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बिखरे मोती

हे दयानिधे तेरा धाम मेरा आकर्षण है

अब अध्याय अर्थात पिण्ड (Microscopic Point of view) की दृष्टि से सुनो। पिण्ड अर्थात शरीर की दृष्टि से प्राण ही संवर्ग है, सब इंद्रियों को अपने अंदर समा लेने वाला है। जब मनुष्य सोता है तो वाणी प्राण को लौट जाती है, प्राण को ही चक्षु प्राण को ही स्रोत, प्राण को ही मन लौट […]

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सुमन, दुर्मन, अमन – मन की तीन अवस्थाएं

1.सुमन : जैसे सूर्य की किरणें मुरझाए कमल को नयी ऊर्जा देकर खिला देती हैं। ठीक इसी प्रकार जब मनुष्य का मन भगवान से जुड़ता है तो ईश्वर के दिव्य गुणों की तरंगें मनुष्य के मुरझाए मन को नयी ऊर्जा देकर उत्साह से भर देती है, जैसे चुंबक लोहे को अपनी तरंगों से अपने गुण […]

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बिखरे मोती

मेरे मालिक की महान आगोश: राही तू आनंद लोक का

गतांक से आगे…कितनी महान है मेरे मालिक की आगोश?भूमिका-चित्त का चैन प्रभु के चरणों में है, न कि सांसारिक वस्तुओं के संग्रह में।बात सरलता से समझ में आए इसलिए एक दृष्टांत को उद्घृत करना चाहता हूं। किसी शहर में दो व्यक्ति रहते थे। एक शायर था, एक संपन्न था। शहर बहुत सुंदर था। शहर के […]

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बंदगी से खुदा नही मिलता : राही तू आनंद लोक का

गतांक से आगे…हे भारती! तू उन ऋषियों की संतान है जिन्होंने मानव मात्र के लिए आदर्श उपस्थित किये थे। इसलिए तेरा जीवन आज भी आदर्शों से ओतप्रोत होना चाहिए-चौबीस घंटे जी इस राग में।समर्पण, अभिप्सा और त्याग में।।अपना, वेदों का ये विधानरे मत भटकै प्राणी……..19साधक को चौबीस घंटे किन भावों के साथ जीना चाहिए।1. अभिप्सा […]

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‘विभूति शब्द की व्याख्या’ : राही तू आनंद लोक का

गतांक से आगे…उदाहरण के लिए श्रद्घा और प्रेम को ले लीजिए। हृदय के अंदर चित्त में अवस्थित ये दो मोती ऐसे हैं जो सारे संसार के संबंधों को आवेष्ठित किये हुए हैं। माता-पिता अपनी संपत्ति धन दौलत के भंडार को प्यार और श्रद्घा के वशीभूत हो अपनी संतान को खुशी खुशी दे देते हैं, चाहे […]

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नदी संरक्षण से जुड़ा महाकुंभ

हजारों सालों से चली आ रही अपनी परम्परा के गौरवशाली इतिहास के अनुरूप एकबार फिर महाकुंभ का आरम्भ हो चुका है । वार्षिक कुम्भ का आयोजन तो प्रतिवर्ष किया जाता है, पर प्रत्येक बारह वर्ष में, एक विशेष ग्रह स्थिति आने पर, आयोजित होने वाले इस महाकुंभ का विशेष महत्व है । वहाँ उपस्थित प्रशासन […]

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‘विभूति शब्द की व्याख्या’ : राही तू आनंद लोक का

गतांक से आगे… जयो अस्मि-विजय प्रत्येक प्राणी को प्रिय लगती है। विजय की यह विशेषता भगवान की है। इसलिए विजय को भगवान ने अपनी विभूति बताया है। अत: अपने मन के अनुसार अपनी विजय होने से जो सुख होता है, उसका उपयोग न करके उसमें भगवदबुद्घि करनी चाहिए कि विजय रूप में भगवान आए हैं। […]

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‘विभूति शब्द की व्याख्या’ : राही तू आनंद लोक का

गतांक से आगे…स्वर और व्यंजन दोनों में अकार मुख्य है। अकार के बिना व्यंजनों का उच्चारण नही होता। इसलिए भगवान ने अकार को अपनी विभूति बताया है।अहमेवाक्षय: काल-जिस काल का कभी क्षय नही होता अर्थात जो कालातीत है और अनादि अनंतरूप है। वह काल भगवान ही है। ध्यान रहे सर्ग और प्रलय की गणना तो […]

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‘विभूति शब्द की व्याख्या’ : राही तू आनंद लोक का

गतांक से आगे…आठवां श्लोक, पृष्ठ 4887. ‘पुण्यो गन्ध पृथिव्याम’- से तात्पर्य है पृथ्वी गंध तन्मात्रा से उत्पन्न होती है। भगवान कहते हैं-हे अर्जुन! पृथ्वी में, वह पवित्र गंध मैं ही हूं। यहां गंध के साथ पुण्य का विशेषण देने का तात्पर्य है-पवित्र गंध तो पृथ्वी में स्वाभाविक रूप से रहती है, पर दुर्गंध किसी विकृति […]

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‘विभूति शब्द की व्याख्या’ : राही तू आनंद लोक का

गीता के दसवें अध्याय का 16वां श्लोक-पृष्ठ 692 दिव्या आत्मविभूतय:, अर्थात भगवान कृष्ण यहां अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं, हे पार्थ! विभूतियों को दिव्या कहने का तात्पर्य है कि संसार में जो कुछ विशेषता दिखायी देती है, वह मूल में दिव्य परमात्मा की ही है, संसार की नही। अत: संसार की विशेषता देखना भोग […]

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