भरत झुनझुनवाला
वर्ष 2016 की तुलना में आज अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम 3 गुना हो गए हैं। इसी के समानांतर अपने देश में पेट्रोल का दाम लगभग 70 रुपये प्रति लीटर से बढ़कर 100 रुपये प्रति लीटर हो गया है। इसका सीधा प्रभाव महंगाई पर पड़ता है। हमारे लिए यह मूल्य वृद्धि विशेषकर कष्टप्रद है क्योंकि हम अपनी खपत का 85 प्रतिशत तेल आयात करते हैं। अतः यदि किसी प्राकृतिक आपदा अथवा युद्ध जैसी स्थिति में तेल का आयात नहीं हो सका तो हमारी अर्थव्यवस्था पूरी तरह ठप हो जाएगी। इसलिए प्रधानमंत्री ने सही कहा था कि हमें अपनी तेल की खपत में आयात का हिस्सा घटाकर 50 प्रतिशत पर लाना चाहिए। तेल की मूल्य वृद्धि से हम इस दिशा में बढ़ेंगे क्योंकि महंगे तेल से तेल की खपत कम होगी। फिर भी तेल के ऊंचे मूल्य की तीन प्रमुख हानियां हैं, जिन पर गौर करना होगा।
पहली हानि यह कि हमारा व्यापार घाटा बढ़ता है। तेल महंगा होता है तो हमें उसके आयात के लिए अधिक मात्रा में डॉलर से पेमेंट करना पड़ता है। डॉलर को अर्जित करने के लिए हमें अधिक मात्रा में अपना माल निर्यात करना पड़ता है। अधिक मात्रा में माल को निर्यात करने के लिए हमें अपने माल के दाम को अक्सर घटाना पड़ता है। जैसे बच्चे का विवाह करना हो तो परिवार अपनी भूमि को औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर हो जाता है। इसलिए तेल के ऊंचे दाम से हमारी आर्थिक स्थिति गड़बड़ाती है। लेकिन इसका उपाय उपलब्ध है। यदि हम विनिर्माण के स्थान पर सेवा क्षेत्र पर ध्यान दें तो हम उतनी ही ऊर्जा से अधिक आय अर्जित कर सकते हैं। सिनेमा, संगीत, मेडिकल, ट्रांसक्रिप्शन, विभिन्न भाषाओं में अनुवाद इत्यादि कार्य में ऊर्जा का उपयोग कम होता है। विनिर्माण की तुलना में सेवा क्षेत्र में दसवां हिस्सा ऊर्जा लगती है। हमें इस दिशा में इंग्लैंड से सबक लेना चाहिए। इंग्लैंड द्वारा सेवा क्षेत्र को ज्यादा महत्व दिया जाता है। इंग्लैंड की आय में वित्तीय सेवाओं, पर्यटन और शिक्षा सेवाओं का भारी योगदान है। इस कारण 1 लीटर तेल में इंग्लैंड 16.2 डॉलर की आय अर्जित करता है। चीन द्वारा विनिर्माण अधिक किया जाता है, इसलिए चीन उसी 1 लीटर तेल में केवल 5.3 डॉलर की आय अर्जित करता है। भारत इन दोनों देशों के बीच में है। हम 1 लीटर तेल से 8.2 डॉलर की आय अर्जित करते हैं। अतः यदि हम इंग्लैंड की तरह वित्तीय, पर्यटन और शिक्षा सेवाओं का विस्तार करें तो हम वर्तमान में जो तेल की खपत हो रही है, उसी से दोगुना आय अर्जित कर सकते हैं। यद्यपि यह सही है कि तेल के ऊंचे दाम से हमारा व्यापार घाटा बढ़ता है लेकिन इसकी काट उपलब्ध है।
तेल के ऊंचे दाम का दूसरा प्रभाव महंगाई पर पड़ता है। 2018 में अपने देश में महंगाई की दर 3.4 प्रतिशत थी जो आज बढ़कर 6.2 प्रतिशत हो गई है। लेकिन साथ-साथ जीएसटी की वसूली में भी सुधार हुआ है। 2018 में हम प्रतिमाह लगभग 90 हजार करोड़ रुपये का जीएसटी वसूल कर रहे थे जो कि सितंबर, 2021 में बढ़कर 117 हजार करोड़ हो गया है। अर्थ हुआ कि अपने देश में आर्थिक गतिविधियां तीव्र गति से चल रही हैं, जिसके कारण महंगाई में वृद्धि हो रही है, जिस प्रकार बाइक को तेज चलाने से वह गर्म हो जाती है। अतः महंगाई को केवल तेल पर आरोपित करना उचित नहीं है। इसका मूल कारण अर्थव्यवस्था की गति दिख रही है।
तेल का महंगाई पर यूं भी प्रभाव न्यून है। एक अध्ययन के अनुसार पेट्रोल के दाम में 100 प्रतिशत की मूल्य वृद्धि होती है तो उसका महंगाई पर 1 प्रतिशत प्रभाव पड़ता है। डीजल के दाम में 100 प्रतिशत की वृद्धि होती है तो उसका महंगाई पर 2.5 प्रतिशत का प्रभाव पड़ता है। दोनों का सम्मिलित प्रभाव 1.5 प्रतिशत मान सकते हैं। तेल के दाम में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, इसलिए इसका महंगाई पर प्रभाव मात्र 0.8 प्रतिशत माना जा सकता है। इसलिए वर्तमान में जो महंगाई बढ़ी है, उसमें तेल का हिस्सा कम है और जो आर्थिक गति में तीव्रता आई है, उसका हिस्सा ज्यादा दिख रहा है। यद्यपि यह सही है कि तेल का महंगाई पर प्रभाव पड़ता है लेकिन इसको महंगाई का प्रमुख कारण नहीं बताया जा सकता।
तीसरा तर्क है कि तेल की मूल्य वृद्धि से वित्तीय घाटा बढ़ता है। यह तर्क पूर्णतया भ्रामक है। वर्तमान में अपने देश में आयातित तेल पर 36 प्रतिशत एक्साइज ड्यूटी केंद्र सरकार द्वारा वसूल की जाती है। यदि आयातित पेट्रोल का दाम 50 रुपये प्रति लीटर हो तो उस पर 18 रुपये की एक्साइज ड्यूटी वसूल की जाएगी। यदि इसी आयातित पेट्रोल का दाम 70 रुपये प्रति लीटर हो जाये तो उस पर 25 रुपये की एक्साइज ड्यूटी वसूल की जाएगी। तेल के दाम में वृद्धि के साथ-साथ एक्साइज ड्यूटी की वसूली भी बढ़ती है, इससे सरकार को राजस्व अधिक मिलता है और वित्तीय घाटा कम होता है, न कि बढ़ता है। हां इतना जरूर है कि यदि तेल के बढ़ते मूल्य पर नियंत्रण करने के लिए सरकार एक्साइज ड्यूटी में कटौती करे तो सरकार का राजस्व घटेगा; परंतु तब वह प्रभाव तेल के दाम में वृद्धि का नहीं बल्कि एक्साइज ड्यूटी में कटौती का कहा जाएगा।
इन प्रभावों के सामने तेल के ऊंचे मूल्य के कई लाभ हैं। पहला यह कि तेल के मूल्य विश्व अर्थव्यवस्था की गति को दर्शा रहे हैं। विश्व अर्थव्यवस्था की इस गति के कारण हमारे निर्यात बढ़ेंगे और हमारे प्रवासियों द्वारा जो रेमिटेंस भेजी जाती है, उसमें भी वृद्धि होगी। दूसरा सुप्रभाव यह कि जब तेल महंगा होता है तो हम ऊर्जा उपयोग की कुशलता में सुधार करते हैं। जैसे यदि तेल महंगा होता है तो बाइक खरीदते समय हम ध्यान रखते हैं कि वह कितना एवरेज देती है। यदि तेल सस्ता होता है तो हम एक्सलेरेशन अथवा अन्य बातों पर ध्यान अधिक देते हैं और एवरेज पर कम। अतः तेल के ऊंचे दाम से हमारी ऊर्जा के उपयोग की कुशलता बढ़ती है। तीसरा लाभ यह है कि तेल के ऊंचे दाम से तेल की खपत कम होने से ग्लोबल वार्मिंग कम होगी, जिससे बाढ़, सूखा, तूफान इत्यादि प्राकृतिक आपदाएं कम होंगी और हमारी अर्थव्यवस्था कम प्रभावित होगी। चौथा लाभ यह कि तेल के ऊंचे दाम के समानांतर देश में ऊर्जा का दाम ऊंचा होगा तो सौर और वायु ऊर्जा को बढ़ावा मिलेगा। अतः तेल के ऊंचे मूल्य का समग्र आकलन करें तो हानि को हम काट सकते हैं जबकि लाभ को हासिल करने का प्रयास करना चाहिए। तेल के ऊंचे दाम का स्वागत करना चाहिए।.