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विशेष संपादकीय वैदिक संपत्ति

मनुष्य का आदिम ज्ञान और भाषा-11

गतांक से आगे………
इस नील रंग का व्यापार मिश्र की जिस नदी के द्वारा होता था, उसको भी यहां रहने वाले नील ही कहते थे, जो नाइल के नाम से अब तक प्रसिद्घ है। जायसवाल महोदय कहते हैं कि भारतवासी नील नदी को जानते थे। हम कहते हैं कि यहां वाले नील नदी को जानते ही न थे, प्रत्युत उन्होंने ही उसका नामकरण भी किया था इसलिए वहां की सभ्यता भारतीय आर्यों की सभ्यता से प्राचीन नही प्रत्युत वह भारतीय इतिहास के अंतिम राजवंश से भी है। ऐसी दशा में उस सभ्यता की तुलना वेदों के समय के साथ नही हो सकती। वेद तो आर्यों के प्रारंभिक हृास से भी पूर्व के हैं। अतएव वे न केवल मिश्र की सभ्यता से ही प्रत्युत संसार की समस्त मानवीय सभ्यताओं से भी अधिक प्राचीन है। परंतु जो लोग वेदों से इतिहास और ज्योतिष संबंधी वर्णनों को निकाल कर वेदों को नवीन करना चाहते हैं, उनके मत की भी आलोचना कर लेना आवश्यक है।
वेदों में ऐतिहासिक वर्णन
वेदों में ऐसे शब्दों को देखकर जो पुराणों में ऐतिहासिक पुरूषों, नदियों और नगरों के लिए व्यवहृत हुए हैं, प्राय: विद्वान कहते हैं कि वेदों में इतिहास है और उस इतिहास का सिलसिला पुराणों में दी हुई वंशावलियों के साथ बैठ जाता है। वे कहते हैं कि वेद में आये ऐतिहासिक राजाओं की पीढिय़ों को पौराणिक वंशावलि में देखकर और बीस-पच्चीस वर्ष की पीढ़ी मानकर, वेद का काल निश्चित किया जा सकता है और ज्योतिष के द्वारा निकाले गये समय के साथ मिल जाता है। भारतवर्ष का इतिहास प्रथम खण्ड के पृष्ठ 55 में श्रीमान मिश्र बंधु कहते हैं कि विलसन ने वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु का समय 3500 ई. सन पूर्व माना है। वेदों के अवलोकन से विदित होता है कि उनमें रामचंद्र के पूर्वपुरूष सुदास का यदु, तुर्वसु और मनु के वंशजों के साथ युद्घ वर्णित है।
सुदास रामचंद्र से 11 पीढ़ी पहिले हुए थे, अत: इन दोनों का अंतर प्राय: तीन सौ वर्ष का था। सो यह समय 2450 विक्रम पूर्व का पड़ता है। सुदास के पीछे किसी सूर्यवंशी राजा का वर्णन वेदों में नही है। उधर स्वयं चाक्षुष मनु, वैवस्वत मनु और ययाति वैदिक ऋषियों में थे। वैवस्वत मनु का समय ऊपर 3800 विक्रम पूर्व लिखा जा चुका है। चाक्षुष मन्वन्तर के ठीक पहले का होने से चार हजार विक्रम पूर्व का माना जा सकता है। अत: पौराणिक कथनों का वैदिक वर्णनों से मिलान करने पर प्रकट होता है कि 2500 से 4000 विक्रम पूर्व तक के कथन वेदों में हैं।
ऊपर लिखा जा चुका है कि तिलक महाशय ने ज्योतिष के आधार पर वेदों का समय 4000 विक्रम पूर्व से 2500 विक्रम पूर्व तक माना है। हम देखते हैं कि वही समय पौराणिक वर्णनों से भी निकलता है। इस वर्णन में पौराणिक वंशावलि के साथ वेदों के शब्दों और लो. तिलक महाराज के ज्योतिष के निष्कर्ष का सामंजस्य किया गया है। परंतु इस सामंजस्य में दो दोष हैं, एक तो पौराणिक वंशावलियां आनुपूर्वी राजों की वंशावलियां नही हैं किंतु प्रसिद्घ राजाओं की नामावलियां हैं। दूसरे वेदों में ऐतिहासिक राजाओं का वर्णन नही है और न वेदों में किसी ज्योतिष की ही घटना का उल्लेख है। ऐसी दशा में वेदों से वेदों का कोई समय निश्चित नही हो सकता। वेदों से इस प्रकार का समय निश्चित करने का मौका प्राय: पुराणों ने ही दिया है। क्योंकि पुराणों ने नामावलियों को वंशावलि बनाकर और वैदिक अलंकारों को राजाओं के इतिहासों के साथ जोड़कर उपर्युक्त झंझट फेेला दिया है। अत: हम यहां पहिले देखना चाहते हैं कि क्या ये वंशावलियां सही हैं और फिर देखना चाहते हैं कि क्या वेदों में किसी इतिहास या ज्योतिष घटना का उल्लेख है?
पुराणों की वंशावलियां
पुराणों में जो वंशावलियां दी हुई हैं, उनके दो विभाग हैं। पहला विभाग महाभारत युद्घ से उस पार का हूं और दूसरा विभाग इस पार का। पहला विभाग वंशावलि नही प्रत्युत नामावलि है और दूसरा विभाग वंशवलि है। अत: हम यहंा पहले विभाग की पड़ताल करते हैं। 1. पहले विभाग की वंशावलि के नामों की संख्या निश्चित नही है प्रत्येक पुराण में अलग अलग संख्या दी हुई है। विष्णुपुराण में मनु से लेकर महाभारत कालीन वृहदल तक 92 पीढ़ी, शिवपुराण में 82 पीढ़ी, भविष्यपुराण में 91 पीढ़ी और भागवत में 88 पीढ़ी लिखी हैं। इससे ज्ञात होता है कि यह वंशावलि नही प्रत्युत नामावलि है। 2. महाभारत के प्रथम अध्याय में सूक्ष्म और विस्तार के नाम से पास ही पास दो वंशावलियां दी हुई हैं। ये वंशावलियां भी मनु से लेकर महाभारतकालीन शान्तनु तक की ही हैं। पर एक में तीस पीढ़ी और दूसरी में तेतालीस पीढ़ी के नाम हैं। इससे भी ये नामावलियां ही ज्ञात होती हैं। 3. इन वंशाविलयों में पिता पुत्र के नामों का भी ठिकानाा नही है।
रामायण-महाभारत
वाल्मीकि रामायण में दिलीप के भगीरथ, उनके ककुत्स्थ, उनके रघु और रघु की बारहवीं पीढ़ी में अज का होना लिखा है, पर रघुवंश में दिलीप के रघु और रघु के पुत्र अज लिखे हुए हैं। वाल्मीकि के अनुसार रघु दिलीप के प्रपौत्र ठहरते हैं, किंतु रघुवंश के अनुसार वे पुत्र ही ज्ञात होते हैं। 4. इसी तरह महाभारत में नहुष और ययाति चंद्रवंश में गिनाये गये हैं, पर वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 70 के श्लोक 36 में लिखा है कि सूर्यवंशी अम्बरीष के नहुष नहुष के ययाति और ययाति के नाभाग हुए। इससे भी ये नामावलियां ही सिद्घ होती हैं। 5. इन नामावलियों के बीच के हजारों नाम छूट गये हैं। इसका उत्कृष्ट प्रमाण सूर्यवंश और चंद्रवंश के मिलान से मिलता है।
क्रमश:

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