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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-43

इस प्रकार मूर साहब को भी अपने परिश्रम में हार का मुंह देखना पड़ गया था। इसके उपरान्त भी भारत में यह बहस बार-बार उछाली जाती है कि आर्य विदेशी थे-इसका अभिप्राय केवल ये है कि भारत को विश्वगुरू के पद पर बैठने से रोकने वाली शक्तियां षडय़ंत्र पूर्वक भारत को अपने ही विवादों में […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-42

एलफिंस्टन का कहना है-”जावा का इतिहास कलिंग से आये हिन्दुओं की बहुत सी संस्थाओं के इतिहास से भरा पड़ा है। जिससे पता चलता है कि वहां से आये हुए सभ्य लोगों द्वारा स्थापित किये गये निर्माण कार्य जो ईसा से 75 वर्ष पूर्व बनाये गये थे, आज भी वैसे के वैसे ही खड़े हैं।” मि. […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-41

इन प्रमाणों से सिद्घ होता है कि ये सभी लोग पूर्व से अर्थात भारत से ही आये थे। ईंटों पर आज भी लोग अपनी भट्टा कंपनी का नाम लिखते हैं, उससे पता चलता है कि ईंटों पर इस प्रकार नाम लिखने की परम्परा भारत में सदियों पुरानी है। साथ ही यह भी कि पक्की ईंट […]

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राजनीति संपादकीय

रोहिग्यां मुसलमान और भारत धर्म

अपने देश की संस्कृति और धर्म को बचाकर रखने का अधिकार हर देश के निवासियों को है। हर देश मानवतावाद में विश्वास रखता है और उसे विश्व के लिए उपयोगी भी मानता है, पर जब उसे कोई संप्रदाय इस प्रकार की चुनौती देता है कि उसके अपने देश की संस्कृति और धर्म को ही अस्तित्व […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-39

सिंधु नदी के मुहाने से लेकर कुमारी अंतरीप तक समुद्र के किनारे रहने वाले लोगों के प्रयत्नों का ही प्रभाव था कि उनकी शानदार सभ्यता यहां पुष्पित एवं पल्लिवत हुई। ये लोग समुद्र के किनारे-किनारे चलकर ओमान, यमन होते हुए शक्तिशाली धारा को पार करके मिस्र न्यूकिया एवं अबीसिनिया आये। ये वही लोग हैं जो […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-38

विकास और विनाश के इस खेल को भारत अपने देवासुर संग्राम की कहानियों के माध्यम से स्मरण रखता है और उसे इसीलिए बार-बार दोहराता है अर्थात ध्यान करता है कि यदि कहीं थोड़ी सी भी चूक हो गयी या हमने प्रमादपूर्ण शिथिलता का प्रदर्शन किया तो महाविनाश हो जाएगा। यही कारण है कि भारत अत्यंत […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-37

मनु महाराज के पश्चात प्रियव्रत ने अपने पुत्र आग्नीन्ध्र को जम्बूद्वीप (आज का एशिया महाद्वीप), मेधातिथि को प्लक्षद्वीप (यूरोप), वयुष्मान को शाल्मलिद्वीप (अफ्रीका महाद्वीप), ज्योतिष्मान को कुशद्वीप (दक्षिण अमेरिका), भव्य को शाकद्वीप (आस्टे्रलिया) तथा सवन को पुष्करद्वीप (अण्टार्कटिका महाद्वीप) का स्वामी या अधिपति बनाया। पुराणों की इस साक्षी से पता चलता है कि भारत के […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-36

जलप्लावन की सूचना और भारतीय इतिहास भारत के इतिहास ने ज्योतिष शास्त्र और विज्ञान के क्षेत्र की बहुत सी घटनाओं को अपने में समाविष्ट किया है। इसलिए इसके गहन अध्ययन से अतीत की बहुत सी ऐसी घटनाओं की सूचना हमें सहज ही उपलब्ध हो जाती है जो कि ज्योतिष से या विज्ञान से जुड़ी होने […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-35

भारत के इतिहास में रूचि रखने वाले किसी भी विद्यार्थी को चाहिए कि वह भारत को यहीं से समझना आरंभ करे। उसके पश्चात अमैथुनी सृष्टि संबंधी भारत की वैज्ञानिक धारणा को समझकर मानव के मैथुनी सृष्टि में प्रवेश को समझे, तो हमें मानव इतिहास की श्रंखला का प्रथम सूत्र हाथ लग जाएगा जो इस चराचर […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-34

ईश्वर के विषय में यह माना जाता है कि वह सृष्टि के अणु-अणु में विद्यमान है और घट-घट वासी है। उसकी दृष्टि से कोई बच नहीं सकता। अत: वह मनुष्य के प्रत्येक विचार का और प्रत्येक कार्य का स्वयं साक्षी है। जिससे उसकी न्यायव्यवस्था से कोई बच नहीं पाएगा। घट-घट वासी होने से ईश्वर हमारे […]

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