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बिखरे मोती

‘विभूति शब्द की व्याख्या’ : राही तू आनंद लोक का

गतांक से आगे…आठवां श्लोक, पृष्ठ 4887. ‘पुण्यो गन्ध पृथिव्याम’- से तात्पर्य है पृथ्वी गंध तन्मात्रा से उत्पन्न होती है। भगवान कहते हैं-हे अर्जुन! पृथ्वी में, वह पवित्र गंध मैं ही हूं। यहां गंध के साथ पुण्य का विशेषण देने का तात्पर्य है-पवित्र गंध तो पृथ्वी में स्वाभाविक रूप से रहती है, पर दुर्गंध किसी विकृति […]

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‘विभूति शब्द की व्याख्या’ : राही तू आनंद लोक का

गीता के दसवें अध्याय का 16वां श्लोक-पृष्ठ 692 दिव्या आत्मविभूतय:, अर्थात भगवान कृष्ण यहां अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं, हे पार्थ! विभूतियों को दिव्या कहने का तात्पर्य है कि संसार में जो कुछ विशेषता दिखायी देती है, वह मूल में दिव्य परमात्मा की ही है, संसार की नही। अत: संसार की विशेषता देखना भोग […]

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‘यमस्य लोका दध्या बभूविथ’ : राही तू आनंद लोक का

गतांक से आगे….आहुतियां कौन सी हैं? वे हैं-उज्जवन्ति प्रदीप्त हो उठने वाली, अतिनेदन्ते-चट चटाने वाली, अधिशेरते-हवन कुण्ड की तलहटी में जा सोने वाली। घी अग्नि में पड़ते ही उसे प्रदीप्त कर देता है, सामग्री समिधाओं पर पड़ी चट चटाती है। कुछ आहुति कुण्ड के तले में जाकर आराम से पड़ी रहती है। ठीक इसी प्रकार […]

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‘यमस्य लोका दध्या बभूविथ’ : राही तू आनंद लोक का

गतांक से आगे….नाम अनंत है-तरह तरह के नाम मनुष्य अपने पीछे छोड़ सकता है, दिव्य गुण भी अनंत हैं, इन दिव्य गुणों के कारण मनुष्य जैसा चाहे वैसा ही नाम पीछे छोड़ सकता है। जो इस रहस्य को जान जाता है वह मृत्यु को जीत लेता है।(2.) आर्तभाग ने फिर अगला प्रश्न किया-हे मुनिश्रेष्ठ! अच्छा […]

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‘यमस्य लोका दध्या बभूविथ’ : राही तू आनंद लोक का

गतांक से आगे…..तुझसा, प्राणी नही धनवान,रे मत भटकै प्राणी……..(16)पिंजरा मिल्यो है नौ द्वार को।सुन पंछी की पुकार को।।इसकी मूक तडफ़ पहचान,रे मत भटकै प्राणी……..(17)देखता रहा है, तन के रूप को।जानाा कभी ना, निज के स्वरूप को।। तू है, दिव्य गुणों की खानरे मत भटकै प्राणी……..(18)चौबीसों घंटे जी इस राग में।समर्पण, अभिप्सा और त्याग में।।अपना, वेदों […]

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‘यमस्य लोका दध्या बभूविथ’ : राही तू आनंद लोक का

गतांक से आगे…..तुझसा, प्राणी नही धनवान,रे मत भटकै प्राणी……..(16)पिंजरा मिल्यो है नौ द्वार को।सुन पंछी की पुकार को।।इसकी मूक तडफ़ पहचान,रे मत भटकै प्राणी……..(17)देखता रहा है, तन के रूप को।जानाा कभी ना, निज के स्वरूप को।। तू है, दिव्य गुणों की खानरे मत भटकै प्राणी……..(18)चौबीसों घंटे जी इस राग में।समर्पण, अभिप्सा और त्याग में।।अपना, वेदों […]

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‘यमस्य लोका दध्या बभूविथ’

अथर्ववेद की उपरोक्त पंक्ति का भावार्थ :-जिसने मेरे अंतर को झकझोर दिया। (19/56/1)यमस्य अर्थात नियंत्रणकर्ता, न्यायकारी भगवान। लोका-अर्थात प्रकाश से, लोक से। बभूविथ-तू समर्थ हुआ।व्याख्या :-मनुष्य को आगाह करते हुए अथर्ववेद का ऋषि कहता है-हे मनुष्य! तू कहां से आया है? कहां तुझे जाना है? तू राही किस मंजिल का है? मनुष्य की इस सोयी […]

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‘यमस्य लोका दध्या बभूविथ’

अथर्ववेद की उपरोक्त पंक्ति का भावार्थ :-जिसने मेरे अंतर को झकझोर दिया। (19/56/1)यमस्य अर्थात नियंत्रणकर्ता, न्यायकारी भगवान। लोका-अर्थात प्रकाश से, लोक से। बभूविथ-तू समर्थ हुआ।व्याख्या :-मनुष्य को आगाह करते हुए अथर्ववेद का ऋषि कहता है-हे मनुष्य! तू कहां से आया है? कहां तुझे जाना है? तू राही किस मंजिल का है? मनुष्य की इस सोयी […]

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मानव देह : जिसे सांसों का चंदन-वन कहा जा सकता है

एक राजा था, शायद भारत के दक्षिण में। एक दिन वह शिकार के लिए जंगल में गया। वहां मार्ग भूल गया। भूख और प्यास से व्याकुल हो उठा। उसने एक लकड़हारे को जंगल में लकडिय़ां काटते देखा। बहुत से पेड़ कट चुके थे, थोड़े से बचे थे। उन्हीं में से एक पेड़ की शाखा काट […]

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मानव देह : जिसे सांसों का चंदन-वन कहा जा सकता है

एक राजा था, शायद भारत के दक्षिण में। एक दिन वह शिकार के लिए जंगल में गया। वहां मार्ग भूल गया। भूख और प्यास से व्याकुल हो उठा। उसने एक लकड़हारे को जंगल में लकडिय़ां काटते देखा। बहुत से पेड़ कट चुके थे, थोड़े से बचे थे। उन्हीं में से एक पेड़ की शाखा काट […]

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