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वैदिक संपत्ति : ऋषि, देवता, छन्द और स्वर

गतांक से आगे …. ऋषि के आगे देवता हैं । देवता के विषय में सर्वानुक्रमरगी में लिखा है कि ‘या तेनोच्यते सा देवता’ अर्थात् मंत्र में जिस विषय का वर्णन हो, वही विषय उस मंत्र का देवता है । यदि किसी मन्त्र का देवता अग्नि हो, तो समझना चाहिये कि इस मन्त्र में अग्नि का […]

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वैदिक संपत्ति : गतांक से आगे … प्रक्षेप और पुनरुक्ति

प्रक्षेप और पुनरुक्ति इसी प्रकार की बाह्य संस्कृत का नमूना अथर्ववेद में भी देखा जाता है। अथर्व काण्ड 19, सूक्त 22 और 23 में लिखा है कि- अङ्गिरसानामाद्यै: पञ्चानुवाकैः स्वाहा। आथर्वणानां चतु ऋचेभ्यः स्वाहा। अर्थात् अङ्गिरस वेद के पाँच अनुवाकों से स्वाहा और अथर्ववेद की चार ऋचाथों से स्वाहा । इन वाक्यों से प्रतीत होता […]

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वैदिक सम्पत्ति : अध्याय – प्रक्षेप और पुनरुक्ति

अध्याय – प्रक्षेप और पुनरुक्ति गतांक से आगे … इसी तरह सामवेद का भी खिल-भाग अर्थात् परिशिष्ट भाग प्रसिद्ध है। सभी जानते हैं कि सामवेद की महा नाम्नी ऋचाएँ और आरण्यकभाग परिशिष्ट हैं। महानाम्नी ऋचाओं के विषय में ऐतरेय ब्राह्मण 22/2 में लिखा है कि ‘ ता ऊर्ध्वा सोम्नोऽभ्यसृजत । यदूर्ध्वा सोम्नोऽभ्यसृजत तत् सिमा अभवत् […]

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वैदिक सम्पत्ति : प्रक्षेप और पुनरुक्ति

वैदिक सम्पत्ति प्रक्षेप और पुनरुक्ति गतांक से आगे ….. जहाँ तक हमको ज्ञात है, अब तक एक भी प्रमाण इस प्रकार का नहीं उपस्थित किया गया कि अमुक स्थल प्रक्षिप्त है और इसको आज तक कोई नहीं जानता था। जिन स्थानों को प्रक्षिप्त बतलाया जाता है, वे बहुत दिन से ब्राह्मणकाल से सबको ज्ञात हैं। […]

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वैदिक सम्पत्ति अध्याय – वेदों की शाखाएं गतांक से आगे …

गतांक से आगे … होमयस्त – 1/24 में लिखा है कि – हओमो तेम् चित् यिम् केरेसानीम् अप-क्षथ्रेम् निषधयत्, योरओस्ते क्षथ्रो काम्य यो दवत् नोइत में अपाम् आथ्रव अइविशतीश वेरेध्ये दंध्रदूव चरात्: होवीस्पे वरेधनाम् वगात् नी वीस्पे वरेधनाम् जनात्। होनयस्त 1 । 24 । अर्थात् जो केरेसेती बादशाही के कारण बड़ा ही मगरूर हो गया […]

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वैदिक सम्पत्ति : अध्याय वेदों की शाखाएं

गतांक से आगे … सामवेद की किसी जमाने में 1000 तक शाखाएं हो गई थी, परंतु इस समय उनका कहीं पता नहीं है। चरणव्यूह की टीका में महीदास ने लिखा है कि – ‘आसॉ षोडशशाखाना मध्ये तित्रः शाखा विद्यन्ते गुर्जरदेश कौथुमी प्रसिद्धा , जैमिनीया प्रसिद्वा,महाराष्टे तु राणायनीयां ‘ अर्थात् इस की 16 शाखाओं में अब […]

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वैदिक संपत्ति : गतांक से आगे ….. वेदों की शाखाएं

गतांक से आगे ….. वेदों की शाखाएं हमारा अनुमान है कि माध्यन्दिनीय में आये हुए मन्त्रों के अतिरिक्त काव्यशाला में जो फेरफार हुआ है- पाठभेद और न्यूनाधिकता हुई है— उसका कारण काण्वऋषि का विचारपरिवर्तन ही है। विचारपरिवर्तनों से ही सम्प्रदायों की सृष्टि होती है । अतएव काण्वऋषि ने भी अपना एक अलग शाखासम्प्रदाय प्रचलित किया […]

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वैदिक सम्पत्ति : गतांक से आगे… वेदों की शाखाएँ

वेदों की शाखाएँ शाकल और बाष्कल शाखाओं के संयुक्त रूप के अतिरिक्त अब ऋग्वेद की कोई दूसरी शाखा नहीं मिलती । कहते हैं कि कलकत्ते की एशियाटिक सोसायटी के पुस्तकालय में ऋग्वेद से सम्बन्ध रखनेवाली शांख्यायनी शाखा मिलती है , पर उसका स्वरूप अस्तव्यस्त है । अस्तव्यस्तता के अतिरिक्त वह शाकल के शिष्यों की प्रवचन […]

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वैदिक सम्पत्ति : गतांक से आगे …

वैदिक सम्पत्ति गतांक से आगे … जिस समय गोत्र और शाखाप्रचार की धूम हो रही थी , उस समय एक एक वेद की अनेकों शाखाएँ हो गई थीं । मूल मन्त्रों की ज्यों की त्यों रक्षा करते हुए केवल मन्त्रों के उलट फेर से जितनी शाखाएँ हो सकती थीं , उतनी हुई । हम उन […]

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वैदिक संपत्ति : आदिमकालीन संहिताएं

वैदिक सम्पत्ति गतांक से आगे … संहिता नाम ज्यों के त्यों मंत्रों का है । संहिता का अर्थ करते हुए पाणिनि मुनि अष्टाध्यायी 1/4/106 में कहते ‘ पर : सन्निकर्षः संहिता ‘ अर्थात् ‘ पदान्तान्पदादिभि : सन्दधाति यत्सा ‘ अर्थात् पदों के अन्त को अन्य पदों के आदि के साथ सन्धिनियम से बाँधने का नाम […]

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