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भयानक राजनीतिक षडयंत्र विशेष संपादकीय

किसान आंदोलन का सच और मोदी सरकार

पर्वों से पूर्व किसानों को एमएसपी बढ़ोतरी का तोहफा शीर्षक से समाचार दैनिक जागरण समाचार पत्र में पढ़ा।

जिसकी छाया प्रति संलग्न की जा रही है।
सर्वप्रथम यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि भाजपा की केंद्रीय सरकार और प्रदेश सरकार की कुछ नीतियों का मैं समर्थन करता हूं।
लेकिन इसका कदापि तात्पर्य यह नहीं है कि मैं प्रत्येक नीति का समर्थन ही करूं।
किसान आंदोलन के विषय में मैंने भाजपा की नीतियों का समर्थन किया और किसानों के आंदोलन के विपरीत बार बार लिखा है।
जो कि संसद के द्वारा बनाया गया कानून सड़क पर ऐसे लोगों की जिद के कारण समाप्त नहीं किया जा सकता ।अगर ऐसा मान लिया जाता है तो गलत परंपरा देश में चल निकलेगी और इससे प्रेरित होकर अन्य प्रकार की जिद्द भी सरकारों के समक्ष होने लगेंगी। मैं इसका पक्षधर नहीं हूं।
हमारे देश के प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री दोनों से अथवा भाजपा के अन्य राष्ट्रीय, प्रादेशिक एवं स्थानीय नेताओं से एक प्रश्न पूछना चाहता हूं कि आप किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए 3 किसान कृषि सुधार कानून लाए थे, जिसमें से आज केवल एक बिंदु पर चर्चा करते हैं कि आपने किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए मिनिमम सपोर्ट प्राइस( न्यूनतम समर्थन मूल्य )निर्धारित प्रत्येक फसल का किया। परंतु किसानों के द्वारा जो यह मांग की जा रही है कि मिनिमम सपोर्ट प्राइस पर फसल उत्पाद को खरीदना निश्चित कर दें ,तभी तो किसान को उसका उचित मूल्य प्राप्त होगा । जो आज तक लागू नहीं हुआ।अगर भाजपा के लोग समझने की कोशिश करते तो देखेंगे कि बाजार में, मंडी में किसान की फसल मिनिमम सपोर्ट प्राइस पर नहीं बिक रही है। मिनिमम सपोर्ट प्राइस से कम पर किसान अपनी फसल उत्पाद को बेच रहा है। लेकिन जब वही किसान अथवा जनसाधारण बाजार में उस अनाज को अथवा वस्तु को खरीदने के लिए जाता है ,जो पहले उससे मिनिमम सपोर्ट प्राइस से कम रेट पर खरीदी गई थी, तब उस समय व्यापारी, मध्यवर्ती अर्थात बिचौलिए यह कहते हैं कि हमने मिनिमम सपोर्ट प्राइस अमुक दर पर यह खरीद की है ।अतः इस से कम पर नहीं दी जा सकती। उदाहरण के तौर पर बाजरा का मूल्य बाजार में यदि हम यह मान लें कि सरकार द्वारा अट्ठारह सौ रुपया प्रति कुंटल तय किया गया है। जिसका अर्थ है कि ₹18 किलो खरीदा बेचा गया। परंतु वास्तव में ऐसा बाजरा 11_12सौ रुपए में प्रति कुंटल किसान से मंडी में अथवा खुलेना व्यापारियों द्वारा खूब खरीदा जा रहा है जिसका तात्पर्य है कि 11 या ₹12 किलो किसान को मिला।
जब किसान अथवा जनसाधारण व्यापारी बिचौलिए ,मध्यवर्ती, वितरक से खरीदने के लिए गया तो उसको वही बाजरा ₹20 किलो में बेचा जाता है जिसका सीधा सा अर्थ है की 8_9 रुपया प्रति किलो पर सीधा सीधा लाभ व्यापारी को हो रहा है।
भाजपा को पहले बनिए और ब्राह्मणों की पार्टी कहा जाता था , ऐसी जनमानस की अवधारणा भाजपा के विषय में थी,जो आज भी समृद्ध होती हुई प्रतीत होती है। जिस तरीके से मध्यवर्ती, बिचौलिए, बनिए, व्यापारी लाभ कमा रहे हैं तो किसान अथवा जनसाधारण की दृष्टि में जो प्रारंभ में विचार था भाजपा के प्रति वह आज भी बना हुआ है कि यह केवल बनियों को लाभ पहुंचाने के लिए आई पार्टी है। इस प्रकार किसान दिग्भ्रमित हो रहा है और उसको ऐसा विश्वास कुछ लोगों द्वारा विपक्षी पार्टियों द्वारा पैदा किया जा रहा है यह बनियों की पार्टी है। अडानी आदि ग्रुप इसको चला रहे हैं। जनसाधारण के एवं किसान का मन का भी यह भ्रम अब विश्वास में तब्दील होने लगा है। किसानों को विपक्षियों की और आंदोलनरत किसान।नेताओं की बातों में, चाहे निराधार ही सही लेकिन दम लगने लगा है। विपक्ष और किसान नेता जनसाधारण को भरमाने में कामयाब हो रहे हैं।
भाजपा वाले समझे अथवा न समझें लेकिन जनसाधारण और किसान इस वास्तविकता को समझ चुका है ।नीति चाहे केंद्र सरकार की हो चाहे प्रदेश सरकार की हो, किसान हित में अथवा जनहित में अवश्य प्रशंसनीय हो सकती है। लेकिन नीति का, योजना का क्रियान्वयन किस प्रकार से हो रहा है ?
किसान को क्या उचित मूल्य मिल रहा है ?किसान क्या वास्तव में लाभान्वित हो रहा है ?क्या किसान की आय दोगुनी तो छोड़ दीजिए मूल रूप में लगाई गई लागत भी प्राप्त हो रही हैअथवा डेढ़ गुनी भी हुई या नहीं हुई?
ऐसे ही अनेक महत्वपूर्ण प्रश्न है। जिन पर भाजपा को जवाब देना होगा। नीतियों के क्रियान्वयन में गलती है। सीधा_ सीधा लाभ व्यापारी और मध्यवर्ती उठा रहे हैं। किसान तो फिर भी परेशान हैं। यदि केंद्र की सरकार और प्रदेश की सरकार किसान की हालत को सुधारने के लिए वास्तव में गंभीर है तो भाजपा को चाहिए था कि किसान की बिजली के बकाया माफ कर दें, गन्ने का भुगतान बकाया समय पर करा दें, तथा बिजली की आपूर्ति मुफ्त में किसान के लिए अलग से फीडर स्थापित करके दी जानी चाहिए। तब कुछ इस देश के किसान की स्थिति आर्थिक स्थिति सुधार की तरफ लाई जा सकती है। नहीं तो भाजपा नीत सरकार निश्चित रूप से मान लीजिए ,समझ लीजिए कि यह नीति किसान को भी लाभान्वित नहीं कर रही है। यह ऐसा सत्य है बल्कि ऐसा कटु सत्य है कि जो भाजपा वालों को समझाना चुनाव से पहले जरूरी है। अन्यथा पश्चाताप के अतिरिक्त अन्य कुछ आपके हाथ नहीं लगेगा। आपकी अफसरशाही, भाजपा के छुट भैया नेता चाहे कुछ भी आंकड़े प्रस्तुत करते रहें परंतु हम नेको_ बद हुजूर को समझाए देते हैं ।
मैंने पहले भी लिखा है शाइनिंग इंडिया, फीलगुड जैसे नारे भी आपके पहले वर्ष 2004 के चुनाव में फेल हो चुके हैं। 2004 जैसी परिस्थितियां वर्तमान मेंबनती हुई आ रही हैं क्योंकि ब्राह्मण वर्ग जो हमेशा से सत्ता सुख भोगी रहा है ,जिसका जनसांख्यिकीय अनुपात कम होने के बावजूद भी अफसरशाही में और सत्ता में सीधी भागीदारी एवं हस्तक्षेप सदियों से रहता आया है। वह ब्राह्मण वर्ग भाजपा नीत सरकार में अपने आपको सत्ता सुख से वंचित होता हुआ अनुभव करने लगा है। वह धीरे-धीरे भाजपा से खिसक रहा है तथा जहां, जिस दल में उसकी महत्वाकांक्षा पूरी होंगी ,सत्ता सुख भोगने को मिलेगा वह निश्चित रूप से उसी के साथ जाएंगे। किसान वर्ग में जाट नामक जाति भाजपा से नाराज है। क्योंकि हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पंजाब में यह जाति अपने तरीके से शासन चलाना चाहती है। इसमें कोई संदेह नहीं है। किसान आंदोलन की आड में सत्ता की लड़ाई चल रही है। जिस हरियाणा को यह जाति अपना प्रदेश मानती है वहां पर अपनी जाति के अतिरिक्त अन्य कोई मुखिया हो इसको स्वीकार नहीं है। वास्तविकता किसान आंदोलन की यह है।
अतः भाजपा नीत सरकार शाइनिंग इंडिया और फीलगुड के भरम में ना रहे कि किसान हमने मालामाल कर दिया। नहीं ,मालामाल आपने बिचौलिए कर दिए। किसान की आर्थिक स्थिति सुधरी नहीं है किसान कल भी परेशान था आज भी परेशान है।

देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
चेयरमैन उगता भारत पत्र

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