Categories
मुद्दा राजनीति विशेष संपादकीय संपादकीय

देशद्रोही कौन?

भारत में सर्वधर्म समभाव की बातें करते हुए हिंदू मुस्लिम ईसाई के भाई भाई होने की बात कही जाती है। इससे पूर्व भारत का आर्यत्व-हिंदुत्व इस पृथ्वी को एक राष्ट्र तथा इसके निवासियों को भूमिपुत्र कहकर भाई भाई मानता रहा है। हिंदुत्व ने संसार में मानवतावाद फैलाया और इसी को भारतीय धर्म के रूप में स्थापित किया।
पाणिनि ने ऐसे शब्दों को दुष्ट शब्द कहा है जो मूल शब्द में विकृति उत्पन्न करते हैं। जैसे यव का जौ हो जाना, युक्ति का जुगती हो जाना, व्यजन का बीजणा हो जाना, पणज-का बणज और बणज से बंजारा बन जाना इत्यादि। इन शब्दों ने अपने मूल शब्द में विकार-दुर्गंध उत्पन्न की यही इनकी दुष्टता है-इसी प्रकार जो व्यक्ति मानव के मूल धर्म मानवता में विकार पैदा करे-अवरोध डाले- शांति प्रिय लोगों का जीना कठिन करे, वह दुष्ट कहलाता है। क्योंकि ऐसे दुष्ट से मानव समाज की मुख्यधारा में बाधा आती है और जनसाधारण कहीं न कहीं स्वयं को असुरक्षित अनुभव करता है। वेद ऐसे लोगों को समाज के लिए अनुपयुक्त मानता है और ऐसे लोगों के लिए राष्ट्र को आदेशित करता है कि उनका समूलोच्छेदन करो। इन दुष्टों को ही दैत्य, असुर, राक्षस, अनार्य जैसे शब्दों से हमारे यहां पुकारा गया है। ऐसे लोगों का समूलोच्छेदन आवश्यक है। क्योंकि ऐसे लोगों का कोई धर्म (मानवतावाद तक ही सीमित करके लें) नही होता। आज की प्रचलित परिभाषा में जिन्हें धर्म समझा जाता है वो धर्म नही अपितु सम्प्रदाय हैं। यह तो है वेद की व्यवस्था।
अब कुरान की व्यवस्था पर विचार करें। कुरान के बारे में मौलाना मौदूदी, मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसे कितने ही मुस्लिम विद्वानों का मानना है कि कुरान दुनिया को अल्लाह की पार्टी (यानि मुसलमान) और शैतान की पार्टी (यानि मुसलमान) इन दो भागों में बांटकर देखती है। यानि हर मुसलमान पाक व साफ है और खुदा की संतान है, बाकी सब शैतान हैं। इस भाव के रहते भला कैसे मुसलमान अपने पड़ोसी किसी गैर मुसलमान से प्यार करेगा? कुरान की ऐसी बहुत सी आयतें हैं जो गैर मुसलमानों को यानि शैतान की संतानों को या शैतान की पार्टी के लोगों को खत्म करने की आज्ञा देती हैं। उन्हें जब 1924 में लाला लाजपतराय ने पढ़ा तो सी.आर. दास के लिए उन्होंने लिखा था-‘मैंने गत छह माह मुस्लिम इतिहास और कानून (शरीय:) का अध्ययन करने में लगाये। मैं ईमानदारी से हिंदू मुस्लिम एकता की आवश्यकता और वांछनीयता में भी विश्वास करता हूं। मैं मुस्लिम नेताओं पर पूरी तरह विश्वास करने को भी तैयार हूं। परंतु कुरान और हदीस के उन आदेशों का क्या होगा? (जो मानवता को खुदा की पार्टी और शैतान की पार्टी में विभाजित करते हैं।) उनका उल्लंघन तो मुस्लिम नेता भी नही कर सकते।’
इसीलिए भारत में समस्या के मूल पर प्रहार करने से बचकर झूठी ऊपरी एकता की बातें करने वालों को तथा हिंदू मुस्लिम के मध्य सांस्कृतिक रूप से स्थापित गंभीर मतभेदों को उपेक्षित करते हुए कई लोग जिस प्रकार अगंभीर और अतार्किक प्रयास करते हैं, उन्हें टोकते हुए ए.ए.ए. फैजी लिखते हैं-‘इस दिखावटी एकता के धोखे से हमें बचना चाहिए। परस्पर विरोधों के प्रति आंखें नही मूँद लेनी चाहिए। पुराने धर्मग्रंथों के उद्वरण दे देकर प्रतिदिन भारत वासियों की सांस्कृतिक एकता और सहिष्णुता का बखान नही करना चाहिए। यह तो अपने आपको नितांत धोखा देना है। इसका राष्ट्रीय स्तर पर त्याग किया जाना चाहिए।’
बात साफ है कि फैजी साहब हर उस मुसलमान को जो दुनिया को दो पार्टियों में बांटता है और शरीय: में विश्वास करता है, किसी भारत जैसे देश के लिए देशद्रोही मानते हैं, और शासन को उनके प्रति किसी प्रकार के धोखे में न आने की शिक्षा देते हैं। जो मुसलमान शरीय: में विश्वास नही करते उनकी देश भक्ति असंदिग्ध हो सकती है। पर उनकी संख्या कितनी है? चाहे जितनी हो वो अभिनंदनीय हैं। उनके दिल को चोट पहुंचाना इस लेख का उद्देश्य नही है।
परंतु एम.आर.ए. बेग क्या लिखते हैं? तनिक उस पर भी विचार कर लेना चाहिए। वह लिखते हैं-‘न तो कुरान और न मुहम्मद ने ही मानवतावाद (भारत के वास्तविक धर्म का) का अथवा मुसलमान गैर मुसलमान के बीच सह अस्तित्व का उपदेश दिया है। वास्तव में इस्लाम काज्धर्म के रूप में गठन ही दूसरे सभी धर्मों को समाप्त करने के लिए किया गया है। इससे यह भी समझा जा सकता है कि किसी भी देश का संविधान जिसमें मुसलमान बहुसंख्यक हों, धर्मनिरपेक्ष क्यों नही हो सकता? और धर्मनिष्ठ मुसलमान मानवतावादी क्यों नही हो सकता?’
इसका अर्थ है कि एक मुसलमान को उसकी कट्टर धर्मनिष्ठा ही देशद्रोही और मानवता विरोधी बनाती है। इसीलिए बेग साहब अपनी पुस्तक ‘मुस्लिम डिलेमा इन इंडिया’ में आगे पृष्ठ 112 पर कहते हैं-‘वास्तव में कभी कभी ऐसा लगता है कि मुस्लिम आशा करते हैं, कि सभी हिंदू तो मानवतावादी हों पर वह स्वयं साम्प्रदायिक बने रहें।’
पृष्ठ 77 पर उसी पुस्तक में बेग साहब ने लिखा है-‘इस्लाम को निष्ठा से पालन करते हुए भारत का उत्तम नागरिक होना असंभव है।’
एम.जे. अकबर ने भारत के धर्मनिरपेक्ष बने रहने पर अच्छा विचार दिया है कि आखिर भारत धर्मनिरपेक्ष क्यों बना रहा है? इस पर वह लिखते हैं:-‘भारत धर्मनिरपेक्ष राज्य इसलिए बना हुआ है कि दस हिंदुओं में से नौ अल्पसंख्यकों के विरूद्घ हिंसा में विश्वास नही करते।’भारत के बहुसंख्यकों का ऐसा विचार प्रशंसनीय है। राष्ट्र के नागरिकों के मध्य ऐसा ही भाव होना भी चाहिए। परंतु बात बहुसंख्यकों की नही है-बात अल्पसंख्यकों की है कि उन्हें कैसा होना चाहिए? उन्हें निश्चित ही बहुसंख्यकों के आम स्वभाव का अनुकरण करना चाहिए।
एम.सी. छागला साहब ‘रोजेज इन डिसेम्बर’ नामक अपनी पुस्तक के पृष्ठ 84 पर लिखते हैं-‘यदि किसी योग्य व्यक्ति की उपेक्षा अथवा उसको उन्नति से केवल इसलिए वंचित करना साम्प्रदायिकता है कि वह मुस्लिम, ईसाई या पारसी है तो यह भी साम्प्रदायिकता है कि उसकी नियुक्ति केवल इसलिए कर दी जाए कि वह इनमें से किसी अथवा किसी दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय से है।’
हामिद दलवाई ‘मुस्लिम पॉलिटिक्स इन सैक्युलर इंडिया’ के पृष्ठ 29 पर लिखते हैं-‘जब तक मुस्लिम साम्प्रदायिकता को समाप्त नही किया जाएगा, हिंदू साम्प्रदायिकता कभी समाप्त नही की जा सकेगी। साम्प्रदायिक मुसलमान पूरे भारत को इस्लाम में धर्मान्तरित करने के अपने स्वर्णिम सपनों में इतने खोए हुए हैं कि कोई भी तर्क उनके व्यवहार को बदलने में सफल नही हो सकता। उन्हें यह विश्वास कराना आवश्यक है कि उनके इस दिशा में किये गये सभी प्रयास असफल होंगे और उनकी आकांक्षाएं कभी भी पूरा होने वाली नही हैं। सर्वप्रथम उनके भव्य सपनों का मोहभंग करने की आवश्यकता है।’ मुशीरूल हक अपनी पुस्तक ‘इस्लाम इन सैक्यूलर इंडिया’ के पृष्ठ 12 पर लिखते हैं-‘बहुत से मुसलमान ऐसा विश्वास करते हैं कि भारतीय शासन को तो धर्मनिरपेक्ष बना रहना चाहिए किंतु मुसलमानों को धर्मनिरपेक्षता से दूर ही रहना चाहिए।’ इस प्रकार बात स्पष्टï है कि जो मुसलमान देश में शरीय: कानून को देश के कानून से ऊपर रखने की बात करते हैं उनके विषय में जैसा कि ऐनीबीसेंट ने कहा है-कि ऐसी सोच राष्ट्र की स्थिरता के विरूद्घ विद्रोह है-ही सही है। कुछ लोगों का तर्क है कि देश में हिंदू भी देशद्रोही काम करते पाए गये हैं, तो हमें उन देशद्रोहियों का भी पक्ष नही लेना है। हां, जो लोग ये मानते हैं कि खाद्य वस्तुओं में मिलावट करना भी देशद्रोह है, वो भूल में हैं-ये देशद्रोह नही अपितु एक अनैतिक और अवैधानिक कार्य है। देशद्रोह के लिए विद्रोह का भाव होना आवश्यक है, पूरे शांति प्रिय समाज के लिए एक चुनौती बन जाना आवश्यक है। जबकि अनैतिक और अवैधानिक कार्य करने वाले लोग मुनाफा कमाने के लिए चुपचाप अपनी व्यावसायिक गतिविधियों में संलिप्त रहते हैं। जब ऐसी गतिविधियों को किसी संगठन का, या सम्प्रदाय का, या समूह का संरक्षण मिल जाए तो तब वह अनैतिक और अवैधानिक कार्य भी देशद्रोह में सम्मिलित हो जाता है। जैसे हिजबुल मुजाहिद्दीन, लश्कर-ए-तैय्यबा जैसे आतंकी संगठनों के कार्य तथा नक्सलवादियों के कार्य इत्यादि। सारे ऊपरिलिखित मुस्लिम विद्वान भारत देश के प्रति मुस्लिमों की आस्था को शरीय: के रहते संदिग्ध मानते हैं, अत: शरीय: के रहते देश के कानूनों का उल्लंघन, देश के आम समाज को शैतान की पार्टी मानना, देश में मुस्लिम शासन की स्थापना के सपने बुनना इत्यादि घातक इरादे देशद्रोह की श्रेणी में ही आते हैं। यदि कोई हिंदू भी देश के किसी भाग में देश के कानूनों से ऊपर अपना कानून चलाए या अपना राज्य स्थापित करने का सपना संजोए तो वह भी देशद्रोही है। चूंकि देशद्रोह देश की प्रभुसत्ता, एकता और अखण्डता को चोट पहुंचाने वाली किसी भी गतिविधि का नाम है। जबकि अनैतिक और अवैधानिक कार्यों में देश की प्रभुसत्ता, एकता और अखण्डता सुरक्षित रह सकती है और वो अनैतिकता और अवैधानिकता सदा देश के कानून से ही दंडित भी होती है। वह कभी स्वयं को देश के कानून से ऊपर घोषित नही करती, यद्यपि देश के कानून के लिए एक चुनौती अवश्य होती है। उससे देश का आम समाज आहत होता है परंतु आतंकित नही, जबकि देशद्रोहियों की गतिविधियों से जनसाधारण आतंकित रहता है-क्योंकि उनकी सोच आम समाज के सर्वथा विपरीत होती है, और कई बार आम आदमी के खून से होली खेलकर भी वो लोग अपनी बात की ओर आपका ध्यान खींच सकते हैं। उन्हें देश के आम समाज के विपरीत चलना ही अच्छा लगता है।
इसीलिए कुरान की मंशा के खिलाफ जाकर भी अधिकतर मुसलमान गाय कटवाते हैं, ताकि देश का बहुसंख्यक समाज उत्तेजित हो। बात किसी की सोच को कोसने की नही है बात शास्त्रार्थ अर्थात स्वस्थ चर्चा और चिंतन से स्वस्थ सामाजिक परिवेश की स्थापना करने की होनी चाहिए। उसके लिए गलत बातों को छोडक़र सही और राष्ट्रोचित बातों को अपनाना ही पड़ेगा। ‘गलत धारणाएं बदलो और भारत बदलो’ के आदर्श पर चलने से ही लाभ हो सकता है। देशद्रोही इस देश के मूल्यों से, संस्कृति से, और इतिहास से घृणा करने वाला और उन्हें मिटाने वाला हो सकता है। इस देश की भूमि को वह पुण्य भू: और पितृ भू: न मानने वाला होता है, जबकि एक अनैतिक और अवैधानिक कार्य करने वाला इन सबके प्रति स्वाभाविक रूप से आस्थावान हो सकता है, वह इन चीजों से कोई समझौता नही कर सकता जबकि देशद्रोही सबसे पहले इन पर ही प्रहार करता है। गाय का मांस हिंदू के द्वारा खाना भी एक अनैतिक कार्य है, यह बात देशभक्ति से जोडक़र नही देखी जा सकती। क्योंकि ऐसा करने वाला अपने देश, धर्म और संस्कृति के प्रति आक्रामक लोगों के खिलाफ कई बार स्वयं भी आक्रामक होता है।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version