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वेद होना चाहिए संसार का संविधान

कुटिलता युक्त पाप रूप कर्म मनुष्य से भयंकर से भयंकर गलतियां करवाता है। जिससे उसका जीवन निरर्थक हो जाता है। अनेक पापीजन संसार में रहकर कुटिलता युक्त पापरूप कर्म में लगे रहते हैं । ऐसे लोग संसार में आकर कुछ भी ऐसा नहीं कर पाते जिसे सार्थक कहा जा सके। वह संसार की प्रगति और व्यवस्था में कभी सहायक नहीं बन पाते हैं। वेद का प्रसिद्ध मंत्र हमें उपदेश दे रहा है :

अग्ने नय सुपथा राये ऽ अस्मान्विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्। युयोध्यस्मज्जुराणमेनो भूयिष्ठान्ते नम ऽ उक्तिं विधेम।। 8।। (यजु.अ.40/मं.16)

        हे स्वप्रकाश, ज्ञानस्वरूप, सब जगत् के प्रकाश करनेहारे सकल सुखदाता परमेश्वर ! आप जिससे सम्पूर्ण विद्यायुक्त हैं, कृपा करके हम लोगों को विज्ञान वा राज्यादि ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए अच्छे धर्मयुक्त आप्त लोगों के मार्ग से सम्पूर्ण प्रज्ञान और उत्तम कर्म प्राप्त कराइये और हमसे कुटिलतायुक्त पापरूप कर्म को दूर कीजिए। इस कारण हम लोग आपकी बहुत प्रकार से नम्रतापूर्वक स्तुति सदा किया करें और आनन्द में रहें।
यजुर्वेद के इस मंत्र में परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना की गई है कि हमें धर्मयुक्त आप्त लोगों के मार्ग से संपूर्ण प्रज्ञान और उत्तम प्राप्त कराइए। कहने का अभिप्राय है कि जो धर्मयुक्त आप्त लोग हैं उनके मार्ग का अनुकरण करने से कभी भी किसी भी प्रकार की समस्या जीवन में नहीं आएगी। कोई किसी प्रकार का उत्पात खड़ा नहीं हो सकेगा। क्योंकि संसार में धर्म युक्त आप्त लोगों के मार्ग को अपनाकर चलने में ही कल्याण है। जब हम धर्मयुक्त आप्त लोगों के मार्ग का अनुसरण करने लगते हैं तो हमसे कुटिलता युक्त उत्पात अपने आप दूर हो जाता है। बहुत बड़ी प्रार्थना इस मंत्र में की गई है। संसार की दुर्गति को सुव्यवस्थित करने के लिए वेद की व्यवस्था को विधि मानना चाहिए। वैसे भी वेद संसार का सबसे पहला संविधान है। वेद की विधि को अपनाकर लोग यदि आचरण करना आरंभ कर दें तो संसार स्वर्ग बन जाएगा। जो लोग रूल ऑफ लॉ की बात करते हैं और कहते हैं कि देश संविधान से या कानून से चलेगा, उनका अधकचरा ज्ञान समाज और संसार का कल्याण नहीं कर पा रहा है। क्योंकि उन्हें नहीं पता कि इस सृष्टि का ईश्वर प्रदत्त संविधान क्या है और उसकी व्यवस्थाएं कैसी हैं ? यदि वे यह जान लें कि वेद ही संसार का आदि संविधान है तो निश्चित रूप से संसार को वेद से चलाने की मांग उठने लगेगी।
ऐसे मूर्ख संसार में बहुत अधिक हैं जो वेद को सांप्रदायिक कहते हैं। वेद की व्यवस्थाओं को ऐसे लोग समझ नहीं पाये। ऐसा भ्रान्ति पूर्ण माहौल उन लोगों ने बनाया है जो अपनी सांप्रदायिक शिक्षा को संसार पर थोपकर अपने स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं। निश्चित रूप से इन लोगों की धार्मिक किताबों ने संसार में उग्रवाद और आतंकवाद को बढ़ावा दिया है। इसके उपरांत भी यह अपनी सांप्रदायिक शिक्षाओं को वेद की शिक्षाओं से कहीं अधिक उपयोगी बताने की मूर्खता करते देखे जाते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि देश के धर्मनिरपेक्ष नेताओं ने भी वेद और वैदिक ग्रंथों को सांप्रदायिक शिक्षा देने वाला मानकर उनकी उपेक्षा की है। इन नेताओं के ऐसे पाप के कारण ही आज राष्ट्र में सर्वत्र अशांति का माहौल है। वेद के उपरोक्त मंत्र का काव्यानुवाद इस प्रकार है :

स्वयं प्रकाशित ज्ञानरूप हे ! सर्वविद्य हे दयानिधान।
धर्ममार्ग से प्राप्त कराएं, हमें आप ऐश्वर्य महान्।।

पापकर्म कौटिल्य आदि से, रहें दूर हम हे जगदीश।
अर्पित करते नमन आपको, बारंबार झुकाकर शीश।।

ऐसी पवित्र शिक्षाओं के ग्रंथ वेद को भारत का ही नहीं संपूर्ण संसार का संविधान घोषित करने की मांग उठनी चाहिए।

श्रीमती ऋचा आर्या

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