कथनी और करनी में समानता रखते थे लाल बहादुर शास्त्री जी

अंकुर सिंह

अमेरिका के राष्ट्रपति ने शास्त्री जी को कहा कि अगर युद्ध नहीं रुका तो गेहूं का निर्यात बंद कर दिया जाएगा। फिर, शास्त्री जी ने कहा- बंद कर दीजिए, और फिर अक्टूबर 1965 में दशहरे के दिन दिल्ली के रामलीला मैदान में शास्त्री जी ने देश की जनता को संबोधित किया।

दो अक्टूबर को महात्मा गांधी के साथ-साथ देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्मदिन होता है, शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर को शारदा प्रसाद और रामदुलारी देवी के घर उत्तर प्रदेश के मुगलसराय जिले के रामनगर (वर्तमान का पंडित दीनदयाल नगर) में हुआ था। नेहरू जी के निधन के बाद शास्त्री जी देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने। शास्त्री जी के ईमानदारी और सादगी-पूर्ण जीवन के अनेक क़िस्से है-

पहला वाक़या जिक्र कर रहा हूं, जब शास्त्री जी देश के प्रधानमंत्री थे, एक बार उनके बेटे सुनील शास्त्री ने रात कहीं जाने हेतु सरकारी गाड़ी लेकर चले गए और जब वापस आए तो लाल बहादुर शास्त्री जी ने पूछा, कहां गए थे सरकारी गाड़ी लेकर? इस पर सुनील जी कुछ कह पाते की इससे पहले लाल बहादुर शास्त्री जी ने कहा कि सरकारी गाड़ी देश के प्रधानमंत्री को मिली है ना की उसके बेटे को, आगे से कहीं जाना हो तो घर के गाड़ी का प्रयोग किया करो, शास्त्री जी यही नहीं रुके उन्होंने अपने ड्राइवर से पता करवाया की गाड़ी कितने किलोमीटर चली है और उसका पैसा सरकारी राजकोष में जमा करवाया। 
आजकल जन प्रतिनिधियों के परिजनों के साथ उनके करीबी लोग भी उन्ही के सरकारी गाड़ी में घूमते हैं।
दूसरा वाक़या जिक्र कर रहा हूं, लाला लाजपतराय ने आजादी की लड़ाई लड़ रहे गरीब देशभक्तों के लिए सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी बनायीं थी जो गरीब देशभक्तों को पचास रुपये की आर्थिक मदद प्रदान करती थी, एक बार जेल से उन्होंने अपनी पत्नी ललिता जी को पत्र लिखकर पूछा कि क्या सोसाइटी की तरफ से जो 50 रुपये आर्थिक मदद मिलती हैं उन्हें, जवाब में ललिता जी ने कहा हाँ जिसमे से 40 रुपये में घर का खर्च चल जाता है, ये पता चलते ही शास्त्री जी बिना किसी देर किये सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी को पत्र लिखा कि मेरे घर का खर्च 40 रुपये में हो जाता हैं, कृपया मुझे दी जानी वाली सहयोग 50 रुपये से घटा कर 40 रुपये कर दी जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा दूसरे लोगो को भी आर्थिक सहयोग मिल सकें।
आज का युग में तो यदि जन प्रतिनिधियों के सैलरी बढ़ोत्तरी की बात हो तो क्या सत्ता पक्ष, क्या विपक्ष दोनों एक मत हो इस मांग पर अपना समर्थन दे देते हैं, ये नहीं सोचते की वो तो सरकारी पैसे से मौज से जी रहे है और देश का किसान, मज़दूर इत्यादि अभाव की जिंदगी जी रहे हैं। 
किस्सों के दौर में आगे चलते है तो एक किस्सा और जुड़ा है शास्त्री जी से, शास्त्री जी जब प्रधानमंत्री थे और उन्हें मीटिंग के लिए कहीं जाना था और कपड़े पहन रहे थे तो उनका कुर्ता फटा था जिस पर परिजनों ने कहा आप नया कपड़ा क्यों नहीं ले लेते इस पर पलट कर शास्त्री जी ने कहा की मेरे देश के अब भी लाखों लोगों के तन पर कपड़े नहीं है, फटा हुआ तो क्या हुआ इसके ऊपर कोट पहन लूंगा।
ऐसे थे हमारे शास्त्री जी, आज के जनप्रतिनधियों, मंत्रियों के सूट लाखों में आते हैं इन्हें इससे फर्क नहीं पड़ता की देश के लाखों लोगों की वार्षिक आय भी नहीं होगी लाखों रुपये।

कथनी और करनी में समानता रखते थे लाल बहादुर शास्त्री, बात सन् 1965 का जब भारत और पाकिस्तान का युद्ध चल रहा था और भारतीय सेना लाहौर के हवाई अड्डे पर हमला करने की सीमा के भीतर पहुंच गयी थी। घबराकर अमेरिका ने अपने नागरिकों को लाहौर से निकालने के लिए कुछ समय के लिए युद्धविराम की अपील की उस समय हम अमेरिका की पीएल-480 स्कीम के तहत हासिल लाल गेहूं खाने को बाध्य थे हम। अमेरिका के राष्ट्रपति ने शास्त्री जी को कहा कि अगर युद्ध नहीं रुका तो गेहूं का निर्यात बंद कर दिया जाएगा। फिर, शास्त्री जी ने कहा- बंद कर दीजिए, और फिर अक्टूबर 1965 में दशहरे के दिन दिल्ली के रामलीला मैदान में शास्त्री जी ने देश की जनता को संबोधित किया। उन्होंने देशवासियों से एक दिन का उपवास रखने की अपील की और साथ में खुद भी एक दिन उपवास का पालन करने का प्रण लिया और देश के सीमा के रक्षक जवान और देश के अंदर अन्नदाता के लिए जय जवान जय किसान का नारा दिया।  
10 जनवरी 1966 को ताशकंद में भारत के प्रधानमंत्री शास्त्री जी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच बातचीत करने का समय निर्धारित थी। लाल बहादुर शास्त्री और अयूब खान तय किये गये निर्धारित समय पर मिले। बातचीत काफी लंबी चली और दोनों देशों के बीच शांति समझौता भी हो गया। ऐसे में दोनों मुल्कों के शीर्ष नेताओं और प्रतिनिधि मंडल में शामिल अधिकारियों का खुश होना उचित था। लेकिन उस दिन की रात शास्त्री जी के लिए मौत बनकर आई। 10-11 जनवरी के रात में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की संदिग्ध परिस्थितों में मौत हुई। ताशकंद समझौते के कुछ घंटों बाद ही भारत के लिए सब कुछ बदल गया। विदेशी धरती पर संदिग्ध परिस्थितियों में भारतीय प्रधानमंत्री की मौत से सन्नाटा छा गया। शास्त्री जी की मौत के बाद तमाम सवाल खड़े हुए, उनकी मौत के पीछे साज़िश की बात भी कही जाती है, क्योंकि, शास्त्री जी की मौत के दो अहम गवाह उनके निजी चिकित्सक आरएन चुग और घरेलू सहायक रामनाथ की सड़क दुर्घटनाओं में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई तो यह रहस्य और गहरा हो गया।
देश के नागरिकों को चाहिए की शास्त्री जी के मौत की निष्पक्ष जांच की मांग करें सरकार से, यहीं शास्त्री जी के प्रति देशवासियों की सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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