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लक्ष्य से क्यों भटक रहा है युवा?

आरती शांत डोडा, जम्मू माना जाता है कि जिस समाज का युवा जागृत हो उसका आधार प्रगति तथा बुलंदी की ओर होता है. युवा पीढ़ी हमारे समाज का दर्पण है और हम अपना भविष्य अपने युवाओं की सोच के आधार पर भी तय कर सकते हैं. जिस युवा शक्ति का हम आजादी से पहले का […]

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बुनियादी ढांचा है, मगर सुविधा नहीं पूजा गोस्वामी

पूजा गोस्वामी रौलियाना, उत्तराखंड किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए ज़रूरी है कि वहां न केवल बुनियादी ढांचा मज़बूत हो, बल्कि क्षेत्र की जनता को उसका पूरा लाभ भी मिल रहा हो. बुनियादी ढांचा से तात्पर्य स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, सड़क, बिजली, पीने का साफ़ पानी, शौचालय की सुविधा, आवास और सभी स्तर पर संपर्क […]

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अंधविश्वास की जद में समाज

सिमरन कुमारी मुजफ्फरपुर, बिहार भारतीय समाज आज भी रूढ़िवाद और अंधविश्वास से बाहर नहीं आया है. अनपढ़ तो अनपढ़, शिक्षित भी इससे जकड़े हुए हैं. समाज में बुराई सदियों से चली आ रही है. यह ऐसा रोग है जिसने समाज की नींव खोखली कर दी है. खासकर महिलाएं और किशोरियां झाड़फूंक, जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, ओझा-गुणी के […]

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लैंगिक असमानता झेलती किशोरियां

हेमा रावल गनीगांव, उत्तराखंड प्रत्येक बच्चे का अधिकार है कि उसे उसकी क्षमता के विकास का पूरा मौका मिले. लेकिन समाज में लैंगिक असमानता की फैली कुरीतियों की वजह से ऐसा संभव नहीं हो पाता है. भारत में लड़कियों और लड़कों के बीच न केवल उनके घरों और समुदायों में, बल्कि हर जगह लैंगिक असमानता […]

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प्लास्टिक सामग्रियां छीन रही हैं बसोर समुदाय का पुश्तैनी धंधा

पूजा यादव भोपाल मध्यप्रदेश में बसोर समुदाय के लोग अपना पुश्तैनी काम बांस से डलिया, छबड़ी, सूपा, पंखा, टपरी, टपरा, कुर्सी, झूला, झटकेड़ा, फर्नीचर,फूलदान और टोपली आदि बनाना छोड़कर मजदूरी करने लगे हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि इनके बनाये बांस की ईको फ्रेंडली सामग्रियों की जगह तेजी से प्लास्टिक की बनी सामग्रियों ने ले लिया है. […]

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लोहे को जीवन का आकार देती गड़िया लोहार महिलाएं

शेफाली मार्टिन्स राजस्थान कृषि हमारे देश का एक महत्वपूर्ण व्यवसाय है, भारत के पारंपरिक व्यवसायों में इसका उल्लेख किया गया है. इसीलिए कृतज्ञता के भाव में हम किसानों को अन्नदाता कहते हैं. लेकिन जिस चीज की अनदेखी की जाती है वह है लोहार का वह हाथ, जो किसानों को औज़ार प्रदान कर अनाज उगाने में […]

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राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस (11 अप्रैल) पर विशेष आलेख : सुरक्षित मातृत्व से शिशु मृत्यु दर में कमी संभव है

भारती डोगरा जम्मू महिलाएं किसी भी समाज की मजबूत स्तंभ होती हैं. जब हम महिलाओं और बच्चों की समग्र देखभाल करेंगे तभी देश का विकास संभव है. किसी कारणवश एक गर्भवती महिला की मौत से न केवल बच्चों से मां का आंचल छिन जाता है बल्कि पूरा परिवार ही बिखर जाता है. इसलिए गर्भवती महिलाओं […]

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आत्मनिर्भरता से ही सशक्तिकरण संभव है

अर्चना किशोर छपरा, बिहार आजकल महिलाएं वह सब कुछ कर रही हैं जिस पर वर्षों से पुरुषों का एकाधिकार था. लेकिन कई ऐसे छोटे स्तर के काम भी हैं जो आमतौर पर महिलाओं द्वारा किए जाते रहे हैं और ये काम उन्हें पेशेवर और आत्मनिर्भर बनाते हैं. सिलाई और कढ़ाई एक ऐसा क्षेत्र है, जो […]

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शारीरिक रूप से अक्षम को शैक्षिक रूप से सक्षम बनाना ज़रूरी है,

रेहाना कौसर पुंछ, जम्मू हमारे देश में बहुत से ऐसे लोग हैं जो किसी न किसी प्रकार से दिव्यांग हैं. केंद्र की सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार देश की कुल 121.08 करोड़ की आबादी में 2.68 करोड़ दिव्यांगों की संख्या है, जो कुल आबादी का 2.21 प्रतिशत है. इनमें 1.5 करोड़ […]

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नहीं बदली है माहवारी से जुड़ी अवधारणाएं

नैना सुहानी मुजफ्फरपुर, बिहार मासिक धर्म एक ऐसा विषय है जिस से ग्रामीण इलाकों में अनगिनत अंधविश्वास और पुरानी सोच जुड़ी हुई है. सामाजिक प्रतिबंध के कारण यहां ऐसे विषयों पर बात करना भी पाप माना जाता है. जिस वहज से महिलाएं सही जानकारी के अभाव में बीमारियों का शिकार हो जाती हैं और उन्हें […]

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