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आज का चिंतन

हमारा गणतंत्र नाच गान का दिन नहीं आत्मचिंतन का दिन

प्यारे देशवासियो! यह दिवस नाच-गान का दिन नहीं, बल्कि आत्मचिंतन का दिन है। क्या हम आत्म चिंतन करेंगे कि-

(1) देश को स्वतंत्र कराने में कितने वीर वीरांगनाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी? क्या हमने उनके बलिदान को मिथ्या अहिंसा से आजादी मिली, ऐसे मिथ्या पागलपन भरे प्रचार से अपमानित नहीं किया है?

(2) क्या हम उन वीर बलिदानियों के बलिदान एवं जेलों में कठोर यातनाएं पाने वाले वीरों को गाली देने वालों को अपना नेता मानने का अपराध करते रहेंगे? यदि हाँ, देश के लिए कौन बलिदान करेगा?

(3) क्या आज देश सेना के शौर्य व पराक्रम से ही सुरक्षित नहीं है? क्या प्रत्येक सैनिक प्रत्येक देशवासी के लिए सम्मान का पात्र नहीं होता है? यदि हाँ, तो क्या सेनापति व सेना का अपमान करने वालों को दंडित नहीं किया जाना चाहिए?

(4) क्या हम आज पूर्णरूपेण स्वतंत्र हैं? क्या हम अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष व विश्व बैंक की छाया में अपनी आर्थिक नीतियां बनाने को विवश नहीं है? क्या हम अपनी सामरिक नीतियां बनाने में पूर्णतः स्वतंत्र हैं? यदि नहीं, तो यह कैसी स्वतंत्रता है?

(5) क्या हमारा संविधान, शिक्षा एवं अन्य परम्पराएँ विदेशी दासता की छाया तले नहीं जी रही हैं?

(6) क्या हम सामाजिक जातिवाद, राजनीतिक व प्रशासनिक जातिवाद, सामाजिक साम्प्रदायिकता, राजनीतिक व संवैधानिक साम्प्रदायिकता के दलदल में निरन्तर अधिकाधिक नहीं धंसते जा रहे हैं? कौन वीर देशभक्त है, जो आज स्वयं को केवल भारतीय कहने व दूसरों को भी केवल भारतीय मानने का साहस रखता है? कौन है, जो जाति व सम्प्रदाय के नाम पर प्रतिष्ठा व लाभ नहीं लेना चाहता है? यदि नहीं, तो समानता व सेकुलरिज्म का मिथ्या नाटक क्यों?

(7) क्या आपने कभी सोचा है कि देश को स्वतन्त्र कराने का स्वप्न सर्वप्रथम महर्षि दयानन्द सरस्वती ने देखा और आर्य समाज एवं इसके नेता स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती ने कांग्रेस को इसकी प्रेरणा दी तथा आर्य समाज की शक्ति के कारण ही कांग्रेस इसमें सफल भी हुई परंतु कांग्रेस अथवा देश ने महर्षि दयानंद सरस्वती एवं आर्य समाज को क्यों भुला दिया?

(8) क्या देश को स्वतन्त्र कराने में नेताजी सुभाषचंद्र बोस व उनकी आजाद हिन्द फौज की सबसे बड़ी क्रांतिकारी भूमिका नहीं थी? क्या स्वतंत्र भारत ने नेताजी को इसके लिए कभी समुचित सम्मान दिया? वे देश छोड़ने को विवश क्यों हुए? क्यों उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष पद छोड़ने को विवश किया? क्या यह घोर अपराध नहीं था?

(9) क्या लोकतंत्र में संसद का स्थान सर्वोपरि नहीं है? यदि हाँ, तो आज क्यों कुछ नेता व उनके द्वारा शासित राज्य संसद से पारित कानून की होली जला रहे हैं? क्यों देश में मिथ्या आशंकाओं के आधार पर देश में आग लगाई जा रही है? क्यों भारत को बर्बाद करने और असम को भारत से काटने के संकल्प लिए जा रहे हैं?

(10) क्या सर्वोच्च न्यायालय के तर्कसंगत निर्णयों की भी नेता सड़कों पर होली जलाने, दंगे कराने के लिए स्वच्छंद हैं? क्यों संसद ऐसे कानूनों को मिटाने हेतु तत्काल कानून बनाती है और निर्लज्ज निर्णयों पर मौन साध लेती है और देश भी मौन रहता है।

(11) क्या नेताओं को यह भी अधिकार है कि वे पाकिस्तान व उसके आतंकवादियों को सम्मान दें, और उससे भारतीय प्रधानमंत्री को हटाने में सहयोग मांगें?

(12) क्या उन्हें यह भी अधिकार है कि आतंकवादियों तथा पाकिस्तान द्वारा किसी आतंकवादी हमले की जिम्मेदारी लेने के उपरांत भी पाकिस्तान में आतंकवादियों को निर्दोष बताएं और अपनी ही सरकार अथवा किसी अपने ही संगठन को उस आतंकवादी घटना का दोषी बता दें?

(13) क्या भारत पर चार बार आक्रमण करने वाला, पिछले लगभग 72 वर्षों से आतंकवाद फैलाकर लाखों निर्दोषों का खून बहाने वाला, पाकिस्तान में करोड़ों हिंदुओं को नष्ट करने अथवा उन्हें मुस्लिम बनाने वाला, अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों को पालने वाला, गरीब, निरक्षर व क्रूर पाकिस्तान हमारे देश के कुछ लोगों व नेताओं के लिए आदर्श बन गया है? यदि वह आदर्श है, तो क्यों न वे वहीं जाकर रहें?

(14) यदि सेकुलरिज्म के नाम पर उन्हें पाकिस्तानी मुस्लिमों को भी भारत की नागरिकता देना उचित लगता है, तो फिर भारत का विभाजन ही क्यों किया? क्यों न वे पाकिस्तान, भारत व बांग्लादेश को मिलाकर एक अखण्ड भारत बनाने का प्रयास करते?

(15) सैक्यूलर नेता क्यों समान नागरिक कानून बनाने के लिए आगे नहीं आते?

(16) क्यों देश को मजहब के नाम पर बांटा, फिर राज्यों को भाषा के नाम पर बांटा? हिंदी भाषा का विरोध करने वाले क्यों विदेशी भाषा अंग्रेजी को गले से लगाने में लज्जा का अनुभव नहीं करते? क्या वे बता सकते हैं कि हिंदी बोलने व समझने वालों से अधिक और किस भाषा को बोलने व समझने वाले इस देश में रहते हैं?

(17) क्यों देश का नागरिक देश से अधिक अपनी पार्टी, मजहब व जाति को महत्व दे रहा है? क्यों वह अपने नेताओं की बौद्धिक दासता से ग्रस्त हो गया है?

(18) क्यों हम भारतीयता को भूलकर विदेशी बौद्धिक दासता में फंसे होने पर भी स्वयं को प्रबुद्ध व प्रगतिशील मानने का पागलपन कर रहे हैं?

(19) क्यों हम स्वतंत्र देश को विदेशी कम्पनीज् के हाथों बेच रहे हैं और गांधी जी की मूर्तियों पर माला चढ़ा रहे हैं?

(20) जो हिंदू मुस्लिम एकता की बात करते हैं व करते रहे हैं, उनके पास इसके लिए कौन सा न्यायसंगत फार्मूला है? क्यों नहीं वे हिंदू मुस्लिम अथवा दलितोद्धार के लिए आर्य समाजी नेता स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती जैसे देवपुरुष से कुछ सीखते?

(21) हिंदू आतंकवाद की बात करने वाले क्या स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में अब तक हुए सांप्रदायिक दंगों की जांच कराएंगे कि किसके शासन में कितने संप्रदायिक दंगे हुए और उनमें दोषी कौन थे? क्या यह भी जांच कोई करेगा कि हिंदू बहुल क्षेत्र में ईसाई व मुस्लिम कैसे रहते हैं और ईसाई व मुस्लिम बहुल क्षेत्र में हिंदू कैसे रहते हैं?

(22) क्या हिंदुओं, पारसियों, जैनों व सिखों का कोई और देश है, जहाँ वे जाकर सुख शांति से रह सकें? जबकि मुसलमान व ईसाइयों के अनेक देश इस संसार में है?

(23) क्या मुसलमानों को गाली देने वाले और उन्हें ही हिंदुओं के विनाश का उत्तरदायी मानने वाले विचारेंगे कि वे हिंदुओं को एक करने के लिए क्या बलिदान कर सकते हैं? उनके संगठन ने देश की स्वतंत्रता के लिए क्या किया? सभी हिंदू नेता व धर्माचार्य जातिवाद त्याग कर क्या दलितों को बराबरी का सम्मान देने का साहस करेंगे?

(24) क्या आप नहीं जानते कि जिस देश का इतिहास मिट जाता है, वह देश अधिक दिन जीवित नहीं रह सकता, तब भी क्या इस देश के इतिहास को विदेशियों अथवा उनके बौद्धिक दासों के हवाले किए रहोगे?

(25) जिस देश के पास अपनी शिक्षा व्यवस्था नहीं होती, वह देश भी कभी अधिक समय तक सम्प्रभु व स्वतंत्र नहीं रह सकता, तब आप इस देश को क्यों मैकाले की शिक्षा प्रणाली का सशक्त विकल्प देने के लिए कोई प्रयास करते अथवा ऐसा प्रयास करने वालों का क्यों सहयोग नहीं करते?

(26) क्या आप कभी सोचेंगे कि यह देश विदेशी आक्रान्ताओं के शक्ति के कारण नहीं, बल्कि अपने देश के गद्दारों के कारण हारा है, तब क्या फिर भी आज गद्दारों को ही अपना आदर्श मानकर फिर देश को हराकर टुकड़े करना चाहोगे?

प्रश्न अनेक हैं परंतु अभी इतने ही। मेरे देशवासियो! देश का भविष्य आपसे ये सारे प्रश्न पूछेगा और ऐसा समय आएगा, जब इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए आप बचेंगे ही नहीं। कोई तिरंगा फहराने वाला रहेगा नहीं। इसलिए जागो! आत्मनिरीक्षण करो, एक रहो अन्यथा एक साथ मिट अवश्य जाओगे। यह देश उन सबका है, जिनके पूर्वज इस देश में जन्मे थे और जो सदियों पूर्व विदेशों से आकर बस गए, अब वे भी इसी देश के नागरिक हैं। उन्हें बाहर भगाने का स्वप्न मत देखो। हाँ, अवैध घुसपैठियों को बाहर करने का कोई न्यायसंगत मार्ग अपनाना होगा। उठो! और अपने धर्म व कर्तव्य को समझो।

आचार्य अग्निव्रत ✍️

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