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बिखरे मोती

ब्रह्म तो मायाधीश है, जीव है मायाधीन

गतांक से आगे…. ब्रह्म तो मायाधीश है, जीव है मायाधीन। माया बंध को तोडक़र, बिरला हो स्वाधीन ।। 970।।   व्याख्या :-इस संसार में जीव, ब्रह्म, प्रकृति अनादि हैं। तीनों की अपने-अपने क्षेत्र में सत्ता है किंतु सर्वोच्च सत्ता ब्रह्म की है। जीव और प्रकृति का अधिष्ठाता ब्रह्म है। जीवों के आवागमन के क्रम का […]

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आओ कुछ जाने

मैं ब्रह्म नहीं अपितु एक जीवात्मा हूं

मैं कौन हूं? यह प्रश्न कभी न कभी हम सबके जीवन में उत्पन्न होता है। कुछ उत्तर न सूझने के कारण व अन्य विषयों में मन के व्यस्त हो जाने के कारण हम इसकी उपेक्षा कर विस्मृत कर देते हैं। हमें विद्यालयों में जो कुछ पढ़ाया जाता है, उसमें भी यह विषय व इससे सम्बन्धित […]

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