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वैदिक सम्पत्ति तृतीय खण्ड : अध्याय -चितपावन और आर्यशास्त्र

गतांक से आगे…. पह्यपुराण मैं लिखा है कि अत्रि ऋषि शीत-कटिबन्ध में तपस्या कर रहे थे। वहां उनको सर्दी लगी। वह सर्दी अत्रि ऋषि की आंखों में घुस गई और आंसू बनकर बाहर निकल पड़ी। उस गिरे हुए आंसू से चंद्रद्वीप,शीतद्वीप आदि भूभाग बन गये। वह सर्दी आकाश की और फिर उड़ी, परन्तु खाली जगह […]

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वैदिक सम्पत्ति : अध्याय – चितपावन और आर्यशास्त्र

गतांक से आगे… अतः हम उनमें से कुछ श्लोक यहां लिखते हैं- कौकणाश्रवित्तपूर्णास्ते चित्तपावनसंज्ञका:।ब्राह्मणेषु च सर्वेषु यतस्ते उत्तमा मता:।। एतेषां वंशजा:सर्वे विज्ञेया ब्राह्मणाःखलु।माध्यंदिनाश्रच देशस्था गौडद्रविडगुर्जरा:।। कर्णाटा तैलंगाद्यापि चित्तपूर्णस्य वंशजा।अतश्रिवत्तस्य पूर्ण यो निद्यात्तस्य क्षयो भवेत्।। अर्थात सब ब्राह्मणों में चितपावन ब्राह्मण ही श्रेष्ठ हैं।गौड़, देशस्थ, द्राविड़,गुर्जर, कर्णाटक और तेलंग आदि जितने ब्राह्मण हैं, सब चितपावनों के […]

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वैदिक सम्पत्ति : तृतीय खंड : अध्याय -द्रविडों का वेदभाष्य

गतांक से आगे… सायणाचार्य ने ऋग्वेद मं० 1, स० 14 से 30 तक के भाष्य में शुन: शेप की कथा लिखकर मनुष्यबलि का एक भयंकर आर्दश सामने खड़ा कर दिया है। परन्तु वेद में इन बातों का कहीं नामोनिशान भी नहीं है। निरुक्त में शुन:शेप का अर्थ विज्ञानवेत्ता किया गया है, पर सायणाचार्य ने शुन:शेप […]

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वैदिक सम्पत्ति- तृतीय खण्ड : अध्याय – ब्रह्मसूत्रों की नवीनता

अध्याय – ब्रह्मसूत्रों की नवीनता गतांक से आगे… उसी तरह रावण की भगलिंगपूजा भी शंकराचार्य की शिवपार्वती होकर, रामानुजाचार्य की लक्ष्मीनारायण बनकर अन्त में बल्लभाचार्य के द्वारा राधाकृष्ण हो गई। राधाकृष्ण व्यभिचार के देवता बने और उसी वाममार्ग का प्रचार होने लगा जो रावण के समय में था। जिस प्रकार वाममार्गी कहते हैं कि, अहं […]

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वैदिक सम्पत्ति तृतीय खण्ड, अध्याय – ब्रह्मसूत्रों की नवीनता

गतांक से आगे… हमने यहां तक प्रस्थानत्रयी की पड़ताल करके देखा कि, उसमें आसुर दर्शन का मिश्रण है और वह मिश्रण रावण के समय में आरंभ हुआ था, जो बादरायण, शुक्र,गोविंदनाथ और शंकराचार्य के समय तक चलता रहा और प्रस्थानत्रयी के नाम से सम्मानित हुआ।इसी के द्वारा बौद्धों और जैनों को नष्ट किया गया और […]

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वैदिक संपत्ति : तृतीय खण्ड : अध्याय ब्रह्मसूत्रों की नवीनता

गतांक से आगे… वेदान्तदर्शन के अनेक सूत्र तैत्तिरीय और बृहदारण्यक उपनिषद के आधार पर बने हैं, इसलिए भी वेदान्तदर्शन वेदव्यासकृत नहीं हो सकता। क्योंकि हम रावणकृत कृष्णयजुर्वेद की उत्पत्ति के इतिहास में लिखा आए हैं कि, वह व्यास के शिष्यों के शिष्य याज्ञवल्क्य के समय में वर्तमान रूप में संपादित हुआ। अर्थात तैत्तिरीय उपनिषद वेदव्यास […]

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वैदिक संपत्ति : तृतीय खण्ड : अध्याय ब्रह्मसूत्रों की नवीनता

गतांक से आगे…. प्रस्थानत्रयी के प्रधान साहित्य उपनिषद की विशेष रीति से और दूसरे साधारण साहित्य गीता की साधारण रीति से आलोचना हो गई। दोनों साहित्य में आसुरी सिद्धांतों का मिश्रण सिद्ध हो गया। अब उक्त दोनों पुस्तकों के आसुरी सिद्धांतों को दार्शनिक रूप देने के लिए जो वेदान्तदर्शन नामी नवीन दर्शन गढ़ा गया है, […]

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वैदिक संपत्ति : आसुर उपनिषद की उत्पत्ति

गतांक से आगे…. जहां वेद कहते हैं कि ‘ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमुपाध्नत’ अर्थात ब्रह्मचर्य से ही देवता अमृत को प्राप्त होते हैं और जहां छान्दोग्य 7/4/3 कहता है कि, तद्यएवैतं ब्रह्मलोकं ब्रह्मचर्येणानुविन्दति तेषामेवैष ब्रह्मलोकस्तेषां सर्वेषु लोकेषु कामचारो भवति’ अर्थात वह निश्चय ही ब्रह्मचर्य से ब्रह्मलोक को प्राप्त होते हैं और ब्रह्मलोकवासी सब लोकों में जाने […]

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वैदिक सम्पत्ति : आसुर उपनिषद् की उत्पत्ति

गतांक से आगे…. उपनिषद और गीता के समस्त वर्णन से, कम से कम इतना तो निर्णय हो गया कि,उपनिषदों का बहुत सा भाग वैदिक नहीं है और न उनका बहुत सा भाग ब्राह्मणों द्वारा अनुमोदित ही है। इतना ही नहीं, प्रत्युत यह भी निर्णय हो गया कि, वह एक गुप्त मण्डली के द्वारा असुर प्रवृत्ति […]

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वैदिक सम्पत्ति : आसुर उपनिषद् की उत्पत्ति

गतांक से आगे… यह सारा प्रपंच अधिक स्पष्ट हो जाता है, जब हम आसुर उपनिषद में लिखा हुआ पाते हैं कि, उपनिषद्विद्या को ब्राह्मण नहीं जानते थे। छान्दोग्य 5/3/7 में लिखा है कि ‘न प्राक त्वत्त पुरा विद्या ब्राह्मणन गच्छति’ अर्थातत् तुम से पूर्व विद्या को ब्राह्मण नहीं जानते थे। इसी तरह बृहदारण्यक 6/2/8 में […]

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