Categories
इतिहास के पन्नों से

पुण्यतिथि पर विशेष : मुगल वंश के शासक शाहजहां की बेटी जहाँआरा की सबसे चालाक और खर्चीली मुगल बेगम

मुगल सल्तनत में सबसे चतुर, सबसे सुंदर, सबसे विवादास्पद और सबसे धनी कोई शहजादी थी तो वो जहांआरा थीं. शाहजहां की बेटी और औरंगजेब की बहन . उनको लेकर तमाम किस्से हैं. चांदनी चौक का नक्शा उन्हीं की देखरेख में बना. वो विदेशों से व्यापार करती थीं.

आज से ठीक 339 साल पहले मुगल सल्तनत की उस शहजादी का निधन हुआ, जिसे सबसे ताकतवर और खूबसूरत माना गया. औरंगजेब ने अपनी इस बहन को इतना वेतन दिया कि आज इस बारे में सुनकर लोगों की आंखें हैरत से खुल जाएं. वो अपने जमाने की सबसे सुसंस्कृत और फैशनेबल शहजादी भी थीं. जहांआरा को लेकर तमाम किस्से फैले हुए हैं. एक इतिहासकार ने तो यहां तक लिख दिया कि उनके जिस्मानी ताल्लुक अपने पिता शाहजहां से थे.

शहजादी जहांआरा औरंगजेब की इतनी प्रिय थी कि वो लगातार उनके वेतन को बढ़ाता गया. उन्हें एक शानदार महल अलग से दिया गया. उनका वैभव ही अलग था.

भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद की शोध पत्रिका “इतिहास” के अंक में इस पर एक विस्तृत लेख लिखा गया है कि किस तरह मुगल बादशाह हरम में रहने वाली महिलाओं के लिए वेतन की व्यवस्था करते थे. इसका भुगतान किस तरह होता था लेकिन ये हकीकत है कि जहांआरा बेगम को जो वेतन मिला, उसने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए.

जहांआरा को कितना वेतन मिलता था

शुरू में जहांआरा को वेतन के तौर पर 07 लाख रुपए सालाना मिलते थे. मुमताज के निधन के बाद उसमें 04 लाख रुपए की बढोतरी हुई. इस तरह उसका वेतन 10 लाख रुपए सालाना हो गया. उनकी आय कई और स्रोतों से भी होती थी. जिसे मिलाकर सालाना उनकी कमाई डेढ़ अरब थी.

जहांआरा समय बीतने के साथ बादशाह और भाई औरंगजेब की सबसे विश्वासपात्र बन गई. 1666 में औरंगजेब ने जहांआरा के सालाना भत्ते में 05 लाख रुपए का और इजाफा किया. इससे उसका सालाना वेतन 17 लाख रुपया हो गया.

..और कहां से जहांआरा के पास आता था धन

जहांआरा के वेतन में कई जागीरें शामिल थीं. वो पूरे साम्राज्य में फैलीं थीं. इसमें पानीपत के पास की ही एक जागीर से एक करोड़ का राजस्व मिलता था.

इसके अलावा सूरत के बंदरगाह से मिलने वाला शुल्क भी जहांआरा को पायदान के खर्च के लिए इनाम के तौर पर मिला था. इस तरह अगर देखें तो जहांआरा की कुल वार्षिक आय 30 लाख रुपए से ज्यादा थी. आज के ज़माने में इसका मूल्य डेढ़ अरब रुपए के बराबर है.

जहां आरा को कुल मिलाकर सालाना 30 लाख रुपए सालाना की आय होती थी, जो अब के हिसाब से 150 करोड़ से भी ऊपर है

अपनी बेटी को कितना वेतन देता औरंगजेब

औरंगजेब अपनी बेटी जैबुन्निसा बेगम को 04 लाख रुपए सालाना देता था लेकिन जब वह अपनी बेटी से नाराज हुआ तो उसने इसे रोक लिया. मुगल काल में ज्यादातर बादशाहों की बेगमें व्यापार में भी बहुत दिलचस्पी लेती थीं. विदेश के साथ होने वाले व्यापार में उनका हिस्सा होता था. उससे वो कमाई भी करती थीं. इसमें सबसे आगे नूरजहां थीं. जो विदेशों के साथ होने वाले कपड़ों और नील के व्यापार में अपना पैसा लगाती थीं. इससे बड़ा मुनाफा भी उन्होंने कमाया.

सबसे खर्चीली भी थी जहांआरा

हालांकि ये कहा जाता है कि मुगल सल्तनत में सबसे ज्यादा खर्चीला कोई था, तो वो जहांआरा बेगम ही थीं, जो विशेष अवसरों पर लाखों रुपए खर्च कर देती थीं. बेहद शानोशौकत के साथ रहती थीं.

औरंगजेब ने अपनी बहन और शहजादी जहां आरा बेगम के वेतन में दो बार मोटी बढ़ोतरी की. साथ ही समय-समय पर ऐसी जागीरें या बंदरगाह दे दिए, जिससे उसे मोटी कमाई होने लगी

चांदनी चौक जहांआरा ने ही बनवाया था

मशहूर इतिहासकार और ‘डॉटर्स ऑफ़ द सन’ की लेखिका इरा मुखौटी ने बीबीसी से जिक्र किया,  ”जब मैंने मुग़ल महिलाओं पर शोध शुरू किया तो पाया कि शाहजहाँनाबाद जिसे हम आज पुरानी दिल्ली कहते हैं, उसका नक्शा जहाँआरा बेग़म ने अपनी देखरेख में बनवाया था. अपने जमाने का सबसे सुंदर बाज़ार चांदनी चौक भी उन्हीं की देन है. वो अपने ज़माने की दिल्ली की सबसे महत्वपूर्ण महिला थीं. उनकी बहुत इज़्ज़त थी, लेकिन साथ ही वो बहुत चतुर भी थीं.

जहांआरा दारा की प्रिय थीं फिर औरंगजेब की खास बन गईं

दारा शिकोह और औरंगज़ेब में दुश्मनी थी. जहाँआरा ने दारा शिकोह का साथ दिया. लेकिन जब औरंगज़ेब बादशाह बने तो उन्होंने जहाँआरा बेगम को ही पादशाह बेगम बनाया.” इतिहास शोध पत्रिका में लिखा गया है कि दारा की शादी में जहांआरा ने अपने पास से 16 लाख रुपए खर्च कर दिए थे.

बाद में जब दारा शिकोह को हराकर औरंगजेब मुगलिया गद्दी पर बैठा तो जहांआरा उसकी इतनी खास हो गईं कि वो उनसे ज्यादातर सलाह लेता था. कई इतिहास लेखकों ने लिखा है कि जहांआरा बेगम को डच और अंग्रेज व्यापारी अक्सर उपहार भेजा करते थे ताकि उनका काम आसानी से हो जाए.

दरबारी चोरी छिपे बाप- बेटी के ताल्लुकात की बात करते थे

फ़्रेंच इतिहासकार फ़्रांसुआ बर्नियर अपनी किताब, ‘ट्रैवेल्स इन द मुग़ल एम्पायर’ में लिखते है, ”जहाँआरा बहुत सुंदर थीं और शाहजहाँ उन्हें पागलों की तरह प्यार करते थे. जहाँआरा अपने पिता का इतना ध्यान रखती थीं कि साही दस्तरख़्वान पर ऐसा कोई खाना नहीं परोसा जाता था जो जहांआरा की देखरेख में न बना हो.”

बर्नियर ने लिखा है, ”उस ज़माने में हर जगह चर्चा थी कि शाहजहाँ के अपनी बेटी के साथ नाजायज़ ताल्लुक़ात हैं. कुछ दरबारी तो चोरी-छिपे ये कहते सुने जाते थे कि बादशाह को उस पेड़ से फल तोड़ने का पूरा हक़ है जिसे उसने ख़ुद लगाया है.”

औरंगजेब ने उनके निधन पर 03 दिन तक शोक मनाया

16 सितंबर 1681 में 67 साल की उम्र में जहांआरा का निधन हो गया. उनकी मौत की ख़बर औरंगज़ेब के पास तब पहुंची, जब वो अजमेर से डेकन जाने के रास्ते में थे. उन्होंने जहाँआरा की मौत का शोक मनाने के लिए शाही काफ़िले को तीन दिनों तक रोक दिया.

खुली कब्र में निजामुद्दीन में दफनाई गईं जहांआरा

जहांआरा को उनकी इच्छानुसार दिल्ली में निज़ामुद्दीन औलिया की मज़ार के बग़ल में दफ़नाया गया. वो अपनी कब्र को खुला चाहती थीं. जहाँआरा ने वसीयत की थी कि उनकी क़ब्र खुली होनी चाहिए. उसे पक्का नहीं किया जाना चाहिए. मुग़ल इतिहास में सिर्फ़ औरंगज़ेब और जहांआरा की क़ब्रें ही पक्की नहीं बनाई गई हैं और वो बहुत साधारण क़ब्रें हैं. आज भी जहांआरा की क़ब्र वहाँ मौजूद है.

Comment:Cancel reply

Exit mobile version