चार चार बेगमों का, हक मर्दों को. और चलती-फिरती जेल,*बेगम को . मूँद कर आँख इक रोज़ बेगम बन जा. पहन कर बुरका ज़रा संसद* हो आ. अण्डे* से बाहर निकल कर देख. आँखों से, हरा चष्मा उतार कर देख. (अण्डा= दकियानूसी रुढियाँ) बुरका नहीं, है ये, चलती फिरती जेल है; हिम्मत है, चंद रोज़ […]
श्रेणी: समाज
अपनों से ही शर्मसार होती मानवता
राजेंद्र प्रसाद शर्मा आंकड़े भले ही दिल्ली के हों, पर कमोबेश यह तस्वीर सारी दुनिया की देखने को मिलेगी। राजधानी दिल्ली में 2017 की आपराधिक गतिविधियों की बाबत दिल्ली पुलिस द्वारा इसी माह जारी आंकड़ों में कहा गया है कि बलात्कार के सत्तानवे फीसद मामलों में महिलाएं अपनों की ही शिकार होती हैं। अपनों से […]
नकली दवा का दर्द
बाल मुकुंद ओझा घटिया और नकली चिकित्सीय उत्पादों का बाजार, प्रभावी नियंत्रण के अभाव में, लगातार बढ़ रहा है। मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहे इसके खतरनाक प्रभाव को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में एक बेहद चौंकाने वाली रिपोर्ट जारी की है। भारत सहित अ_ासी देशों में किए गए अध्ययन पर आारित इस […]
चिंतित करता है गांवों से पलायन
घनश्याम सिंह हिमाचल प्रदेश में यदि खेतीबाड़ी की दशा सुधारने के लिए प्रयास किए जाएं, तो यह क्षेत्र प्रदेश की तरक्की में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसके विपरीत यदि समय रहते हमने इस पर उचित ध्यान न दिया, तो खाद्यान्न संकट के साथ-साथ कई और गंभीर समस्याएं देश-प्रदेश को सताना शुरू कर देंगी। […]
पद्मावती फिल्म में जौहर का अपमान!
देश में सांस्कृतिक और ऐतिहासिक मूल्यों का उपहास उड़ाने का खेल लम्बे समय से चल रहा है। तथाकथित वामपंथी बुद्धिजीवी के दिमाग की उपज कहे जाने वाले इन उपहासों के पीछे मात्र यही भाव प्रदर्शित होता है कि जिनसे समाज को प्रेरणा मिलती है, उन्हें किसी प्रकार से मिटाया जाए और उनके प्रति लोगों में […]
दिव्यांगों को सहानुभूति नहीं, सहयोग चाहिए
दिव्यांगजनों की हमारे समाज में क्या स्थिति है तथा उनके प्रति समाज की क्या मानसिकता है? दरअसल, न केवल भारत में बल्कि समूची दुनिया में एक समय तक दिव्यांगता को सिर्फ चिकित्सा संबंधी समस्या समझा जाता था, लेकिन समय के साथ सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंस आदि दिव्यांग व्यक्तियों द्वारा जिस तरह से जीवन के विभिन्न […]
बाल मुकुन्द ओझा भारत में 1975 से हर साल आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इस अवसर पर महिलाओं के अधिकार, उनके सम्मान और अर्थव्यवस्था में उनकी भागीदारी की चर्चा होती है, महिलाओं को प्रोत्साहन देने की बात होती है। यह दिन महिलाओं को उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक तरक्की दिलाने […]
समय की जरूरत है पानी बचाना
अतुल कनक पिछले दिनों जब मुंबई शहर में मानसून की पहली बारिश के बाद सडक़ें दरिया बन कर उफन रही थीं- सुदूर दक्षिण से आई यह खबर विचलित करने वाली थी कि तमिलनाडु इस दशक के सबसे भीषण जल संकट से जूझ रहा है। जून के तीसरे सप्ताह में चेन्नई में पेयजल की आपूर्ति घटा […]
बाबाओं के पास जो भीड़ जमा होती है, उसके मूल में दुख है, अभाव है, गरीबी है या अशांति है। कोई बेटे से परेशान है, कोई बहू से, कोई नौकरी से, कोई जमीन के झगड़े में फंसा है और किसी को कोर्ट-कचहरी के चक्कर में जायदाद बेचनी पड़ गई है। या तो धन ही नहीं […]
महर्षि दयानंद ने कहा था- ”यदि अब भी यज्ञों का प्रचार-प्रसार हो जाए तो राष्ट्र और विश्व पुन: समृद्घिशाली व ऐश्वर्यों से पूरित हो जाएगा।” इस बात से लगता है कि भारत सरकार से पहले इसे विश्व ने समझ लिया है। देखिये-फ्रांसीसी वैज्ञानिक प्रो. टिलवट ने कहा है- ”जलती हुई खाण्ड के धुएं में पर्यावरण […]