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महत्वपूर्ण लेख संपादकीय

क्या उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा हार जाएगी ?

पिछले दिनों भाजपा उत्तर प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर गंभीर दिखाई दी। परंतु बाद में यह निर्णय लिया गया कि आगामी विधानसभा चुनाव वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। अब प्रश्न यह है कि भाजपा ने ऐसा मन क्यों बनाया कि पूरे देश में हिंदुत्व के चेहरे के रूप में स्थापित योगी आदित्यनाथ को हटाकर किसी नए चेहरे के नेतृत्व में वह उत्तर प्रदेश चुनाव लड़ने की बात सोचने लगी ? क्या योगी आदित्यनाथ का चेहरा भाजपा की नैया पार लगाने में अब अक्षम सिद्ध हो गया है या भाजपा नेतृत्व किसी और बात को लेकर आशंकित है ?
योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व के बारे में यदि एक दैनिक समाचार पत्र की खबर पर विश्वास किया जाए तो पता चलता है कि भाजपा और आरएसएस दोनों ने मिलकर अपने चुनावी सर्वेक्षण में यह निष्कर्ष निकाल लिया है कि यदि उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया तो भाजपा आगामी विधानसभा चुनावों में 100 सीटों से नीचे सिमट जाएगी । इसके चलते भाजपा ने योगी आदित्यनाथ के स्थान पर राजनाथसिंह को लाने का मन बनाया, लेकिन राजनाथसिंह को मोदी और अमित शाह चाहे जितना हल्का समझते हैं या हल्का करने का प्रयास करते हैं उनके बारे में यह बात सही व सच है कि वह भी राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं। उन्हें पता है कि 8 महीने में वह पार्टी को जीत की तरफ नहीं ले जा सकते और यदि उनके नेतृत्व में चुनाव होने पर भाजपा उत्तर प्रदेश में हार गई तो चुनाव में हारने का ठीकरा उनके ऊपर फोड़कर उन्हें भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पाल में लगा देगा। ऐसे में भाजपा की मजबूरी और जरूरी स्थिति यह बन गई है कि अब वह आगामी विधानसभा चुनाव योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ही लड़ेगी।
हमारा मानना है कि भाजपा को अगला चुनाव योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ही लड़ना चाहिए। उन्होंने जो ‘मेहनत’ की है यदि जनता उसको समझ कर उन्हें फिर से कमान सौंपती है तो यह उनकी अपनी ‘उपलब्धि’ होगी और यदि जनता उनसे नाराज है तो इसे भी उन्हीं की ‘उपलब्धि’ रहने दिया जाए ।
योगी आदित्यनाथ के विषय में यह सच है कि वह प्रदेश को जातिवादी राजनीति से बाहर नहीं कर पाए हैं। सपा और बसपा की शैली में उन्होंने भी जातिवाद को बढ़ावा दिया है। यही कारण है कि उन पर जातिवाद को प्रोत्साहित करने के गंभीर आरोप लग रहे हैं। यह कितने सच हैं और कितने झूठ हैं , इसका फैसला जनता ही करेगी। उन्हें 2017 में जब प्रदेश की जनता ने मुख्यमंत्री के रूप में चुना था तो उनके सन्यासी स्वरूप से यह अपेक्षा की गई थी कि वे ‘सबका साथ – सबका विकास’ करने में विश्वास रखेंगे। अब यदि जातिवाद के आरोप उन पर लगे हैं तो यह निश्चय ही बहुत गंभीर विषय है। हमें यह बात समझ लेनी चाहिए कि यदि सन्यासी लोग भी जातिवाद के संकीर्ण दायरे से अपने आपको निकालने में अक्षम हैं तो फिर देश की राजनीति का बेड़ा गर्क होना तय है। उन्हें लोगों ने किसी जाति विशेष का समझकर समर्थन नहीं दिया था बल्कि हिंदुत्व का ध्वजवाहक समझा था, इसलिए लोगों ने जातिवाद से ऊपर उठकर भाजपा और योगी आदित्यनाथ को प्रदेश का नेतृत्व सौंपा था। आज यदि उनकी कार्यशैली से हिंदू आहत होकर फिर जातिवाद में विभाजित होकर अगले चुनाव में अपना मतदान करने जा रहा है तो उसे ऐसा करने का संवैधानिक अधिकार है। योगी आदित्यनाथ को उनके संकीर्ण हिंदुत्व की सजा या पुरस्कार मिलना ही चाहिए।
जातिवाद की राजनीति से बाहर न निकलना जहां योगी आदित्यनाथ की कमजोरी मानी जा रही है वहीं दूसरी सबसे गंभीर गलती उनके नेतृत्व से यह हुई है कि उन्होंने पुलिस प्रशासन को असीमित अधिकारों के साथ सड़क पर उतार दिया। अपने जनप्रतिनिधि और पार्टी नेताओं तक को उन्होंने उपेक्षित कर दिया। विधायकों के द्वारा जनता कोई भी काम नहीं करा पाई और पुलिस ने अपनी मनमानी करते हुए पत्रकारों और संभ्रांत वर्ग के लोगों पर भी मनमाने अत्याचार किये। पुलिस की तानाशाही और भ्रष्टाचार से लोग बुरी तरह आहत हुए हैं । पुलिस ने अपनी मनमानी करते हुए निरपराध पत्रकारों को भी मर्डर तक के केस में फंसाने का काम किया। ऐसे पत्रकारों का ‘अपराध’ केवल यह था कि उन्होंने पुलिस प्रशासन में व्याप्त तानाशाही और भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज बुलंद की थी।
जिस पर योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्रियों तक ने कभी कोई अपने स्तर से ऐसी कार्यवाही नहीं की जिससे ऐसे उत्पीड़न समाप्त किया जा सकें।
सपा और बसपा के शासनकाल में लोग अपने नेता और अपने विधायक के माध्यम से प्रशासन पर दबाव बनाकर कार्य करवाने में सफल हो जाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं हुआ। यद्यपि सपा और बसपा जैसी जातिवादी राजनीति करने वाली पार्टियों के शासनकाल में गलत काम भी हुए। पार्टी के लोगों ने जनसाधारण के साथ अन्याय अत्याचार करने में किसी प्रकार की कमी नहीं छोड़ी। अवैध ठेकेदारी और अवैध कब्जों, हत्याओं आदि का बाजार बहुत अधिक गर्म रहा। अब योगी आदित्यनाथ को गलत कामों को होने से रोकना चाहिए था, लेकिन अच्छे कामों को करने में यदि अधिकारी या लालफीताशाही आनाकानी कर रही है या मनमर्जी करती है तो उस पर शासन का डंडा भी होना चाहिए था। जिसे उन्होंने हटा लिया और नौकरशाही को स्वच्छंद कर दिया। विधायक लगभग निष्प्रभावी बनकर घरों में बैठे रहे और अधिकारी अपनी मनमर्जी करते रहे हैं। इसके अतिरिक्त पार्टी के जिलाध्यक्ष तक भी अपने कार्यकर्ताओं या जनसामान्य के काम कराने में असफल रहे। पिछले चुनावों में जिन लोगों ने यादव होते हुए सपा का विरोध किया और भाजपा का झंडा बुलंद किया आज वे या तो ढीले पड़ गए हैं या पीछे हट गए हैं। उसका कारण केवल एक ही है कि ना तो उन्हें न्याय मिला और न सम्मान मिला। ऐसे में यदि भाजपा अगला चुनाव हारती है तो उसके लिए योगी आदित्यनाथ की नीतियां निश्चित रूप से जिम्मेदार मानी जाएंगी। यद्यपि हिंदू आज भी हिंदुत्व के नाम पर योगी आदित्यनाथ में विश्वास व्यक्त करता है, परंतु उसे ऐसा हिंदुत्व नहीं चाहिए जो संकीर्ण हो और साथ ही जो प्रशासन को उसके ऊपर तानाशाह बनाकर बैठाने वाला हो।
उक्त दैनिक समाचार पत्र में छपी खबर के अनुसार अगले साल होने वाले उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा द्वारा किए गए एक आंतरिक सर्वे में पार्टी को 100 सीटें भी मिलती हुई दिखाई नहीं दे रही हैं। अख़बार के अनुसार इस सर्वे रिपोर्ट से भाजपा नेताओं को यह आभास हो गया है कि पार्टी उत्तरप्रदेश में बिना क्षेत्रीय दलों के सहयोग से अपना मिशन पूरा नहीं कर सकती है। इसलिए भाजपा ने उत्तरप्रदेश के छोटे दलों पर डोरे डालने शुरू कर दिए है।
हमारा मानना है कि भाजपा और आरएसएस को भी अपने गिरेबान में झांकना चाहिए और अपने नेता की कार्यशैली पर विचार करना चाहिए। उन्हें यह पता लगाना चाहिए कि यदि भाजपा 5 साल में ही इस स्थिति में आ गई है तो उसका कारण क्या है ? जहां तक आरएसएस की बात है तो उसे भी अपना यह भ्रम दूर कर देना चाहिए कि वह ‘किंग मेकर’ नहीं है, समय परिस्थिति के अनुसार जनता का झुकाव उनके अनुकूल हुआ तो उन्हें इतना अहंकार हो हो गया कि उन्होंने आदमी से आदमी ही कहना बंद कर दिया। वह सोच रहे थे कि लोग उन्हें कलयुग कर राम मानेंगे, लेकिन बहुत कम समय में ही लोगों ने उन्हें कलयुग का रावण मानना आरंभ कर दिया है। उनका अहंकार इस समय सिर चढ़कर बोल रहा है।
निश्चित रूप से उनका हिंदुत्व ‘अहंकारी’ हो चुका है, उन्हें भी अहंकार न होकर विनम्र भाव से वास्तविक ‘किंग मेकर’ अर्थात मतदाता के दरबार में अब हाजिर होना ही होगा। अब आते हैं भाजपा की ओर । भाजपा ने कई मामलों में अपने आपको कांग्रेस की बी टीम के रूप में प्रस्तुत करने का काम किया है। जिससे लोगों में अब यह धारणा बन रही है कि भाजपा का हिंदुत्व ‘दोगला’ है।
उत्तर प्रदेश को फिर कब्जाने के लिए योगी आदित्यनाथ के संकीर्ण हिंदुत्व को त्यागना होगा, आरएसएस के अहंकारी हिंदुत्व से भी मुक्ति प्राप्त करनी होगी और भाजपा के दोगले हिंदुत्व के अंधकार को मिटाना होगा। तभी अगले 5 साल के लिए भाजपा उत्तर प्रदेश में आ सकती है।
परिस्थितियां अभी बहुत ज्यादा बिगड़ी नहीं हैं। अभी उन्हें सुधारा जा सकता है । क्योंकि प्रदेश का हिंदू समाज अभी भी भाजपा और योगी आदित्यनाथ से विशेष अपेक्षाएं कर रहा है। उन्हें सपा का मुस्लिम प्रेम अभी भी याद है। जिसके आते ही कानून व्यवस्था बिगड़ेगी और पशुओं को काट काटकर उनका मांस खुले चौराहों पर बेचने का काम फिर जोर पकड़ेगा। इसके अतिरिक्त मायावती की बसपा यदि आती है तो उसमें भी मुस्लिम तुष्टिकरण किया जाना तय है। जबकि कांग्रेस की ओ लोगों की अभी भी नजरें नहीं जा रही हैं वह अभी भी नेपथ्य में पड़ी हुई है। इसलिए समय रहते भाजपा और संघ को चेतना होगा। उत्तर प्रदेश को जीतने के लिए किसी ‘पीके’ अर्थात प्रशांत किशोर को तलाशने की आवश्यकता नहीं है ,ना ही :पीके’ अर्थात सत्ता की दारू पीकर काम करने की आवश्यकता है, यहाँ तो ‘पीके’ अर्थात पुरुषार्थ करके सत्ता को कब्जाने की आवश्यकता है।
उन्हें समझ लेना चाहिए कि राम उन्हीं का बेड़ा पार करते हैं जो मर्यादाओं का पालन करते हैं और पुरुषार्थ करके जीवन जीने की कला में माहिर होते हैं।
संकीर्ण ,अहंकारी और दोगले लोगों को तो स्वयं राम भी छोड़ देते हैं।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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