कहा भी जाता है कि भोजन, भजन और विद्या के लिए एकांत ही उपयोगी होता है। परंतु लाउडस्पीकर्स की तेज ध्वनि ने लोगों के एकांत को छीन लिया था। इस प्रकार के ध्वनि प्रदूषण से जो लोग परेशान थे उनको योगी आदित्यनाथ के इस निर्णय से बहुत अधिक राहत मिली है।
ध्वनि प्रदूषण के विषय में हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि जब किसी परीक्षार्थी की परीक्षाएं चल रही हों तो उस समय उसे अपना ध्यान केवल और केवल अपनी परीक्षा की तैयारी पर लगाना होता है। यदि उस समय आप उसको जबरदस्ती अजान सुनायेंगे या हनुमान चालीसा पढ़ा रहे हो तो यह उसके साथ एक अत्याचार है। प्रातः काल में आप कौन सी प्रार्थना सुनते हैं और किस प्रकार अपने इष्ट का यजन भजन करते हैं ,- यह आपका अपना व्यक्तिगत विषय है। उसे आप दूसरे पर थोप नहीं सकते। ऐसे में यदि धर्म स्थलों से लाउडस्पीकर के माध्यम से ध्वनि प्रदूषण फैल रहा था और वह जबरन लोगों को अपनी अपनी बातें सुनवा रहे थे तो उनका ऐसा आचरण समाज के साथ किया जाने वाला एक अपराध था। जिस पर अंकुश लगाकर सरकार ने उचित निर्णय लिया है।
वास्तव में जनसाधारण के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षा करना सरकार का उत्तरदायित्व होता है । योगी आदित्यनाथ की सरकार अपने कड़े और ताबड़तोड़ निर्णय लेकर आज लोगों के मौलिक अधिकारों को सुरक्षा कवच प्रदान कराने की दिशा में ठोस कदम उठा रही है। जिसका लोग हृदय की गहराइयों से स्वागत कर रहे हैं।
हमारा कहना है कि सरकार को सड़कों के दोनों ओर बढ़े अतिक्रमण को हटवाने की दिशा में भी इसी प्रकार की कठोर कानूनी कार्यवाही करनी चाहिए। यदि हम जीटी रोड पर ही विचार करें तो यह गाजियाबाद , दादरी, सिकंदराबाद, बुलंदशहर, खुर्जा और उसके पश्चात के जितने भी शहरों से गुजरते हुए कोलकाता तक गई है उन सब कस्बों शहरों में हद दर्जे का अतिक्रमण कर सड़क को समाप्त किया गया है। यदि बात सिकंदराबाद कस्बे की करें तो मूल जीटी रोड को तो लगभग समाप्त ही कर दिया गया है। वह इस समय 10 से15 फीट चौड़ाई की ही बची है। उसके पश्चात दूसरी जीटी रोड भी बहुत अधिक चौड़ी नहीं बची है। उसे भी एक वर्ग के लोगों ने अपना धर्म स्थल बीच में बनाकर समाप्त करने का काम किया गया है । अब तीसरी जीटी रोड बाईपास के रूप में बनाई गई है। योगी आदित्यनाथ को चाहिए कि पहले वाली दोनों जीटी रोड को भी निकालकर उनको उनकी सही स्थिति में स्थापित किया जाए । सरकारें अतिक्रमण करने वाले लोगों को खुली छूट देकर नई सड़क के लिए भूमि अधिग्रहण कर जिस प्रकार नई सड़क बनाती हैं उससे भी जनसाधारण के अधिकारों का हनन होता है। क्योंकि जिस पैसे से वह भूमि खरीदकर नहीं सड़क बनाती हैं वह लोगों का पैसा होता है, उसका लाभ वह भूमाफिया या अतिक्रमण करने वाले लोग उठाते हैं जो सड़कों के विनाश का कारण होते हैं।
जनता के पैसे को इस प्रकार नई नई सड़कों के लिए भूमि अधिग्रहण करने में खर्च ना करके अन्य विकास कार्यों पर खर्च किया जाए और सड़कों को उनका मौलिक स्वरूप प्रदान कर अतिक्रमण कर्ताओं को वहां से भगाया जाए। किसी को भी इस आधार पर छूट नहीं दी जा सकती कि वह अमुक स्थान पर पिछले 20, 30, 40 या 50 वर्ष से या अपने पूर्वजों के समय से दुकान या अपना व्यवसाय करता आ रहा है। यह कोई तर्क नहीं है । न्यायालय सरकारें किसी भी प्रकार से ऐसे लोगों के इस प्रकार के तर्कों को मान लेती हैं तो ऐसा ही काम करने की प्रेरणा दूसरे लोगों को मिलती है। जिससे देश में सरकारी संपत्ति को हड़पने की प्रक्रिया को प्रोत्साहन मिलता है। यही कारण है कि हम सरकार से सड़कों पर भी अवैध अतिक्रमण करने वाले लोगों के विरुद्ध कठोर कानूनी कार्यवाही की मांग कर रहे हैं। रोड साइड लैंड कंट्रोल एक्ट 1945 के अंतर्गत जिन सड़कों को जितनी चौड़ाई उनके निर्माण के समय दी गई थी वह उसी चौड़ाई के स्वरूप में इस समय स्थापित होनी चाहिए। इसके लिए चाहे किसी वर्ग विशेष को चोट पहुंचे या किसी नेता या बड़े अधिकारी को चोट पहुंचे, ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है। बात किसी वर्ग, संप्रदाय, नेता या अधिकारी की नहीं है, बात जनसाधारण के हितों की है। जिसके पैसे से सरकार चलती हैं और जिन्हें सुविधाएं देने के लिए सरकारें बनाई जाती हैं।
हमारे देश में न्यायालयों की हर उस व्यक्ति को स्थगन आदेश देने की प्रवृत्ति से भी लोगों को कष्ट होता है जो किसी भी सरकारी संपत्ति पर अवैध कब्जा करके न्यायालय की शरण में जाकर स्थगन आदेश प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं और फिर उस स्थगन आदेश को तोड़ने में कई बार दशक लग जाते हैं। तब तक लोगों को कई प्रकार के कष्टों से जूझना पड़ता है। यदि जनहित से जुड़े हुए प्रकरण माननीय न्यायालय के समक्ष जाएं तो उनमें स्थगन आदेश देने से न्यायालय को भी बचना चाहिए। क्योंकि लोकतंत्र में कार्यपालिका , विधायिका और न्यायपालिका तीनों ही जनहित से ऊपर नहीं जा सकते। तीनों का ही काम जनहित को साधना और जनहित में काम करना होता है। इसलिए किसी भी भू माफिया को या असामाजिक दबंग व्यक्ति को कार्यपालिका, विधायिका या न्यायपालिका के कार्य व्यवहार से किसी प्रकार का लाभ नहीं मिलना चाहिए। इस दिशा में न्यायपालिका को विशेष रूप से सचेत रहने की आवश्यकता है।
बाबा का बुलडोजर निसंकोच आगे बढ़ना चाहिए। पर इस बात का भी पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी भी निर्दोष व्यक्ति के खिलाफ किसी प्रकार की कार्यवाही ना हो जाए। कार्यवाही करते समय न किसी का वर्ग देखा जाये ना संप्रदाय देखा जाए ना हीं उसकी ऊंची पकड़ देखी जाए । कार्यवाही समान रूप से सबके विरुद्ध एक जैसा दृष्टिकोण अपनाकर की जानी चाहिए।
बाबा के ऐतिहासिक कार्यों में इस प्रकार जितनी पारदर्शिता और निष्पक्षता बरती जाएगी उतना ही उनके शेष राजनीतिक जीवन के लिए अच्छा होगा। यदि उनके इन निर्णयों में पूर्ण पारदर्शिता व निष्पक्षता बनी रही तो वह एक साहसिक नेतृत्व के प्रतीक के रूप में उतरेंगे और आने वाला भारत निश्चय ही उनके स्वागत की तैयारी कर रहा होगा।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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