Categories
कृषि जगत

अद्भुत अधिपादप वटवृक्ष


बरगद अथवा वट वृक्ष एक खास किस्म के वृक्षों के परिवार का सदस्य है इस परिवार में वृक्षों की दुनिया में 900 से अधिक प्रजातियां शामिल है। बरगद पीपल गुलर अजीर के एक ही परिवार के सदस्य है इन सभी वृक्षों के फलों में एक छोटे से कीट ततैया का निवास होता है वह कीट ही इन पेड़ों के परागण में विशेष भूमिका निभाता है जिससे इन पर फल आते है फल में ही बीज व्यवस्थित रहते हैं। बरगद के वृक्ष के बीज बहुत ही नन्हे आकार में छोटे होते हैं। इसके बीजों के सीधे जमीन पर गिर कर बीज अंकुरित होकर वृक्ष बनने की संभावना बहुत कम होती है । भगवान ने बहुत ही अद्भुत खासियत से बरगद के वृक्ष को लैस किया है।

बरगद की इस विशेषता को वनस्पति विज्ञान की भाषा में अधिपादप (Aphefyte)वृक्ष कहा जाता है। बरगद के बीज अपने आसपास के किसी दूसरे वृक्ष के तने शाखाओं में स्थित छिद्रों में अंकुरित होते हैं इसके बीज महीन होने के कारण फलाहारी चिड़िया जंतुओं के मल के माध्यम से बिना क्षतिग्रस्त हुए वृक्ष के तने शाखों पर पहुंच जाते हैं इस परिघटना को सीड डिस्पर्सल कहते हैं। अर्थात बरगद का वृक्ष किसी दूसरे के तने पर फलते फूलते हैं इसका मतलब यह नहीं है यह अपने आश्रय दाता वृक्ष को नुकसान पहुंचाता है उसके पोषण को खींचता है यह आकाश बेल की तरफ परजीवी वृक्ष नहीं है यह सहजीवी वृक्ष है अर्थात यह जिस वृक्ष पर उगता है उस वृक्ष भोजन आपूर्ति को बगैर बाधित किए सीधे वातावरण की नमी वायु व वर्षा के जल से सीधा पोषण प्राप्त करता है। बरगद वृक्ष कृतज्ञ है जैसे यह बड़ा हो जाता है इसकी जड़े सीधे जमीन से संपर्क बनाती है यह अपने आश्रय दाता वृक्ष के साथ-साथ असंख्य जीवों को सहारा देता है भोजन छाया औषधीय जड़ी बूटियां अपनी फूल पत्तियों दूध के माध्यम से। इस वृक्ष की जड़े हवा में बिना संपर्क बनाए हुए वृद्धि करती जिन्हें एरियल रूट कहा जाता है। इसकी जड़े ही इस के तने में तब्दील हो जाती है प्राकृतिक आपदा आकाश से बिजली से मुख्य तने के नष्ट होने पर भी यह कभी नष्ट नहीं हो पाता इसी कारण इसे अक्षय वट कहा जाता है । पृथ्वी पर उपलब्ध ज्ञात वनस्पतियों में सर्वाधिक लंबा जीवन यही वृक्ष जीता है 500 वर्ष से लेकर 1000 वर्ष तक इस वृक्ष की आयु होती है। दुनिया के सबसे बड़े आयु में सर्वाधिक बड़े बरगद के वृक्ष भारत में ही पाए जाते हैं एक पश्चिम बंगाल तो एक आंध्र प्रदेश राज्य में है लगभग 20 बीघा भूमि में यह फैले हुए हैं 250 से 300 वर्ष के बीच की आयु है। इसकी चमकदार हरि आकार में अर्धदीर्घ वृत्त आकार पत्तियां भी इसे विशेष बनाती हैं।

हमारे देश में इस अद्भुत वृक्ष का वृक्षारोपण सार्वजनिक स्थानों पर किया जाता था जरूरत पड़ने पर कोई भी रोग आवश्यकतानुसार इसके फल फूल पत्तियों जटा दूध को प्राप्त कर सकता था यह बहुत सामाजिक परोपकारी मनोविज्ञान धार्मिक स्थलों पर इसके वृक्षारोपण के संबंध में। ऐतिहासिक धार्मिक ग्रंथ रामायण में इसका अनेक जगह वर्णन है ।

भारत के स्वाधीनता संग्राम में जालिम अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को सर्वाधिक इसी वृक्ष पर फांसी दी क्योंकि यह वृक्ष आकार में बड़ा सघन मजबूत था। यही कारण है 1950 में भारत सरकार ने इसे अपना राष्ट्रीय वृक्ष बनाया इससे परोक्ष प्रतीक के तौर पर आजादी की बलिवेदी पर कुर्बान होने वाले लाखों वीर वीरांगनाओं क्रांतिकारियों को भी श्रद्धांजलि दी गई। भारत के साथ-साथ यह वृक्ष बांग्लादेश भूटान नेपाल श्रीलंका का भी राष्ट्रीय वृक्ष है। किसी भी तरह का रक्त विकार गर्भपात संतान हीनता से लेकर घाव का संक्रमण चोट मोच परजीवी का हमला कोई भी रोग हो यह वृक्ष सभी में गुणकारी है। भारत जैसे विविध जलवायु से समृद्ध उष्ण जलवायु प्रधान देश के लिए यह वृक्ष अद्भुत वरदान है ईश्वर का।

अभी गई वट अमावस्या की आप सभी को शुभकामनाएं।

आर्य सागर खारी✍✍✍

Comment:Cancel reply

Exit mobile version