वेद में नदी के नाम से नदी, किरणें, वाणी और इंद्रियों का वर्णन आता है, परंतु यह स्मरण रखना चाहिाए कि किसी भी मंत्र में नदियों का वर्णन संख्या के साथ नही किया गया। इसका कारण है और वह अत्यंत सत्य नींव पर स्थित है।
कल्पना करो कि आपने कहा कि यहां अमुक-अमुक चार नदियां हैं, तो इसका अर्थ यह हुआ कि अमुक-अमुक चार नदियां किसी सीमा के अंदर हैं। क्योंकि संसार में चार ही नदियां नही हैं। उदाहरणार्थ पंजाब में पांच नदियां हैं। क्योंकि पांच नदियों से ही वह पंजाब कहलाता है। ये नदियां पांच तभी कहला सकती हैं जब पंजाब की सीमा स्थिर हो। जब तक सीमा स्थिर न हो तब तक यही कहा जाएगा कि पांच ही क्यों हैं? कलकत्ते तक की सभी नदियां क्यों नहीं? परंतु हम देखते हैं कि वेदों में देशों की सीमा का कहीं पर वर्णन नही है, इसलिए वेद में आया हुआ संख्या वाचक वर्णन नदियों के लिए नही कहा जा सकता।
यहां तक हमने वेद में आये हुए राजाओं, ऋषियों, और नदियों से संबंध रखने वाले शब्दों को यद्यपि विस्तार से नही, तथापि पूरे विवेचन के साथ नमूना दिखलाने के लिए लिखा और उन मंत्रों में आए हुए अन्य शब्दों के साथ मिला कर देखा तो यही ज्ञान हुआ कि ये पदार्थ लोक से संबंध रखने वाले ऐतिहासिक पदार्थों से कुछ भी संबंध नही रखते।
हम मंत्रों का भाष्य नही करते। हमें भाष्य करना पसंद भी नही है। हम तो यहां मंत्र या मंत्रांश लिखकर उन शब्दों की जिनसे इतिहास निकाला जाता है, उसी मंत्र को अन्य शब्दों से मिलाकर केवल यह दिखलाते हैं कि इन ऐतिहासिक शब्दों का साथ दूसरे शब्द नही देते। बस, इसके सिवा हम और कुछ नही करते।
ऐतिहासिक लोग राजाओं, ऋषियों और नदियों के शब्दों पर ही विशेष जोर देते हैं। पर हम चाहते हैं कि आगे इतिहास से संबंध रखने वाले नगर और देशों के नामों का भी कुछ वर्णन करके नमूना दिखला दें कि वेद में आए हुए नगर और देश संबंधी शब्द भी कुछ दूसरा ही मतलब रखते हैं।
नगर और देश
वेदों में नगर संबंधी शब्द नही हैं। वेदों में इतिहास बतलाया जाता है। इतिहास मनुष्यों का होता है और मनुष्य किसी ग्राम या नगर में बसते हैं। परंतु यहां भी दशा भिन्न है। वेदों में जिन राजा और ऋषियों का इतिहास बतलाया जाता है उनके निवास स्थानों ग्रामों और नगरों का वर्णन वेदों में नही है। इससे यह बात बिलकुल ही सिद्घ हो जाती है कि वेदों में इतिहास नही है। इतिहास निकालने वालों ने इस प्रश्न को जान बूझकर छोड़ दिया है।
अभी राजाओं का वर्णन करते हुए हमने अंबा, अम्बिका और अम्बालिका के साथ काम्पील नगर को देखा कि उसका संबंध बालिकाओं से नही है। काम्पील उस स्थान का नाम है, जिसमें उक्त औषधियां पाई जाती हों। क्योंकि उक्त अम्बादिकों को काम्पीलवासिनी कहा गया है यदि उक्त कथाएं ऐतिहासिक होतीं तो उनका निवास काशी या हस्तिनापुर होता। काम्पील से तो उनका कोई वास्ता ही नही है। अत: काम्पील शब्द उस काम्पील नगर के लिए नही आया, जो कन्नौज के पास है। किंतु उस स्थान का वाचक है जहां वे दवाईयां पैदा होती हैं। इसी तरह अथर्ववेद में अयोध्या नगरी का नाम आता है। पर उसका मतलब उस अयोध्या से नही है, जिसको कि राजा इक्ष्वाकु ने बसाया था, देखो वेद की अयोध्या का कैसा उत्तम वर्णन है-
अष्टाचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या।
तस्यां हिरण्मय: कोश: स्वर्गो ज्योतिषावृत:।।
तस्मिन हिरण्यये कोशे त्रयरे त्रिप्रतिष्ठिते।
तस्मिन यद यक्षमात्मन्वत तद्वै ब्रह्माविदो विदु: (अथर्व. 10/2 /31-32)
अर्थात आठ परिखा और नव द्वारवाली देवनगरी अयोध्या है। इसमें हिरण्यकोश है, जो स्वर्ग ज्योति से आवृत है। यहां तिहरा बंदोबस्त है और यक्ष आत्मा की भांति बैठा है, जिसको ब्रह्माविद लोग जानते हैं। कहिए कैसी अध्योध्या है? कैसा उत्तम वर्णन है? और कैसी यह शरीर रूपी नगरी है। वैदिक काल में महाराजा मनु के वंशजों ने सरयू तट पर अयोध्या नगरी बसाई थी और वेद के शब्द से ही उसका नाम रखा था।
क्रमश:
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।