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आर्य समाज वेद

वैदिक ईश्वर स्तुति प्रार्थना उपासना मन्त्र

विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव । यद् भद्रं तन्न आ सुव ॥१॥ मंत्रार्थ – हे सब सुखों के दाता ज्ञान के प्रकाशक सकलजगत के उत्पत्तिकर्ता एवं समग्र ऐश्वर्ययुक्त परमेश्वर! आप हमारे सम्पूर्ण दुर्गुणों, दुर्व्यसनों और दुखों को दूरकर दीजिए, और जो कल्याणकारक गुण, कर्म, स्वभाव, सुख और पदार्थ हैं,उसको हमें भलीभांति प्राप्त कराइये। हिरण्यगर्भ: समवर्त्तताग्रे भूतस्य […]

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वेद

वेद एवं वैदिक साहित्य के स्वाध्याय से मनुष्य श्रेष्ठ गुणों से युक्त मनुष्य बनता है

वेद सृष्टि की आरम्भ में परमात्मा द्वारा अमैथुनी सृष्टि में उत्पन्न चार ऋषियों को दिया गया ईश्वरीय सत्य, पूर्ण व निर्दोष ज्ञान है। प्राचीन मान्यता है कि वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है। वेदों में सब मनुष्यों को ‘मनुर्भव’ अर्थात् मनुष्य बनने का सन्देश दिया गया है। इसका अर्थ है कि जन्म से मनुष्य […]

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वेद

वेद ईश्वर प्रदत्त ज्ञान व सत्य विद्या के ग्रन्थ हैं

संसार में जितनी भी ज्ञान की पुस्तकें हैं वह सब मनुष्यों ने ही लिखी व प्रकाशित की हैं। ज्ञान के आदि स्रोत पर विचार करें तो ज्ञात होता है कि सृष्टि की उत्पत्ति व मानव उत्पत्ति के साथ आरम्भ में ही मनुष्यों को वेदों का ज्ञान प्राप्त हुआ था। जो लोग नास्तिक व अर्ध नास्तिक […]

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आर्य समाज वेद

महर्षि दयानन्द की प्रमुख देन चार वेद और उनके प्रचार का उपदेश

महर्षि दयानन्द ने वेद प्रचार का मार्ग क्यों चुना? इसका उत्तर है कि उनके समय में देश व संसार के लोग असत्य व अज्ञान के मार्ग पर चल रहे थे। उन्हें यथार्थ सत्य का ज्ञान नहीं था जिससे वह जीवन के सुखों सहित मोक्ष के सुख से भी सर्वथा अपरिचित व वंचित थे। महर्षि दयानन्द […]

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धर्म-अध्यात्म वेद

वेदों के आचरण से ही मनुष्य को अभ्युदय एवं निःश्रेयस प्राप्त होते हैं

हमें मनुष्य जीवन जन्म-जन्मान्तरों में दुःखों से सर्वथा निवृत्त होने के लिए एक अनुपम साधन मिला है। यह हमें परमात्मा द्वारा प्रदान किया गया है। माता-पिता, सृष्टि तथा समाज हमारे जन्म, इसके पालन व उन्नति में सहायक बनते हैं। हमें अपने जीवन के कारण व उद्देश्यों पर विचार करना चाहिये। इस कार्य में वेद व […]

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