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विशेष संपादकीय

‘बेड़ी और वीणा’ के सुर फिर से एक बना दो

बहादुरशाह जफर का शेर है :- जिसे देखा हाकिमे वक्त ने, कहा ये तो काबिलेदार है। कहीं ये सितम भी सुने भला दिये फांसी लाखों को बेगुनाह।।दार का अर्थ फांसी होता है। सचमुच परतंत्रता के उस काल में हमारे देशवासियों के प्रति विदेशी शासकों की ऐसी ही मानसिकता बन चुकी थी। देशभक्ति उस समय एक […]

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