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विशेष संपादकीय

अल्पसंख्यक की परिभाषा भारत में क्यों नहीं ?

भारत में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक जैसे शब्द सुनने को तो बहुत मिलते हैं , परंतु वास्तव में अल्पसंख्यक कौन हो सकता है , और बहुसंख्यक किसे कह सकते हैं ? – यह आज तक स्पष्ट नहीं है । इस विषय में सबसे पहले 1899 में ब्रिटिश जनगणना आयुक्त ने सिख ,जैन ,बौद्ध ,पारसी और मुसलमान को भारत में अल्पसंख्यक के नाम से पुकारा था , और हिंदुओं को उसने उस समय बहुसंख्यक के रूप में उच्चारित किया था । ब्रिटिश जनसंख्या जनगणना आयुक्त की यह परिभाषा अपने आप में पूर्णतया अस्पष्ट थी , क्योंकि उसने अल्पसंख्यक होने के लिए न्यूनतम जनसंख्या का कहीं कोई उल्लेख नहीं किया था । यूरोप में कुछ देश ऐसे भी हैं , जहां पर किसी भी ऐसे समुदाय को अल्पसंख्यक की श्रेणी में रखा जा सकता है जिसकी संख्या वहां की कुल जनसंख्या के 10% से कम हो ।

जबकि आस्ट्रेलिया में उसे अल्पसंख्यक के नाम से पुकारा जाता है जिस समुदाय की जनसंख्या वहां की कुल जनसंख्या के 6% से कम हो । लेकिन भारत एक ऐसा देश है , जहां पर आज तक किसी भी समुदाय या संप्रदाय के अल्पसंख्यक होने के लिए यह निश्चित नहीं किया गया है कि उसकी न्यूनतम जनसंख्या कितनी होनी चाहिए ? – यहां तक कि 1992 में भारत सरकार ने जब राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग संबंधी कानून पारित किया तो उसने भी यह स्पष्ट नहीं किया कि भारत में अल्पसंख्यक किसे कहा जाएगा ? उस समय भी मात्र इतना ही कहा गया कि – अल्पसंख्यक वह है जिसे केंद्र सरकार अधिसूचित करे । इसका अभिप्राय है कि भारत में अल्पसंख्यक कौन होगा ? – इसे स्पष्ट करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास में है । यह व्यवस्था बहुत ही खतरनाक है । जिस प्रकार हिंदू समाज को जातियों में बांट कर देखने का प्रयास किया जा रहा है , यदि वह षड्यंत्र सफल हुआ और आने वाले समय में जातियों ने भी धर्म का स्वरूप ग्रहण कर लिया तो यहां पर सारी व्यवस्था ही तार – तार हो कर रह जाएगी । तब समझ ही नहीं आएगा कि अल्पसंख्यक कौन है और बहुसंख्यक कौन है ? भारत में जहां यह आज तक अस्पष्ट है कि अल्पसंख्यक किसे कहा जाएगा ? – वहीं कुछ और भी विसंगतियां हैं । जैसे जम्मू कश्मीर में 2011 की जनगणना के अनुसार 68% मुसलमान और 28. 44% हिंदू हैं , परंतु भारतवर्ष के अल्पसंख्यक कानून के अनुसार जो सुविधाएं अल्पसंख्यकों को मिलनी चाहिए वे सारी सुविधाएं मुस्लिम बहुसंख्यक वाले इस राज्य में आज तक भी मुस्लिमों को ही मिलती आ रही हैं ।जिससे वहां के अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के साथ इसी संविधान के और इसी लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत अन्याय और उत्पीड़न हो रहा है । यदि बात पूर्वोत्तर के प्रांतों की की जाए तो वहां तो स्थिति और भी भयंकर है। 2011 की जनगणना के अनुसार मिजोरम में हिंदू 2.75%, नागालैंड में 8.75% ,मेघालय में 11.53 % , अरुणांचल प्रदेश में 29.4 % , मणिपुर में 41.39% पंजाब में 38.4 प्रतिशत , लक्षद्वीप में 2.77% है । पूर्वोत्तर में ईसाई बहुसंख्यक है तो पंजाब में सिख बहुसंख्यक है ।इसके उपरांत भी अल्पसंख्यकों वाली सारी सुविधाएं पूर्वोत्तर में ईसाइयों को तो पंजाब में सिखों को मिल रही हैं । हिंदू उन सारी सुविधाओं से वंचित है , जो उसे मिलनी चाहिएं । संविधान का यहां पर उल्लंघन भी हो रहा है और उसकी मूल भावना के साथ क्रूर उपहास भी हो रहा है, परंतु सारी की सारी राजनीतिक व्यवस्था और राजनीतिक लोग संवैधानिक मर्यादाओं के इस प्रकार तार – तार होने की सारी गतिविधियों से आंखें बंद किए बैठे हैं , क्योंकि उन्हें केवल और केवल वोट चाहिए । वोट के बाद सत्ता चाहिए और सत्ता के बाद वह सारे सुख चाहिएं, जिनके लिए उन्होंने इस देश में जन्म लिया है । उनकी सोच है कि देश के बहुसंख्यक का खून निचोड़ो , पियो और मौज करो । दुख की बात यह है कि सारी व्यवस्था इस क्रूर कार्य को देख कर भी अनदेखा कर रही है ।

वैसे हमारे देश के संविधान और कानून के अनुसार आज भी सिख ,बौद्ध और जैन धार्मिक अल्पसंख्यक नहीं कहे जा सकते । यह सभी हिंदू समाज के ही एक अंग हैं , परंतु राजनीति ने इन्हें इस देश की मुख्यधारा से दूर करने का हर संभव प्रयास किया है । राजनीति उस समय निर्लज्ज हो जाती है , जिस समय वह देश के नागरिकों को केवल और केवल अपने मतदाता के रूप में देखती है , और मतदाता से पहले उसे इस देश का एक सुसंस्कृत नागरिक बनाने और मानने के अपने मूलभूत कर्तव्य से आंखें फेर लेती है । इस कार्य को भारत मे एक सुनियोजित गहरे षड्यंत्र के अंतर्गत विदेशी शक्तियां भी क्रियान्वित करने में लगी हुई हैं ।यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि 1947 में जब देश आजाद हुआ तो उसी समय इस देश को फिर से गुलाम बनाने के लिए षड्यंत्र रचे जाने लगे थे । आज उन्ही गंभीर षडयंत्रपूर्ण गतिविधियों का यह परिणाम है कि जब देश अपना 70 वां गणतंत्र दिवस मना रहा है , तब देश के 8 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करने की कार्यवाही भी गति पकड़ती दिखाई दे रही है । दूसरे शब्दों में इसे भारत के गणतंत्र की एक बड़ी उपलब्धि कहा जा सकता है कि जिस काम को अंग्रेजो और उससे पहले मुस्लिमों के शासनकाल में कोई नहीं कर पाया , वह हमारे इस लोकतंत्र के 72 वर्षीय यात्रा काल में सफलतापूर्वक सम्पन्न हो गया है कि हम 8 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित कराने जा रहे हैं । आज कोई भी यह नहीं पूछ रहा कि इन 8 राज्यों में हिंदू को अल्पसंख्यक बनाने का षडयंत्र किसने रचा और कौन सी वह शक्तियां हैं जो इस षड्यंत्र में सफल हो गई हैं ? साथ ही यह भी कि इन शक्तियों का षड़यंत्र भारत के अभी कौन-कौन से भागों को निगलने की तैयारी कर रहा है ? – और यदि वह शक्तियां अपने षड़यंत्र में सफल होती हैं तो उसका अंतिम परिणाम क्या होगा ? मित्रों ! यह भारत है और धर्मनिरपेक्ष भारत है । यदि आपने उपरिलिखित प्रश्न यहां पर किए तो समझ लीजिए कि आप असहिष्णुता को बढ़ावा देने वाले माने जाएंगे और साथ ही आप लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत में विश्वास न रखने के कारण दूसरे लोगों के प्रति असहिष्णु कहलाएंगे , भगवावादी कहलाएंगे । देश को तोड़ने की गतिविधियों में संलिप्त माने जाएंगे । वाह रे मेरे भारत महान । तेरी मान्यताओं को और तेरे राजनीतिक मूल्यों को ,तेरे लोकतांत्रिक सिद्धांतों को मेरा सलाम । क्योंकि जो इस देश के बारे में सोचता है , देश के भविष्य को लेकर चिंतित है , वही इस देश का गद्दार माना जा रहा है । सचमुच स्थिति यह हो गई है कि — हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तां क्या होगा ? – जब उल्लू के हाथ में देश का शासन चला जाता है तो परिभाषाएं पेड़ों पर उल्टी लटक जाती हैं। वहां पेड़ों पर पैसे तो नहीं लगते ,पर पेड़ों पर राजनीतिक मूल्यों और सिद्धांतों की सभी परिभाषाएं उल्टी अवश्य लटक जाती हैं । स्वतंत्रता उपरांत के पिछले 72 वर्ष के कालखण्ड में हमने यही देखा है कि यहां पर देश के राजनीतिक मूल्यों व सिद्धांतों की सारी परिभाषाएं उल्टी लटकी पड़ी है । आज हम चमगादड़ों के शहर में उल्लू के माध्यम से देश के संविधान की और संवैधानिक व्यवस्था की परिभाषाएं गढ़वाने की अपेक्षा कर रहे हैं , इसका परिणाम क्या होगा ? – यह तो समय ही बताएगा , पर यदि हमने देश में तेजी से घटती हिंदू जनसंख्या और विभिन्न राज्यों में उसके घटते स्वरूप पर चिंतन नहीं किया तो एक दिन हम सभी उल्टे लटके मिलेंगे । तब यहां पर चमगादड़ और भी खुला खेल खेल रहे होंगे ।बहुत कुछ समझने की आवश्यकता है।हम यह ध्यान रखें कि पश्चिम बंगाल भी इसी षड्यंत्र के अंतर्गत शीघ्र ही मुस्लिम बहुसंख्यक राज्य होने जा रहा है । इतिहास के तथ्यों की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है , जो यह स्पष्ट कर रहे हैं कि मुस्लिमों ने पहले ईरान को हमारे लिए अपने आक्रमणों का केंद्र बनाया तो धीरे-धीरे अफगानिस्तान को हमसे छीन लिया । फिर अफगानिस्तान को केंद्र बना कर हम पर हमले किए तो एक दिन वह पाकिस्तान ले बैठे और पाकिस्तान का अभिप्राय है कि पूर्व में बांग्लादेश भी ले बैठे । आज पाकिस्तान को आतंकी गतिविधियों का केंद्र बना कर जम्मू कश्मीर को छीनने की तैयारी है तो पूर्व में हमारे पश्चिम बंगाल को छीनने की तैयारी है । अभी पिछले दिनों वहां पर हिंदू महासभा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जाने का मुझे अवसर मिला तो वहां के लोगों की विशेष कर हिंदुओं की आंखों में आंसू थे । ममता के बारे में लोगों का कहना है कि वह इस्लाम ग्रहण कर चुकी हैं और उनके शासन में हिंदुओं के साथ जो कुछ हो रहा है , वह बहुत ही खतरनाक है । यहां के हिन्दुओ का कहना है कि यदि यही स्थिति यहां पर जारी रही और समय रहते देश की सरकारें कुछ नहीं कर पायीं तो यहां पर अगले 10 – 15 वर्ष में ही आप हमें खो देंगे।बांग्लादेशी मुस्लिम समुदाय के लोग यहां आकर भारतीय नागरिकता पाने में सफल हो रहे हैं । यूएन की रिपोर्ट हमें बता रही है कि 2013 में लगभग 3200000 बांग्लादेशी मुस्लिमों ने आसाम में घुसपैठ की । आज स्थिति यह है कि असम के कई विधानसभा क्षेत्रों में असम के मूल निवासियों की संख्या और बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों की संख्या लगभग बराबर पहुंच गई है । यह स्थिति 10 जिलों और 50 विधानसभा क्षेत्रों में फैल चुकी है । ऐसे में वर्चस्व को लेकर दोनों समुदायों के बीच टकराव की संभावनाएं जन्म ले रही हैं ।यह लोग मुस्लिम देशों की भांति इस्लामी कानून यहां भी लागू कराने का प्रयास कर रहे हैं । 1971 के पश्चात असम में 32000 मदरसों का निर्माण हुआ है । वही 1971 में असम में हिंदू जनसंख्या 72% थी , जबकि मुस्लिम जनसंख्या 24 .56% थी । 1991 में हिंदू आबादी घटकर 67% और मुस्लिम संख्या बढ़कर 28% हो गई । इसी प्रकार 2001 की जनगणना के अनुसार असम में हिंदू जनसंख्या 64% पर पहुंच गई और मुस्लिम जनसंख्या 31 प्रतिशत हो गई । प्रोफेसर गनेंद्र बर्मन का कहना है कि असम में 2011 में मुस्लिम जनसंख्या अप्रत्याशित रूप से 34. 2 प्रतिशत बढ़ गई ।इससे असम के कुछ विधानसभा क्षेत्रों में बांग्लादेशी मुस्लिमों की जनसंख्या लगभग बराबरी पर पहुंच गई है । इसमें गोलागंज विधानसभा में वर्ष 2006 में हिंदू जनसंख्या 53% और मुस्लिम जनसंख्या 45% थी । 2011 में यहां जनसंख्या लगभग 50 – 50% पर पहुंच गई है ।कलगशिया विधानसभा क्षेत्र में बांग्लादेशी मुस्लिमों की संख्या करीब 99. 22% और बाघबार में 76.33 प्रतिशत , दलगांव विधानसभा क्षेत्र में 88 .26% तक पहुंच गई है। इसी प्रकार की कई अन्य विधानसभा क्षेत्रों में भी बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिए बहुसंख्यक हो गए हैं। बंगाल के दौरे के समय मुझे बताया गया कि जिस गंगासागर में कभी कपिल मुनि ने तपस्या की थी , उनका मंदिर आज विदेशी मजहबी लोगों के चंगुल में आ चुका है । अब वहाँ पर बिरियानी और गोमांस की बिक्री हो रही है । उसके चारों ओर बांग्लादेशी मुस्लिमों ने अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है ।इन आंकड़ों को यहां प्रस्तुत करने का हमारा उद्देश्य केवल एक ही है कि आज देश के जनसांख्यिकीय आंकड़े को गड़बड़ाकर वे अपनी संख्या बढ़ाकर हिंदू को अल्पसंख्यक करते जा रहे हैं और देश का शासन प्रशासन इन सारी देशद्रोही गतिविधियों के प्रति आंखें बंद किए बैठा है ।समझ नहीं आता कि देश का क्या होगा ?
देश को गृहयुद्ध की ओर ले जाने वाले लोग आज जिस प्रकार सड़क पर आकर नंगा नाच कर रहे हैं यह उन्हीं का खेल है जो इस देश में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का राग अलापते हैं । उपरोक्त तथ्य और आंकड़े बता रहे हैं कि भारत किस ओर जा रहा है ? देश के नागरिकों को जागना ही पड़ेगा और इस खेल को बंद करने के लिए भारत के नेतृत्व की उन सभी नीतियों का पुरजोर समर्थन करना होगा जिनसे यह खेल अब और न चल सके।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत

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