डॉ. दीपक आचार्य 9413306077 अब तक यही कहा जाता रहा है कि एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है पर अब मछली एकमात्र नहीं होती, मछलियों ने संगठन की ताकत को समझ लिया है तभी अब एक ही तालाब में खूब सारी ऐसी समान दुराचार-दुर्व्यहार वाली मछलियाँ गिरोह के रूप में रहने लगी […]
लेखक: डॉ. दीपक आचार्य
रवि शंकर यह देखना काफी दुखद है कि स्वयं को प्रगतिशील मानने वाला देश में हरेक व्यक्ति मनु यानी कि मनस्मृति के विरोध में खड़ा रहता है। डॉ. अंबेडकर जैसे बुद्धिमान और पढ़े-लिखे माने जाने वाले नेता ने भी मनु स्मृति दहन का कार्यक्रम किया था जो कि उनके अनुयायी आज भी कहीं-कहीं करते […]
रेनू सैनी दिमाग हमारे पूरे शरीर को नियंत्रित करता है। यह स्नायु तंत्र के जरिए काम करता है। स्नायु तंत्र नर्व सेल्स से बना होता है। ये नर्व सेल्स करोड़ों सूचनाओं को एक साथ इधर से उधर पहुंचाती हैं। इन समाचारों को इधर-उधर पहुंचाने में जब एक ही प्रकार की सूचना बार-बार दोहराई जाती है, […]
जीवन निर्वाह की दो-तीन धाराएँ हैं जिन पर चलते हुए हम पूरी जिंदगी गुजार दिया करते हैं। एक वे हैं जो अपने हुनर और दक्षता के अनुरूप कर्मयोग में रमे रहते हैं और हर घटना-दुर्घटना और हलचल को भगवान का प्रसाद मानकर चलते हैं। दूसरी किस्मों के लोग जो कुछ कर रहे हैं वह सभी […]
कुछ चीजें भगवान ने हमें नहीं दी हैं, उनका आविष्कार हम महान मनुष्यों ने कर लिया है। हमारी कई सारी आदतें ऎसी हैं जिनका हमारे पूरे जीवन या रोजमर्रा के काम-काज से किसी प्रकार का प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता, मगर हमने उन्हें इतना अपना रखा है कि कुछ कहा नहीं जा सकता। इन्हीं ढेरों आदतों […]
ग्रामीण संस्कृति में ग्राम देवताओं और लोक देवताओं तथा लोक देवियों के दर्शन-पूजन-अर्चन की विशेष परंपरा सदियों से विद्यमान रही है। इनके प्रति ग्रामीणों की अगाध आस्था होती है और यही कारण है कि साल भर में कई बार विशेष पर्व-उत्सवों और मेलों-त्योहारों पर इन आस्था स्थलों पर विशेष आयोजन होते हैं जिनमें गांव भर […]
यह सृष्टि पंच महाभूतों की ही बनी हुई है और उन्हीं के आधार पर जड़-चेतन सब कुछ टिका हुआ है। हर तत्व का अपना वजूद है, तत्वों का संयोग विभिन्न प्रकार की सृष्टि और निरन्तर सृजन-परिवर्तन का आदि जनक है। इन पंच तत्वों आकाश, अग्नि(तेज), वायु, जल और पृथ्वी का ही सारा व्यापार सर्वत्र दृष्टिगोचर […]
यह संसार एक मेला है जिसमें प्रमुख रूप से दो ही तरह के लोग हैं। एक वे लोग हैं जो भीड़ में शामिल हो जाते हैं और भीड़ का चरित्र अपनाकर भीड़ की तरह ही रहते हैं और सारे काम वे ही करते रहते हैं जो भीड़ करती रही है। भीड़ में शामिल लोग भीड़ […]
मनुष्यों की पूरी की पूरी प्रजाति आजकल दो भागों में बँटी हुई दिखती है। एक वे हैं जो काम करने वाले हैं, इन्हें किसी से कोई शिकायत नहीं रहती, जो काम मिला, जो दिया गया उसे चुपचाप कर लिया और मस्त। ऎसे लोगों का प्रतिशत हालांकि घटता जा रहा है तथापि इन्हीं लोगों के पुण्य […]
आज का चिंतन (31 जुलाई, 2014)। वर्तमान युग का सबसे बड़ा पुण्य यही है कि सकारात्मक चिन्तन करें और सज्जनों को संरक्षण दें। समाज-जीवन, परिवेश और अपने क्षेत्र में जहाँ कहीं अच्छे लोग विद्यमान हैं उनको संरक्षित करने का काम समाज का है। समाज जब-जब भी इस दिशा में उदासीन हुआ है, समस्याओं से घिरता […]