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विशेष संपादकीय

रेल किरायों में बढ़ोत्तरी अच्छी है….

rail- copyनये वित्तवर्ष का रेल बजट पेश करने से पूर्व ही रेलमंत्री पवन बंसल ने सभी वर्गों के रेल किरायों में वृद्घि की है। 2014 के लोकसभा चुनावों के दृष्टिगत यह बढ़ोत्तरी बहुत ही अर्थपूर्ण है। इसका एक अर्थ यह भी हो सकता है कि रेलमंत्री रेल बजट में किरायों में वृद्घि न करके जनता को उस समय राहत देने का कार्य करेंगे। ममता बनर्जी द्वारा अपनी पार्टी के रेलमंत्री द्वारा बढ़ाए गये किरायों का विरोध किया गया था और सरकार से अपने मंत्री को निकलवाकर तथा बढे किरायों को वापस लिवाकर ही उन्होने दम लिया था। यह विरोध केवल राजनीति के लिए किया गया था और इसमें देश के भविष्य को पूरी तरह नजरन्दाज कर दिया गया था। सस्ती राजनीति और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का यह ओच्छा हथकंडा था। भारत में जनहित के दृष्टिगत कई बार अच्छे निर्णयों पर भी विपक्ष विशेष पक्ष की भूमिका न निभाकर विरोधी पक्ष की भूमिका निभाता दीखता है। जिससे तात्कालिक आधार पर जनता को भले ही कुछ राहत मिल जाए लेकिन भविष्य में उस विरोध के घातक परिणाम आते हैं। ममता बनर्जी का रेल भाड़ों को लेकर किया गया वह विरोध सही नही था। विशेषत: तब जबकि देश में अभी बहुत से आंचलों में रेल का विस्तार किया जाना शेष है और रेलवे अभी मूलभूत सुविधाएं अपने यात्रियों को देने में विदेशों की अपेक्षा बहुत पीछे है। चीन ने 1950 से लेकर अब तक भारत की अपेक्षा दो ढाई गुना रेल विस्तार किया है और रेल यात्रा को हमारे मुकाबले बेहतर और सुविधा संपन्न बनाने की ओर विशेष ध्यान दिया है। हम रेलवे के एक बीमार जंजाल को बोझे के रूप में कई साल से ढो रहे हैं। एक तरफ मेट्रो की सरपट दौड़ती रेल दिखाई पड़ती है तो लगता है कि हमने बहुत तरक्की की है लेकिन दूसरी तरफ बीमार भारतीय रेल दिखाई पड़ती है, तो लगता है कि अभी बहुत कुछ करना बाकी है, हमने भारत और इंडिया के बीच दीवार खड़ी की है और इंडिया को सुविधा संपन्न बनाकर दुनिया को दिखाने के लिए पेश किया है जबकि हमारा भारत अभी बहुत पीछे खड़ा है। आज भारत के प्रत्येक आंचल में रेलवे को पहुंचाने के लिए रेलवे के पास पैसा होने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त जो आम आदमी भारतीय रेल से सवारी करता है उसके लिए अभी तक भी वो सुविधाएं रेलवे के पास नही हैं जो होनी चाहिए। आम आदमी पांच रूपये के किराये के स्थान पर सात रूपये आराम से दे देगा, यदि उसे बैठने की सुविधा उपलब्ध कराई जाए। उसे शौचायल की सुविधा दी जाए, भेड़, बकरियों की तरह डिब्बे में भरे आम आदमियों को देखकर ही शशि थरूर जैसे मंत्रियों ने उनकी इस स्थिति पर मजाक उड़ाया था। लोगों ने उस मजाक का तो विरोध किया लेकिन यह नही सोचा कि सचमुच में रेल में दयनीय हालत झेल रहे आम आदमी को राहत कैसे दी जाए? राहत देने के लिए हमें अतिरिक्त लाइनें बिछानी पड़ेंगी। अतिरिक्त रेल चलानी पड़ेंगी इसके अतिरिक्त रेलवे विभाग में सुरक्षा कर्मियों की तैनाती, रेलवे स्टेशनों की दयनीय हालत को ठीक करने जैसे खर्चीले कामों पर भी ध्यान देना होगा। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जैसे आप मैट्रो में बिना टिकट यात्रा कर ही नही सकते इस बात की पूरी व्यवस्था कर दी गयी है, ऐसी ही व्यवस्था रेलवे में भी की जानी आवश्यक है। इसके लिए उचित होगा कि प्रत्येक डिब्बे में मेटल डिटेक्टर जैसी कोई मशीन लगे जो यात्री के चढ़ते ही बता दे कि अमुक यात्री बिना टिकट है। इतनी व्यवस्था हो जाने पर भी रोज बड़ी संख्या में जो यात्री बिना टिकट यात्रा करते हैं, उन्हीं से रेलवे को घाटे में जाने से निकाला जा सकता है। होने वाली आय से रेलवे अपना विस्तार कर सकती है। कोई ऐसी योजना भी लाई जा सकती है जिसमें देश के संपन्न वर्ग के यात्रियों से आगामी तीन वर्ष या पांच वर्ष का अग्रिम किराया लेकर उन्हें निश्चित धनराशि में देश में कहीं भी आने जाने की सुविधा निश्चित किलोमीटरों तक की यात्रा करने की सुविधा दी सकती है। इससे एकदम अच्छी आय रेलवे विभाग को हो सकती है और उस आय को रेलवे यात्रियों की सुविधा में व्यय कर सकती है। इस दृष्टिïकोण से यदि रेल मंत्रालय यात्री किराये में बढ़ोत्तरी कर रहा है तो उस पर व्यर्थ की चिल्ल-पौं करने की आवश्यकता नही है बल्कि उसे सही अर्थों व संदर्भों में लेने की आवश्यकता है।

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