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संपादकीय

गाय पर कुरान और इस्लाम

cowजिन लोगों ने इस देश में हिंदू मुस्लिमों के मध्य घृणा का परिवेश बनाकर एक दूसरे को साम्प्रदायिक पालों में खड़ा करने का प्रयास किया है, इस देश के वास्तविक शत्रु वही हैं। इस्लाम की व्याख्या करने वालों ने अपने लिये हिंदू समाज की धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं के विपरीत चलना ही उचित माना। कहने का अभिप्राय है कि इस्लाम के इन व्याख्याकारों ने यह बताया कि एक और एक यदि दो होते हैं और हिंदू समाज ऐसा ही मानता है तो तुम इन्हें दो ना कहकर तीन कहो। इसी में इस्लाम का भला है।

ऐसे ही लोगों ने विश्व की माता के रूप में पालन करने वाली गौ माता के प्रति हिंदुओं की अत्यधिक आस्था देखकर इस्लाम के मानने वालों को बताया कि तुम्हें गौ का अनादर करना है। हिंदुओं की अपनी धार्मिक मान्यता इस पशु की पूजा (गुणों का सम्मान) करने की है, तो तुम्हें यह काटना है। फलस्वरूप हमारे देश में सदियों से गोकशी की ऐसी घटनाएं होती आ रही हैं, जिनसे साम्प्रदायिक परिवेश बिगड़ता रहता है और साम्प्रदायिक दंगे फेलाकर देश में आग लगाने वालों की चांदी कटती रहती है।

वैसे इस्लाम के विषय में यह भी सत्य है कि इसका वास्तविक मानवतावादी स्वरूप इसी के व्याख्याकारों ने कभी सामने आने नही दिया है। इसे ‘आतंक का धर्म’ बनाने के प्रयास किये गये हैं, जिससे इसके कुछ मौलिक सिद्घांत सामने आने से रह गये हैं। अन्यथा सत्य यह है कि इस्लाम और उसके पैगंबर साहब और प्रतिष्ठित नेता गाय को सम्मान की दृष्टि से देखते रहे हैं। हजरत मुहम्मद (नासिहाते हादौ) फरमाते हैं-‘‘गाय का दूध और घी तुम्हारी तंदुरूस्ती के लिए बहुत आवश्यक है। उसका गोश्त नुकसानदेह और बीमारी पैदा करता है, जबकि उसका दूध भी दवा है।’’

बेगम हजरत आयशा से हजरत मुहम्मद कहते हैं-गाय का दूध बदन की खूबसूरती और तंदुरूस्ती बढ़ाने का जरिया है।

कुरान शरीफ में आया है ‘‘बिलाशक तुम्हारे लिए चौपायों में भी सीख है, उनके (गाय के) पेट की चीजों में से गोबर और खून के बीच में से साफ दूध जो पीने वालों के लिए स्वाद वाला है हम तुम्हें पिलाते हैं।’’ (कुरान शरीफ 16-66)

मौला फारूखी द्वारा संकलित ‘बरकत और सरकत’ में मुहम्मद साहब कहते हैं‘‘अच्छी तरह पली हुई 90 गायें सोलह वर्षों में न सिर्फ 450 गायें और पैदा करती है, बल्कि उनसे हजारों रूपये का दूध और खाद भी हमें मिलते हैं। गाय दौलत की रानी है।’’

गाय के प्रति इस्लाम के ऐसे दृष्टिकोण को समझकर ही कुछ वर्ष पूर्व पांच लाख मुसलमानों ने राष्ट्रपति को अपने द्वारा हस्ताक्षरित ज्ञापन देकर देश में गोहत्या निषेध को पूर्णत: लागू कराने की मांग की थी। 1857 की क्रांति के समय मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने गोहत्या बंदी के लिए विधिवत शाही हुक्मनामा जारी किया था। जिस पर देश में अच्छी प्रतिक्रिया हुई थी। बाबर ने अपने पुत्र हुमायूं को राजगद्दी सौंपने से पूर्व यह समझाया था कि इस देश में गाय के प्रति लोगों की असीम श्रद्घा है, इसलिए देश के लोगों का विश्वास जीतने के लिए तुम्हें भी गाय के प्रति सम्मान प्रदर्शित करना है। हमें गाय के प्रति अन्य मुगल बादशाहों के भी ऐसे ही आदेश मिलते हैं। जिनसे स्पष्ट होता है कि साम्प्रदायिक परिवेश को देश में बनाये रखने का अच्छा प्रयास उनकी ओर से भी किया गया।

ब्रिटिश काल में जिन मुसलमान शासकों ने अपनी इन रियासतों में गोहत्या बंदी करायी थी वे थे-नवाब रावनपुर, नवाब मंगरौल, नवाब दुजाना (करनाल), नवाब गुडग़ांव और नवाब मुर्शिदाबाद। मौलाना फारूखी लिखित खैरव बरकत से पता चलता है कि शरीफ मक्का ने भी गोहत्या पर प्रतिबंध लगवाया था। इमाम जाफरसाहब ने इरशाद फरमाया था गाय का दूध दवा है, इसके मक्खन में शिफा (तंदुरूस्ती) है और मांस में बीमारी है। मौलाना हयात साहब खानखाना हाली हमद साहब ने भी कहा है कि मुसलमान को गाय नही मारना चाहिए। ऐसा करना हदीश के खिलाफ है।

अब गाय पर कुरान के पाक विचारों को एक प्रदेश में पोस्टर पर दिखा देने से कुछ लोगों ने शोर मचाना आरंभ किया है कि ऐसा करना संबंधित प्रदेश की सरकार की तानाशाही है। इसकोइलेक्ट्रोनिक मीडिया ने बढ़ चढक़र परोसा है और यह दिखाने का प्रयास किया है कि ऐसा पोस्टर लगाने से भी विवाद खड़ा हो गया है। एक तार्किक बात और एक प्रमाणिक साक्ष्य यदि दिया जा रहा है तो फिर इलेक्ट्रोनिक मीडिया या चैनल वालों द्वारा अपनी दुनिया के स्वर्ग में उसे विवादित कैसे मान लिया गया? यह प्रयास तो विवादों को निपटाने के लिए किया गया है कि परस्पर एक दूसरे की बातों का और धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करो, जिस कुरान के नाम पर या मुहम्मद साहब के नाम पर तुम गोकशी का अपराध कर रहे हो, उसके सच को जानो और उसी के अनुसार आचरण करो। इसमें कैसा विवाद, कैसा झगड़ा, कैसा फसाद?

हम इस देश में शांति की प्रार्थना करते हैं और हमारी यह प्रार्थना सामूहिक होनी चाहिए। ऐसा नही होना चाहिए कि एक वर्ग शांति की प्रार्थना करे तो दूसरा उसी समय अशांति का पाठ करे। इस पोस्टर के लगने पर जो लोग यह कह रहे हैं कि अब सरकार हमारा खाना पीना भी तय करेगी, तो उन्हें समझना चाहिए कि सरकार का कार्य अपने लोगों में पारस्परिक सदभाव और भाई चारे को बढ़ाना भी है। हमारे संविधान की प्रस्तावना को सारे देश का ‘संकल्प प्रस्ताव’ माना जाता रहा है जिसमें ऐसी ही प्रतिज्ञा की गयी है कि हम परस्पर बंधुता को बढ़ाने वाली बातों को प्रोत्साहित करेंगे। इसलिए संबंधित सरकार का यह प्रयास प्रशंसनीय है जिससे उसने एक पोस्टर में गाय के विषय में कुरान शरीफ के पाक विचारों को परोसकर इस प्राणी के जीवन की रक्षा को गंभीरता से परोसने का प्रयास किया है।

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