चीन अपने मूल साम्राज्यवादी और विस्तारवादी दृष्टिकोण के चलते संसार के लिए भस्मासुर बनता जा रहा है तो अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप अपनी हठधर्मिता के चलते ‘किसी भी निर्णय’ को लेने के लिए तैयार बैठे दिखाई देते हैं । रूस के पुतिन चाहते हैं कि चीन की ‘बुद्धि ठिकाने’ लाने का काम कोई दूसरा करे और हथियार उनके बिक जाएं। किम जोंग की अपनी तानाशाही प्रवृत्ति संसार के लिए खतरे का संकेत दे रही है तो अफगानिस्तान अपने ढंग से विनाश की नई तामीर लिखने में व्यस्त दिखाई देता है । इसी प्रकार पाकिस्तान अपनी आतंकवादी गतिविधियों से बाज आने को तैयार नहीं दिखाई देता तो नेपाल जैसा छोटा सा देश चीन की गोद में बैठा हुआ जिन भारत विरोधी गतिविधियों को कर रहा है वह भी संसार के लिए कोई शुभ संकेत नहीं दे रही हैं।
अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप के बारे में उनके पूर्ववर्त्ती ओबामा ने कहा था कि इस व्यक्ति के हाथों में अमेरिका की बागडोर जाना कतई ठीक नहीं रहेगा, क्योंकि यह संसार के लिए कोई भी ऐसा घातक निर्णय ले सकता है जिससे पूरी मानवता पर संकट आ सकता है। चीन ने कोरोनावायरस को फैलाकर संसार के प्रति अपनी गैरजिम्मेदारी का परिचय दे दिया है। उसने यह बता दिया है कि चाहे सारा विश्व मर जाए पर केवल वह स्वयं जीवित रहना चाहिए। ऐसी स्वार्थपूर्ण सोच संसार के लिए घातक होती है। कोरोनावायरस से अमेरिका को बहुत बड़ी क्षति हुई है। आर्थिक रूप से विश्व का बेताज बादशाह बनने के जिस सपने को संजोकर शी जिनपिंग आगे बढ़े थे, अब उनके घोड़े को अमेरिका ने रोक दिया है। जिससे विश्व युद्ध की विभीषिकाओं में झुलसता हुआ दिखाई दे रहा है।
अमेरिका भारत के निकट आता हुआ दिखाई दे रहा है , परंतु वास्तव में अमेरिका का भारत की ओर बढ़ता मित्रता का हाथ आत्मीयता से बढ़ाया गया हाथ नहीं है । इसके पीछे उसके अपने स्वार्थ छुपे हैं। वह तीसरे विश्वयुद्ध के लिए उभरते हुए भारत के कंधों को तोड़ देना चाहता है , इसलिए अपने सारे हथियारों को वह भारत के कंधों पर रखकर चलाना चाहता है। उसकी हर संभव चेष्टा है कि तीसरे विश्व युद्ध का मैदान भारत और चीन बनें। इन दोनों देशों में जन -धन की जितनी हानि होगी उतना ही अमेरिका के हित में होगा। यदि तीसरे विश्व युद्ध के पश्चात संसार बचा तो अमेरिका उस बचे हुए संसार का भी बेताज बादशाह होगा । क्योंकि उस बचे हुए संसार में भारत और चीन दोनों हिरोशिमा नागासाकी की भांति बर्बादी के खंडहर के रूप में बदल चुके होंगे। कहने का अर्थ है कि जहां चीन भारत को विश्व शक्ति बनने से रोकना चाहता है ,वहीं अमेरिका भी इन दोनों देशों को आपस में लड़ाकर समाप्त कर देना चाहता है , जिससे विश्व शक्ति की उसकी गद्दी सुरक्षित रह सके।
ऐसे में हमें समझ लेना चाहिए कि लड़ाई इस समय कोरोनावायरस से उत्पन्न हुई परिस्थितियों से नहीं है बल्कि संसार का नायक बनने की है । उभरते हुए भारत को जहां चीन धमकाकर रोकना चाहता है वहीं अमेरिका और विश्व के कई देश भारत के मित्र बनकर भारत को मिटा देना चाहते हैं। कोई भी यह नहीं चाहेगा कि हिंदू देश के रूप में स्थापित होता भारत विश्व का नायक बने। ऐसे में नेपाल की बुद्धि पर सचमुच पत्थर पड़ गए हैं , जो अपने परंपरागत मित्र और सगे भाई भारत के विरुद्ध चीन के बहकावे में आकर सीनाजोरी करने की हिमाकत कर रहा है।
भारत के प्रधानमंत्री मोदी परिस्थितियों से पूर्णतया परिचित हैं। यही कारण है कि वह चीन को धमकाकर भगाने के उपरांत विश्व के नेताओं के उत्तेजक बयानों को भी अनसुना कर देश को विश्व युद्ध की विभीषिका में झोंकना नहीं चाहते । वह युद्ध तो चाहते हैं , परंतु एक सीमित युद्ध चाहते हैं । उनकी इच्छा है कि ऐसा युद्ध अवश्य हो जाए जिसमें भारत, पाकिस्तान और चीन की समस्याओं का समाधान हो जाए ,परंतु यही युद्ध विश्व युद्ध में बदल जाए और उसमें भारत को भारी हानि उठानी पड़े , यह वह नहीं चाहते । इस प्रकार भारत इस समय एक ‘अवांछित युद्ध’ से बचकर ‘वांछित युद्ध’ के विकल्प ढूंढ रहा है।
भारतीय नेतृत्व किसी भी स्थिति में देश को विश्व युद्ध का अखाड़ा नहीं बनाना चाहता। क्योंकि उसे भली प्रकार पता है कि देश को विश्व युद्ध का अखाड़ा बनाने का अर्थ हिरोशिमा और नागासाकी जैसे बर्बाद खंडहर में परिवर्तित करना होगा।
पाकिस्तान को पता है कि यदि इस समय भारत और चीन भिड़ जाएं तो उसका अस्तित्व बच सकता है , अन्यथा यदि भारत ने पीओके को अपने नियंत्रण में ले लिया तो फिर पाकिस्तान के टुकड़े होना अवश्यंभावी है। यही कारण है कि पाकिस्तान चीन की चिलम भरते हुए उसे भारत के विरुद्ध भड़काने का हरसंभव प्रयास कर रहा है।
रूस के पुतिन भी इस समय द्वन्द्व के असमंजस में फंसे हुए हैं । विचारधारा के आधार पर वह चीन को पीटना तो नहीं चाहते परंतु पिटवाना अवश्य चाहते हैं। उनकी इच्छा है कि पीटने वाला यदि भारत हो तो अधिक अच्छा रहेगा । भारत के साथ रूस के परंपरागत शत्रु अमेरिका जैसे देश भी आ जाएं तो यह स्थिति रूस के लिए परेशानी पैदा करने वाली होगी। इसके उपरांत भी वह अपने स्वार्थों को साधने के लिए और अपनी सुविधा का ध्यान रखते हुए भारत के साथ रहेगा ,यद्यपि वह हर स्थिति में तटस्थ रहना चाहेगा।
युद्ध के विषय में हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हर देश युद्ध से पहले यही कहता है कि वह शांति की स्थापना के लिए युद्ध में जाना चाहता है । युद्ध के उपरांत भी हर देश यही कहता है कि अब सब बैठिए और शांति स्थापित कीजिए। कुल मिलाकर सारा खेल शांति के लिए किया जाता है , परंतु शांति मिलती क्यों नहीं ? – यदि इस प्रश्न पर विचार किया जाए तो पता चलता है कि विश्व के देशों के द्वारा शांति की बात करते हुए अशांति के काम किए जाते हैं ।
कुछ चेहरे होते हैं जिन्हें हम विश्व नेता के रूप में जानते पहचानते हैं । वे चेहरे ही अशांति की भाषा बोलते रहते हैं और जिस शान्ति को सारा विश्व चाहता है उसे अपनी मुट्ठी में बंद कर सारे विश्व को अशांति की विभीषिका अर्थात युद्ध में धकेल देते हैं। वर्तमान विश्व की स्थितियां भी कुछ ऐसी ही हैं । संसार के कुछ तथाकथित बड़े नेताओं के अहंकार आपस में टकरा रहे हैं । इन अहंकारी नेताओं के अहंकार पर यदि अंकुश नहीं लगा तो निश्चय ही यह विश्व के लिए बर्बादी का कारण बन सकता है। ध्यान रहे कि बारूद के ढेर पर बैठकर कभी शांति के कबूतर नहीं उड़ाए जा सकते । घर में लाठी भी हो और हट्टे -कट्टे , गठीले शरीर के नवयुवक भी हों तो यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि इन लाठियों का कभी प्रयोग नहीं होगा।
विनाश की उमड़ती घटाओं को तो बरसने से गुरु द्रोणाचार्य ,भीष्म पितामह और विदुर जैसे विद्वान भी नहीं रोक पाए थे।
फिर भी हमें ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि सर्वत्र शांति हो और हम सब मिलकर शांति के ही आराधक बनें ।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत