Categories
विशेष संपादकीय

गणतंत्र के ये अहम सवाल

भारत एक बार फिर अपना गणतंत्र दिवस मना रहा है। 1950 की 26 जनवरी से हम अपना यह पवित्र राष्ट्रीय पर्व मनाते आ रहे हैं। यह वह दिवस है जिसे प्राप्त करने के लिए भारत ने सैकड़ों वर्ष का संघर्ष किया। जब पहला विदेशी आक्रांता यहां आया, उसी दिन से उसे बाहर निकालने की लड़ाई आरंभ हो गयी। सैकड़ों वर्ष तक हम अपना गौरवमयी स्वातंत्रय समर निरंतर लड़ते रहे। इन सैकड़ों वर्षों तक हमने बहुत कुछ खोया। बस, जिंदा रहे तो अपना राष्ट्र धर्म, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता की भावना रही और यही भावना भारत की आत्मा थी, जिसने अंत में अपने अमरत्व का परचम लालकिले पर फहरा कर विश्व को आश्चर्यचकित कर दिया।
भारत ने अपने लिए अपना संविधान बनाने का निर्णय लिया। 9 दिसंबर 1946 को संविधानसभा की पहली बैठक हुई। पहली बैठक की अध्यक्षता डा. सच्चिदानंद सिन्हा ने की, 11 दिसंबर 1946 को संविधानसभा ने अपना स्थायी अध्यक्ष डा. राजेन्द्र प्रसाद को चुना। डा. सिन्हा और डा. राजेन्द्र प्रसाद दोनों ही भारतीय संस्कृति के मर्मज्ञ थे। संविधान सभा में कांग्रेस के पुरूषोत्तम दास टण्डन, डा. भीमराव अंबेडकर, सरदार पटेल और कई मुस्लिम सदस्य भी ऐसे थे जो कि उस समय भारत के गणतंत्र को अतीत की गलतियों से सबक लेकर सही रास्ते पर ले चलने के लिए कटिबद्घ थे। वह नही चाहते थे कि देश में साम्प्रदायिक आधार पर आरक्षण देकर देश को फिर विभाजन की ओर चलने की डगर पर डाल दिया जाए।
28 अगस्त 1947 को संविधान सभा में अल्पसंख्यकों और मूल अधिकारों पर सरदार पटेल ने अपनी रपट पेश की। इसमें सरदार पटेल ने सभी अल्पसंख्यकों के ‘दृष्टिकोणों, भावनाओं, अनुभूतियों और उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने की चेष्टा’ की। जिसे संविधान सभा के सभी वर्गों ने बहुत सराहा था। अल्पसंख्यकों के लिए अलग चुनाव क्षेत्र की जो मांग कुछ वर्गों के द्वारा उस समय की जा रही थी उसे पटेल ने कड़ाई से निरस्त कर दिया था। तब संविधान सभा की सलाहकार समिति का हर सदस्य सरदार पटेल के साथ था। पंजाब राव देशमुख खड़े हुए और उन्होंने अल्पसंख्यकों के लिए अलग चुनाव क्षेत्र की मांग को निरस्त करने की पटेल की घोषणा पर रिपोर्ट निर्मित करने वालों को साधुवाद दिया। उन्होंने कहा था कि अल्पसंख्यक शब्द भारत में अंग्रेजों ने निर्मित किया और इस शब्द ने ही देश का बंटवारा करवा दिया।
तब कांग्रेस के आयंगर ने कहा था कि मुसलमान देश के अन्य समुदायों के साथ मिलकर एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करें। अलग चुनाव क्षेत्र स्वीकार करने का परिणाम हर गांव में एक छोटा पाकिस्तान निर्मित करना होगा। पूर्व में अनेक मुस्लिम विद्वान सदस्यों ने भी संविधान सभा की बैठकों में अपने विचार व्यक्त किये थे कि साम्प्रदायिक चुनाव क्षेत्र राजनीतिक समितियों में एक गंभीर दोष है। अनेक अंग्रेजों ने भी स्वीकार किया था कि अलग चुनाव क्षेत्रों के कारण आज देश का बंटवारा करना पड़ा।
सरदार पटेल ने संविधान सभा के माध्यम से उन लोगों को लताड़ा जो छदम धर्मनिरपेक्ष का लबादा ओढ़कर किसी भी तरह से फिर साम्प्रदायिक आरक्षण की बातें कर रहे थे और कह रहे थे कि हम आपके साथ हैं, बस आप हमारी अमुक अमुक मांगें मान लो।
लौहपुरूष ने कहा कि भारत में ‘द्विराष्ट्र के सिद्घांत’ को लादने का प्रयास न किया जाए। यह कहने का कोई अर्थ नही है कि हम लोग एक अलग चुनाव क्षेत्र की मांग करेंगे, किंतु आपके निर्णयों का पालन करेंगे। हम लोगों ने कई वर्षों तक सुना है और इस आंदोलन का परिणाम यह हुआ उन लोगों ने कहा कि अलग चुनाव क्षेत्र या कुछ और भी उनकी सुरक्षा के लिए पर्याप्त नही है। इसलिए उन लोगों ने अलग राज्य की मांग की। हम लोगों ने कहा-‘ठीक है, लीजिए। किंतु इस बात से सहमत होइए कि बाकी बचा 80 प्रतिशत भारत एक देश होगा। पटेल ने भारत में साम्प्रदायिक आरक्षण की पैरोकारी करने वालों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि ‘आप अब भी चाहते हैं कि दो देश हों? क्या आप मुझे एक स्वाधीन देश दिखाएंगे जिसका आधार धार्मिक है?
अगर इस दुर्भाग्य पूर्ण देश को इससे फिर उत्पीडि़त होना है, बंटवारे के बाद भी तो लानत है, इस घटना पर इसके लिए जीना व्यर्थ है।’
सरदार पटेल के शब्दों का जवाब किसी के पास नही था। कांग्रेस सहित संविधान सभा के सभी सदस्य पटेल के बेबाक विचारों से सहमत थे।
सरदार पटेल ने किसी भी मुस्लिम नेता की उस झूठी अपील को गैरजरूरी माना कि हम भारत के साथ हैं और हम पर शक न किया जाए। वह चाहते थे कि हर मुसलमान भारतीय है और उसे भारत के प्रति अपनी व्यावहारिक निष्ठा का प्रदर्शन करना चाहिए। वह व्यावहारिक रूप से भारत के प्रति निष्ठावान हर मुस्लिम के प्रति उदार और सहयोगी होना राष्ट्रधर्म की पहली अनिवार्यता मानते थे। उनके स्पष्टवादी विचार कई बार कठोर लगते थे परंतु उनमें मुस्लिमों की बर्बादी नही बल्कि खुशहाली छिपी होती थी। उन्होंने कहा था कि ”भारत में 4.5 करोड़ मुसलमान थे, उनमें से अनेक लोगों ने पाकिस्तान के निर्माण में सहयोग दिया था यह कैसे विश्वास किया जा सकता है कि वे रात भर में बदल जाएंगे? मुसलमानों ने कहा कि वे देशभक्त नागरिक है और इसलिए उनकी निष्कपटता पर क्यों शक किया जाना चाहिए? उनसे हम लोग पूछते हैं कि आप हमसे क्यों पूछते हैं, आप यह सवाल अपनी अंतरात्मा से पूछिए।”
सरदार पटेल ने अन्यत्र कहा है कि मैं मुसलमानों का सच्चा मित्र हूं। यद्यपि मुझे उनके सबसे बड़े शत्रु के रूप में नामित किया गया है। मैं स्पष्ट रूप से अपनी बात कहने में विश्वास करता हूं। मैं नही जानता कि मृदु शब्दों में किसी का खण्डन किस प्रकार किया जाता है। मैं स्पष्ट रूप से उनसे कहना चाहूंगा कि इस स्थिति में भारतीय संघ के प्रति देशभक्ति की घोषणा मात्र कर देने से उन्हें कोई सहायता नही मिलेगी। उन्हें अपनी घोषणा का व्यावहारिक प्रमाण प्रस्तुत करना होगा।
मृदु शब्दों में देश के मुस्लिमों का मूर्ख बनाकर उन्हें वोट बैंक के रूप में प्रयोग करने की नीति पर पटेल की पार्टी कांग्रेस ही चल निकली। इसलिए तुष्टिकरण और छदम धर्मनिरपेक्षता की जिन देखी भाली नीतियों को कांग्रेस और संविधान सभा ने सरदार पटेल के प्रस्ताव पर पूर्णत: नकार दिया था उन्हीं नीतियों को फिर अपना कर देश को विखण्डन की ओर बढऩे के लिए विवश किया जा रहा है। गणतंत्र के 65वर्षों में हम आगे नही बढ़े हैं, बल्कि लगता है कि हम पीछे के कटु अनुभवों को दोहराने के लिए इतिहास को विवश कर रहे हैं। अतीत के कटु अनुभवों में फिर घुस जाना प्रगति नही दुर्गति होती है। गणतंत्र दिवस हमें आगे बढऩे के लिए प्रेरित करता है। प्रत्येक देशवासी को आगे बढऩे का अधिकार है, यह उसका मौलिक अधिकार भी है। परंतु इस अधिकार को कभी साम्प्रदायिक शिक्षा, साम्प्रदायिक कानून और साम्प्रदायिक विद्वेष भाव से ना तो दिया जा सकता है और ना लिया जा सकता।
काले अंग्रेज हम पर शासन कर रहे हैं और हमें लड़ा रहे हैं। हम मंदिर-मस्जिद को लेकर लड़ नही रहे हैं लड़ाए जा रहे हैं, हम मुजफ्फरनगर में लड़े नही ल़ाए गये। ये लड़ाने वाले कौन थे, कहां हैं और हमारे बीच आज तक जीवित कैसे बचे रहे? 65वें गणतंत्र दिवस के ये अहम प्रश्न हैं, जिनके उत्तर ढूंढने के लिए किसी बेबाक सरदार पटेल के नेतृत्व की तलाश भारत को है, क्योंकि उसी नजरिए से देश में विकास की गंगा बह सकती है, और देश का साम्प्रदायिक माहौल भी अच्छा रह सकता है।

By देवेंद्र सिंह आर्य

लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version