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संपादकीय

हिंग्स बोसोन: भारत स्वयं को समझे

ब्रहमांड के अनसुलझे रहस्यों की खोज में लगे वैज्ञानिकों ने जिस हिग्स बोसोन की खोज की है, उससे निश्चित ही मानवता लाभान्वित होगी। इसे हमारे वैज्ञानिकों ने गॉड पार्टिकल या ईश्वरीय कण का नाम दिया है।हमारे यहां प्राचीन काल में वैज्ञानिकों को ऋषि (चिंतन का अधिष्ठाता) कहा जाता था। चिंतन की गहराई कोई न कोई […]

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संपादकीय

…… यही था भारत का वास्तविक साम्यवाद

राकेश कुमार आर्य पिछले अंक का शेष …अब सारे कार्यों के लिए लोग राज्य की ओर टकटकी लगाये रहकर देखते रहते हैं। अधिकार परस्त लोग निकम्मे होते हैं और कम्युनिस्टों ने ऐसे ही समाज का निर्माण किया है।जबकि भारत की आश्रम व्यवस्था का तो शाब्दिक अर्थ भी आ+श्रम=श्रम से परिपूर्ण है। ब्रहम चर्यश्रम में विद्याध्ययन […]

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भारत की “उदारता” और पाक के क्रूर “मज़ाक” का सिलसिला

इतिहास से हम क्या सीख सकते हैं? इस बात का उत्तर यही है कि इतिहास की हमारे लिए सबसे बड़ी सीख यही है कि इससे हम कुछ सीखते नही है। इसलिए इतिहास के विषय में यह झूठ एक सच के रूप में स्थापित हो चुका है कि इतिहास स्वयं को दोहराता है। जबकि सच ये […]

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भारतीय साम्यवाद और कम्युनिस्ट विचार धारा में मौलिक अंतर है

पिछले अंक का शेष … सारे संसार को एक विश्व संस्था के रूप में शासित करके चक्रवर्ती राज्य स्थापित करने की भावना में इसके लिए कोई स्थान नही है। यहां व्यष्टि से समष्टिï की ओर दृष्टिïपात करना है। समष्टिï में प्राणिमात्र का भला करना है। अपने विचार में बाधक लोगों को सही रास्ते पर लाना […]

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मोहन की बंसरी पर मोदी की तान

नरेन्द्र मोदी के समर्थन में जिस प्रकार भाजपा और संघ उतरकर मैदान में आये हैं उससे मोदी की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी मजबूत हुई है। आर. एस. एस. के सरसंघचालक मोहन भागवत ने लातूर में स्पष्ट कह दिया है कि एक हिन्दुत्ववादी व्यक्ति प्रधानमंत्री क्यों नही हो सकता? बात सही भी है क्योंकि हिन्दुत्व एक […]

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कांग्रेस और जद (यू) की बिछती शतरंजी चालों के चलते लंगर कसे मोदी को देखकर भागते नितीश

नई दिल्ली। नितीश राजग क्यों छोडऩा चाहते हैं? यह बात आज की तारीख में बड़ी अहम हो गयी है कि इस प्रश्न का उत्तर खोजा जाये। ऊपरी तौर पर वह नरेन्द्र मोदी से खिन्न और उनके जातीय विरोधी नजर आते हैं। लेकिन भीतर ही भीतर उनके दिल में भी एक नई महत्वाकांक्षा जन्म ले चुकी […]

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सर्वधर्म-समभाव का भ्रम

मजहबों को धर्म मानने वाले भारत पर्याप्त में हैं। उनमें इतना साहस नहीं है कि वे मजहब को सम्प्रदाय मान सकें। इसलिए (सर्वधर्म-समभाव) की एक बे सिर पैर की परिकल्पना, भारत में आविष्कृत कर ली गयी है। इस अवधारणा के पीछे बड़ा गम्भीर षडय़न्त्र कार्य कर रहा है। अत: साम्प्रदायिकता की जिस विषबेल को समाप्त […]

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संपादकीय

कम्युनिस्ट अपराध और उपकार के अंतर को समझें

साम्यवाद की विचारधारा क्या भारतीय संस्कृति के अनुकूल है? या साम्यवाद का भारतीय संस्कृति, धर्म और इतिहास से भी कोई संबंध है? यदि इन जैसे प्रश्नों के उत्तर खोजे जाऐं तो ज्ञात होता है कि वास्तविक साम्यवाद भारतीय संस्कृति में ही है। संसार का कम्युनिस्ट समाज भारतीय साम्यवाद को समझ नहीं पाया है और ना […]

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संपादकीय

कलाम के इस कलाम को सलाम

–राकेश कुमार आर्यनई दिल्ली। पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम एक अप्रतिम प्रतिभा के धनी और नितांत मानवतावादी विचारों के देशभक्त व्यक्ति हैं। सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री न बनने की सलाह उन्होंने बड़े ही विनम्र शब्दों में दी थी, ऐसी शालीनता उनमें है कि सोनिया को अपने द्वारा दी गयी सलाह की डींग उन्होंने न तो […]

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संपादकीय

जोशी बड़े हैं या भाजपा की भूलें

भाजपा का अन्तर्कलह अपने उफान पर है। पार्टी के दिग्गजों का अहंकार पार्टी में धीरे-धीरे एक फोड़ा बनता जा रहा है। नरेन्दमोदी और संजय जोशी की टकरार में यह फोड़ा पकता हुआ नजर आया। आडवाणी जैसे राजनीति के चतुर खिलाड़ी ने समझ लिया कि फोड़ा पक रहा है और इसकी मवाद में चीरा लगते ही […]

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