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कृषि जगत

जब ऊँटविहीन होता था थार मरुस्थल

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संस्कृत में ऊंट के लिए उष्ट्र शब्द है….. इसी से उष्ट्रासन बना है… ऊंट से प्रेरणा लेकर ही योग स्वास्थ्य मनीषियों ने उष्ट्रासन को इजाद किया जो मधुमेह मोटापे अवसाद के लिए बहुत लाभदायक है….|

 

इसकी शारीरिक विलक्षणता क्षमताओं के कारण ऊंट को रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है |ऊंट को लेकर बहुत सी कहावतें हैं… जैसे ऊंट किस करवट बैठेगा, जब वक्त बुरा आता है तो ऊंट पर बैठे इंसान को भी कुत्ता काट जाता है…. वगैरा-वगैरा| किसी ने यह ख्याल नहीं किया जब रेगिस्तान के जहाज ऊंट पर आफत आए तो क्या किया जाए? हमारे देश में वर्ष 2012 में 19वीं पशु गणना में ऊंटों की आबादी 4 लाख थी जो अब वर्ष 2019 की 20 वी पशु गणना में महज 250000 रह गई है…. 7 सालों में ही ऊंटों की संख्या में 37 फ़ीसदी की गिरावट आ गई है…. राजस्थान में महज 213000 ऊंट की संख्या बची है राजस्थान में देश के 85 फ़ीसदी ऊंटों की आबादी है शेष 15 फ़ीसदी गुजरात हरियाणा में पाई जाती है……|

ऐसे ही चलता रहा तो ऊंट केवल चिड़ियाघघरों में रह जाएगा बगैर ऊंट के ऊंट को लेकर प्रचलित कहावत बेईमानी हो जाएंगी| सब कुछ होगा रेगिस्तान भी होगा लेकिन रेगिस्तान का जहाज ऊंट नहीं होगा|

हजारों लाखों बरसों से ऊंट ने रेगिस्तानी बाशिंदों को मरुस्थलीय सभ्यताओं को फलने फूलने का अवसर दिया है| ऊंट की खूबियां जो जगत नियंता परमेश्वर ने इसको दी है ऊंट की कुछ खूबी आपके साथ साझा करना चाहूंगा| इसे रेगिस्तान का जहाज यूं ही नहीं कहा जाता…. बेहद कम चारे पानी के अभाव से बचने के लिए यह अपनी कूबड़ में वसा संचित करके रखता है जरूरत पड़ने पर उसे ऊर्जा में रूपांतरित करता है… इसकी आंखों पर दोहोरी पलकें होती हैं जो इसे रेगिस्तानी धूल भरी आंधियों से बचाती है….. इसके पेट शरीर को रेगिस्तानी प्रवर्तित ऊष्मा से बचाने के लिए ऊंचाई पर स्थापित किया है जमीन से लेकर ऊंट के कूबड़ की ऊंचाई 7 फीट होती है | इसकी विशेष नाक अर्थात नॉस्ट्रिल के कारण जब इसके शरीर से सांस आती जाती है … तो सांसों में जलवाष्प की मात्रा बहुत कम होती है…. इससे पानी की कमी नहीं होती…. इसकी विशेष किडनी गाढ़ा पेशाब बनाती है अतिरिक्त पानी यूरिन के माध्यम से नहीं निकलता…. यही कारण है ऊंट का पेशाब गाढा विशेष गंध लिए होता है…. ऊंट के होंठ मोटे गद्देदार होते हैं जिससे यह कटीली वनस्पतियों को चबा लेता है इसके मुंह को कोई नुकसान नहीं पहुंचता| रेगिस्तान में इससे तेज कोई जीव नहीं दौड़ सकता बिना थके 40 किलोमीटर प्रति मिल की रफ्तार से दौड़ सकता है…. इसका कारण इसके शरीर की विशेष रक्त कणिकाओं का आकार होता है जो हमारी तरह गोला न होकर परवलयाकार आकार होता है…. इसके दूध का तो कोई जवाब ही नहीं… इसकी स्मृति ग्रहण शक्ति जबरदस्त होती है… अपने प्रति किए गए अच्छे व्यवहार तथा दुर्व्यवहार को यह वर्षों तक याद रखता है… रेगिस्तानी प्रस्तुति में अच्छा खासा 40 वर्ष का जीवन इसे मिलता है| ऊंट की ऐसी सैकड़ों खूबियां हैं जिन्हें लिखने पर यह वर्चुअल वॉल भी थोड़ी पड़ जाएगी….|

मुख्य विमर्श चिंता ऊंटों की घटती आबादी को लेकर है जिसके बहुत से कारण है मशीनीकरण माल ढुलाई यातायात के आधुनिक साधन… अर्थात रेगिस्तान से ही निकलने वाली तेल तेलों से चलने वाले वाहन रेगिस्तान के ही जहाज ऊंट के अस्तित्व के लिए खतरा बन गए| दूसरा कारण वर्ष 2014 का राजस्थान सरकार का शासनादेश विशेष नियम है जिसके कारण ऊंटों के व्यापार ऊंटों को राजस्थान राज्य से बाहर ले जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया | यह आदेश ऊंटों के लिए मुसीबत बन गया है पुष्कर जैसे पशु मेलों में ऊंटों की कीमत एकदम घट गई है ऊंटों का कोई खरीददार नहीं रहा है… मेरा यह मानना है शादी समारोह आदि में ऊंटों के प्रदर्शन पर कोई रोक नहीं होनी चाहिए इससे ऊंट परंपरागत रेगिस्तानी जीवन यापन का ना सही राजस्थान के बाहर प्रदर्शन मनोरंजन आजीविका का माध्यम तो बना रहना चाहिए…. ऊंटों के लिए विहार बनने चाहिए…. ऊंट के दूध से बने डेरी प्रोडक्ट की ब्रांडिंग होनी चाहिए |फाइव स्टार स्कूलों में हॉर्स राइडिंग के साथ-साथ कैमल राइडिंग भी होनी चाहिए…. ऊंटों की कुर्बानी पर आजीवन कारावास का प्रावधान होना चाहिए… ऐसे बहुत से क्रियाकलाप है जो ऊंटों की घटती आबादी को रोकने में कारगर हो सकते हैं…|

वर्ष 2014 का राजस्थान सरकार का शासनादेश तत्काल प्रभाव से निरस्त होना चाहिए…. केंद्र सरकार को इसमें दखल देना चाहिए… तब जाकर रेगिस्तान का जहाज बच पाएगा इससे जुड़ी कहावत व्यवहारिक बनी रह पाएंगी, उष्ट्रासन करने का आनंद भी बना रहेगा|

आर्य सागर खारी✍✍✍

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