हमारा यह मनुष्य जन्म सत्य एव यथार्थ है। किसी भी मनुष्य को अपने अस्तित्व के होने में कोई सन्देह नहीं होता। हम हैं यह भाव हमारे अस्तित्व व उपस्थिति को स्वयंसिद्ध कर रहा है। हम अतीत में थेया नहीं, यह भी विचार कर माना व जाना जा सकता है। यदि हम न होते तो फिर […]
श्रेणी: धर्म-अध्यात्म
मनुष्य मननशील प्राणी को कहते हैं। मनुष्य के पास परमात्मा प्रदत्त बुद्धि है जिसका सदुपयोग कर वह उचित व अनुचित तथा सत्य व असत्य का निर्णय कर सकता है। मनुष्य को अपनी बुद्धि की क्षमता बढ़ानी चाहिये। इसके लिये उसे उत्तम व ज्ञानी निष्पक्ष तथा देशभक्त गुरुओं की शरण में जाकर कृतज्ञता एवं श्रद्धापूर्वक शिक्षा […]
ओ३म ========== हम अपने जीवन के प्रथम दिन से ही इस सृष्टि को अपनी आंखों से देख रहे हैं। इस सृष्टि का अस्तित्व सत्य है। यह सृष्टि विज्ञान के नियमों के अनुसार चल रही है। इस सृष्टि तथा इसके नियमों का नियामक कौन है? इस प्रश्न पर विचार करने पर इसका एक ही समाधान मिलता […]
सुख की इच्छा (दार्शनिक विचार) संसार में हर व्यक्ति सुख का अभिलाषी है। कोई भी व्यक्ति दुःखी नहीं होना चाहता एवं सदा सुख में वास करना चाहता है। दुःख त्रिविध आधिदैविक (मन, इन्द्रियों के विकार , अशुद्धि, चंचलता आदि से उत्पन्न दुःख), अधिभौतिक (अन्य व्यक्तियों द्वारा अथवा शीत, ताप,वर्षा, भूकम्प, बाढ़ आदि प्राकृतिक दैवी घटना […]
परमात्मा का अस्तित्व शास्त्रार्थ महारथी- पंडित रामचंद्र दहेलवी 3 फरवरी को पंडित रामचंद्र जी दहेलवी का देहांत हुआ था। हम संसार मेँ जो कुछ भी कार्य करते हैँ, वे सब उस परम् पिता परमात्मा के द्वारा किये गये कार्योँ की नकल ही है। अपने द्वारा किये गये समस्त क्रिया-कलापोँ से ही हम उस परमपिता को […]
(दार्शनिक विचार) #डॉ_विवेक_आर्य शंका- एक नास्तिक ने प्रश्न किया की ईश्वर विश्वास पाप से कैसे बचाता है? समाधान- ईश्वर विश्वासी व्यक्ति सर्वव्यापक अर्थात ईश्वर को जगत में हर स्थान पर स्थित होना मानता है। जो व्यक्ति ईश्वर को मानेगा तो वह ईश्वरीय कर्मफल व्यवस्था में भी विश्वास करेगा। कर्मफल सिद्धांत जो जैसा बोयेगा वो वैसा […]
(दार्शनिक विचार) #डॉ_विवेक_आर्य ईश्वर सर्वशक्तिमान है। इसमें कोई संदेह नहीं है। पर सर्वशक्तिमान का अर्थ क्या है? यह जानना आवश्यक है। ईश्वर के सर्वशक्तिमान से कुछ लोग यह तात्पर्य निकलते है कि ईश्वर सब कुछ करने में समर्थ है। पर क्या वाकई में ईश्वर सब कुछ करने में समर्थ है? नहीं। कुछ उदाहरण से समझते […]
(दार्शनिक विचार) #डॉ_विवेक_आर्य मैंने अपने जीवन में 10 वर्ष विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों में काम किया है। इस कार्य को करते हुए मुझे अनेक अच्छे-बुरे अनुभव हुए। सबसे अधिक बुरा तब लगता था जब मैं किसी जवान युवक-युवती को नशे के कारण अस्पताल में भर्ती होते हुए देखता था। इनमें से अनेक समृद्ध […]
समय के आगे बढ़ने के साथ मनुष्यों के ज्ञान के बढ़ने की बात आते ही हमें माण्डुक्य उपनिषद की याद आ जाती है। अथर्ववेद का ये उपनिषद आकार में सबसे छोटे उपनिषदों में गिना जाता है। इसके साथ ही ये उपनिषद सबसे अधिक विवादों की जड़ में रहा उपनिषद भी है। ये मुक्तिका के 108 […]
भारत में रोटी, कपड़ा और मकान को मूलभूत आवश्यकताओं की श्रेणी में गिना जाता है। परंतु, कोरोना वायरस महामारी के बाद की स्थितियों को देखते हुए अब यह कहा जा सकता है कि रोटी, कपड़ा और मकान के साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं को भी अब इसी श्रेणी में गिना जाना चाहिए। अब समय आ गया […]