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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय – 10 ख एक महत्वपूर्ण दृष्टांत

एक महत्वपूर्ण दृष्टांत हमने अन्यत्र एक प्रसंग का उल्लेख किया है। जिसे जहां भी प्रसंग वश लिखित कर रहे हैं। सन 1200 के लगभग भारत में कन्नौज में गहरवाड़ या राठौड, दिल्ली-अजमेर में चौहान, चित्तौड़ में शिशोदिया और गुजरात में सोलंकी-ये चार राजपूत वंश शासन कर रहे थे। इन राजपूत वंशों में परस्पर बड़ी ईर्ष्या […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय – 10 क धर्म अधर्म और नियोग

धर्म अधर्म और नियोग संसार में एक से बढ़कर एक अत्याचारी शासक हुआ है। यदि बात इस्लाम के मानने वाले शासकों की करें तो वह तो भारत पर लुटेरे बनकर गिद्धों के दल के रूप में टूटे थे। जिन्होंने भारत के धन के साथ साथ उसकी अस्मिता को भी लूटा था। उनकी इस लूट के […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 9 ख , हमारा क्रोध होता था सात्विक

हमारा क्रोध होता था सात्विक हमें यह भी समझना चाहिए कि हमारे क्षत्रिय लोग अज्ञानी या अशिक्षित नहीं होते थे। वेदादि शास्त्रें का पढ़ना तथा पढ़ाना और विषयों में न फंस कर जितेन्द्रिय रह के सदा शरीर और आत्मा से बलवान् रहना उनके स्वभाव में सम्मिलित था । यही उनका धर्म था। अपने धर्म के […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 9 क वेदानुकूल न्यायप्रियता और भारत की सामाजिक व्यवस्था

वेदानुकूल न्यायप्रियता और भारत की सामाजिक व्यवस्था महर्षि मनु की व्यवस्था के अनुसार प्राचीन काल में ब्राह्मण लोगों का मुख्य कार्य होता था – पढ़ना, पढ़ाना, यज्ञ करना – कराना, दान देना, लेना – ये छः कर्म हैं। ‘प्रतिग्रहः प्रत्यवरः’ मनु० अर्थात् प्रतिग्रह लेना नीच कर्म है। जिन लोगों ने ब्राह्मण के कार्यों में केवल […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास दर्शन, अध्याय .. 8 ख विवाह और परिवार रूपी संस्था

विवाह और परिवार रूपी संस्था वास्तव में विवाह परिवार रूपी संस्था को चलाए रखने के लिए एक बहुत ही पवित्र और उत्तम संस्कार है। जिसकी तैयारी में किसी भी प्रकार का प्रमाद नहीं करना चाहिए। बहुत सोच समझ कर विवाह के संबंध स्थापित करने चाहिए । कुल, गोत्र आदि के साथ-साथ दोनों परिवारों के सामाजिक […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास दर्शन, अध्याय .. 8 क भारत की विवाह संबंधी अवधारणा

भारत की विवाह संबंधी अवधारणा वैदिक मान्यताओं के विपरीत चलकर इस्लाम ने हर मर्यादा को भंग करने का काम किया । विवाह के संबंध में भी यदि देखा जाए तो जहां वैदिक धर्म में दूर देश में विवाह करने की परंपरा को अपनाया गया , वहीं इस्लाम ने इसको घर के पड़ोस तक ही नही […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 7 ख , परित्याग के योग्य ग्रंथों की सूची

परित्याग के योग्य ग्रंथों की सूची परित्याग के योग्य ग्रंथों की सूची भी महर्षि ने हमारे समक्ष प्रस्तुत की है। उनके प्रमुख नाम उन्होंने इस प्रकार दिए हैं :- व्याकरण में कातन्त्र, सारस्वत, चन्द्रिका, मुग्धबोध, कौमुदी, शेखर, मनोरमा आदि। कोश में अमरकोशादि। छन्दोग्रन्थ में वृत्तरत्नाकरादि। शिक्षा में ‘अथ शिक्षां प्रवक्ष्यामि पाणिनीयं मतं यथा’ इत्यादि। ज्यौतिष में शीघ्रबोध, मुहूर्त्तचिन्तामणि आदि। काव्य में नायिकाभेद, कुवलयानन्द, रघुवंश, माघ, किरातार्जुनीयादि। मीमांसा में […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 6 , क्षत्रिय भी वेदाध्ययन करने वाले हों

क्षत्रिय भी वेदाध्ययन करने वाले हों वेद मनुष्य के मनुष्यत्व को देवत्व में परिवर्तित करने की शक्ति और सामर्थ्य रखते हैं। इनके अध्ययन से मनुष्य देवत्व की अपनी साधना को प्राप्त करता है। उसी से वह मोक्ष की प्राप्ति करने में सफल होता है। इस प्रकार वेदाध्ययन मनुष्य को मोक्ष दिलाता है । जबकि अन्य […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 5 व्यक्तिगत जीवन है सार्वजनिक जीवन का आधार

आर्य लोग व्यक्तिगत जीवन की पवित्रता पर बल दिया करते थे। विवाह से पूर्व वीर्य स्खलन की संभावना उनके व्यक्तिगत जीवन में रंचमात्र भी नहीं होती थी। संतानोत्पत्ति के लिए विवाह करना उनके जीवन का लक्ष्य होता था। वीर्य शक्ति के संरक्षण से ही व्यक्तिगत जीवन की शुचिता बनी रह सकती है, इस बात को […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 4, हम आर्य बनकर करते थे संसार का मार्गदर्शन

हम आर्य बनकर करते थे संसार का मार्गदर्शन भारत के प्राचीन गौरव पर प्रकाश डालते हुए अपनी एक कविता में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी लिखते हैं कि :- हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला […]

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