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आर्थिकी/व्यापार

केंद्र सरकार द्वारा भारत में लागू की गई वित्तीय समावेशन योजना के लाभ दिखने लगे हैं

किसी भी देश में वित्तीय समावेशन के सम्बंध में ठोस नीतियों को लागू कर आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाया जा सकता है, गरीबी एवं आर्थिक असमानता को कम किया जा सकता है एवं वित्तीय स्थिरिता की स्थिति को प्राप्त किया जा सकता है। भारत में भी केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री जनधन योजना को […]

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द्वितीय तिमाही में उम्मीद से बेहतर रही है आर्थिक वृद्धि दर

कोरोना महामारी के दूसरे दौर के बीच, वित्तीय वर्ष 2021-22 की द्वितीय तिमाही के दौरान, भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी का दौर जारी रहा है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद में जुलाई-सितम्बर 2021 तिमाही में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, जो विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में सबसे अधिक है। हालांकि […]

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कोरोना महामारी और निर्णायक दशक का दौर

जयंत सिंहा आने वाले दशक में विकास और समृद्धि हासिल करने के लिए हरित बदलाव को ध्यान में रखते हुए अपने विकास मॉडल में सुधार करना बेहद ज़रूरी है. कोरोना महामारी के धीमे पड़ने के साथ ही अर्थव्यवस्था की गिरी हुई सेहत तेज़ी से सुधर रही है, ऐसे में भारत के विकास एजेंडे को अब […]

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देश की मजबूत होती अर्थव्यवस्था को जानबूझकर दिखाया गया है गिरावट वाली अर्थव्यवस्था

देश को अपने झूठ की भांग पिलाने, अफीम चटाने में जुटे धूर्त ध्यान दें। कल धनतेरस के पर्व पर राजधानी लखनऊ के बाजारों में 100 करोड़ रुपये का मिष्ठान्न और लगभग 100 करोड़ के ही ड्राई फ्रूट बिके। बाजार में कुल लगभग 2 हजार करोड़ रुपयों की बिक्री कल हुई। यह तो आंकड़ा लगभग 50 […]

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राज्य, समाज, व्यक्ति और निन्यानबे का फेर

रवि शंकर बाप बड़ा न भैय्या, सबसे बड़ा रुपैय्या। यह कहावत जिसने भी बनाई होगी, उसने सोचा नहीं होगा कि कभी एक समय पूरा देश उसकी कहावत के पीछे ही चलेगा। रुपैय्या यानी कि धन औप धन अर्थात् अर्थतंत्र। अर्थतंत्र यानी धन कमाना, धन व्यय करना, धन संग्रह करना, धन का वितरण करना। भारतीय शास्त्रों […]

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ऊंचे तेल दामों से आर्थिकी को मजबूती भी

भरत झुनझुनवाला वर्ष 2016 की तुलना में आज अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम 3 गुना हो गए हैं। इसी के समानांतर अपने देश में पेट्रोल का दाम लगभग 70 रुपये प्रति लीटर से बढ़कर 100 रुपये प्रति लीटर हो गया है। इसका सीधा प्रभाव महंगाई पर पड़ता है। हमारे लिए यह मूल्य वृद्धि […]

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विकास की चाह रखने वालों को बलिदान करना ही पड़ता है

विमल भाई नदियां हमारी संस्कृति और सभ्यता की प्रतीक हैं। पूरी दुनिया में सभ्यताएं नदियों के किनारे ही विकसित हुईं हैं। मानव सभ्यता के विकास में इनका महत्वपूर्ण योगदान है। हमारे देश में तो नदियों को पूजने की परंपरा रही है। हमारे यहां कहा गया है कि गंगा के जल से यदि आचमन भर कर […]

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रोजगार की भरमार से ही संभल सकती है आर्थिक व्यवस्था

सुरेश सेठ आम आदमी के लिए पिछले डेढ़ बरसों में जीना दूभर होता जा रहा था। पिछले साल के प्रारंभिक महीनों से जिंदगी असामान्य हो गयी थी। कोरोना महामारी के प्रकोप और उसके नित्य बढ़ते विस्तार की दहशत तब इतनी थी कि इसका सामना पूर्णबंदी की घोषणा के साथ जीवन को किसी अन्धकूप में डाल […]

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प्रकाश संश्लेषण से खाद्यान्न चुनौती का मुकाबला

मुकुल व्यास दुनिया में 2050 तक 9 अरब लोगों को खाद्यान्नों की आवश्यकता पड़ेगी। इसका अर्थ यह हुआ कि किसानों को सीमित कृषि भूमि पर 50 प्रतिशत अधिक अन्न उगाना पड़ेगा। इस बड़ी चुनौती से निपटने के लिए वनस्पति वैज्ञानिक पौधों में कुछ ऐसी फेरबदल करने की कोशिश कर रहे हैं जिससे उनमें प्रकाश-संश्लेषण (फोटोसिंथेसिस) […]

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पैंडोरा-पेपर्सः काले पन्नों के सफेद दागी

प्रमोद भार्गव टैक्स हैवन यानी कर के स्वर्ग माने जाने वाले देशों में गुप्त संपंत्ति बनाने की पड़ताल से जुड़े दस्तावेजों में 300 प्रतिष्ठित भारतीयों के नाम हैं। इनमें प्रसिद्ध व्यवसायी अनिल अंबानी, विनोद अडाणी, समीर थापर, अजीत केरकर, सतीश शर्मा, किरण मजूमदार शॉ, पीएनबी बैंक घोटाले के आरोपी नीरव मोदी की बहन पूर्वी मोदी, […]

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