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भारतीय संस्कृति

वैदिक सृष्टि संवत की वैज्ञानिकता

!! ॐ !!

चैत्र मास ही हमारा प्रथम मास होता है।
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष को नववर्ष मानते हैं। फाल्गुन मास हमारा अंतिम मास है।

हमारे समस्त वैदिक मास ( महीने ) का नाम 28 में से 12 नक्षत्रों के नामों पर रखे गये हैं। जिस मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा जिस नक्षत्र पर होता है उसी नक्षत्र के नाम पर उस मास का नाम हुआ।

सुहवमग्ने कृत्तिका रोहिणी चास्तु भद्रं मृगशिरः शमार्द्रा। पुनर्वसू सूनृता चारु पुष्यो भानुराश्लेषा अयनं मघा मे ॥
अथर्ववेद – काण्ड » 19; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
पुण्यं पूर्वा फल्गुन्यौ चात्र हस्तश्चित्रा शिवा स्वाति सुखो मे अस्तु। राधे विशाखे सुहवानुराधा ज्येष्ठा सुनक्षत्रमरिष्ट मूलम् ॥ अथर्ववेद – काण्ड » 19; सूक्त » 7; मन्त्र » 3

अन्नं॒ पूर्वा॑ रासतां मे अषा॒ढा ऊर्जं॑ दे॒व्युत्त॑रा॒ आ व॑हन्तु। अ॑भि॒जिन्मे॑ रासतां॒ पुण्य॑मे॒व श्रव॑णः॒ श्रवि॑ष्ठाः कुर्वतां सुपु॒ष्टिम् ॥ अथर्ववेद – काण्ड » 19; सूक्त » 7; मन्त्र » 4

आ मे महच्छतभिषग्वरीय आ मे द्वया प्रोष्ठपदा सुशर्म। आ रेवती चाश्वयुजौ भगं म आ मे रयिं भरण्य आ वहन्तु
अथर्ववेद – काण्ड » 19; सूक्त » 7; मन्त्र » 5

अश्विन, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, अभिजीत, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती, ।

चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढ़ा
चैत्र:मार्च-अप्रैल
वैशाख:अप्रैल -मई
ज्येष्ठ:मई-जून
आषाढ़:जून-जुलाई
श्रावण:जुलाई-अगस्त
भाद्रपद:अगस्त-सितम्बर
आश्विन:सितम्बर-अक्टूबर
कार्तिक:अक्टूबर-नवम्बर
मार्गशीर्ष:नवम्बर-दिसम्बर
पौष:दिसम्बर-जनवरी
माघ:जनवरी-फरवरी
फाल्गुन:फरवरी-मार्च

मासों के वैदिक नाम

मधुश्च माधवश्च वासन्तिकावृतू शुक्रश्च शुचिश्च ग्रैष्मावृतू नभश्च नभस्यश्च वार्षिकावृतू इषश्चोर्जश्व शारदावृतू सहश्च सहस्यश्च हैमंतिकावृतू तपश्च तपस्यश्च शैशिरावृतू।” –(तैत्तिरीयसंहिता- 4/4/11

मधु॑श्च॒ माध॑वश्च॒ वास॑न्तिकावृ॒तू ( यजुर्वेद – अध्याय » 13; मन्त्र » 25)
शुक्रश्च शुचिश्च ग्रैष्मावृतू(यजुर्वेद – अध्याय » 14; मन्त्र » 6)

नभ॑श्च नभ॒स्यश्च॒ वार्षि॑कावृ॒तू(यजुर्वेद – अध्याय » 14; मन्त्र » 15)

इ॒षश्चो॒र्जश्च॑ शार॒दावृ॒तू(यजुर्वेद – अध्याय » 14; मन्त्र » 16)

सहश्च सहस्यश्च हैमंतिकावृतू ((यजुर्वेद – अध्याय » 14; मन्त्र » 27)

तपश्च तपस्यश्च शैशिरावृतू।( ((यजुर्वेद – अध्याय » 15; मन्त्र » 57)
मधु, माधव, शुक्र, शुचि, नभस् , नभस्य, ईष, ऊर्ज, सहस् , सहस्य, तपस् , तपस्य।

मुखं वा एतद् ऋतूनां यद् वसन्तः। ( तैत्तरीय ब्राह्मण 1/1/2/6, 7)

शरद्वसन्तयोर्मध्ये तद्भानु: प्रति पद्यते। मेषादौ च तुलादौ मैत्रेय विषुवत्स्थित:।।

वसन्त विषुव यानी जिसदिन दोनों गोलार्द्धों में दिन और रात्रि सामान होवें और भूमध्य रेखा क्षेत्र पर छाया लोप हो जावे उस दिन सौर मधुमास की पूर्ति और सौर माधवमास का आरम्भ हॉवे। यह दिन मेष सङ्क्रान्ति का भी दिन होता है।

यह जान लेना बहुत आवश्यक है क्योंकि इस दिन से लगभग ३० दिन पूर्व मधुमास शुरू हो चुका होता है। और इसका अर्थ ये होता है कि इस दिन अर्थात् जिस दिन सौर मधुमास प्रारम्भ होगा उस दिन के बाद की शुक्ल प्रतिपदा ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा याने गुड़ी पड़वा होती है। अस्तु वह कभी भी २० -२१ मार्च से आगे जा ही नहीं सकती। इस बार सूर्य मीन राशि में प्रविष्ट 19 फरवरी 2024 को 9:43 बजे हुआअर्थात् वसन्त ऋतु प्रारम्भ हो गया। उदयात् उदयं दिवसः सिद्धान्त के अनुसार 20 फरवरी 2024 को 7 बजे सूर्य की तारीख 1 गते प्रारम्भ गया क्योंकि 20 फरवरी को 7 बजे सूर्योदय हुआ था। ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार सौर मधुमास अर्थात् सौर चैत्र मास के अन्तर्गत जो शुक्ल पक्ष का प्रतिपदा होगा वही चान्द्र चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा होगी और इस बार 11 मार्च 2024 को चान्द्र चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा हो चुकी है अर्थात् नया वर्ष 2081 का प्रारम्भ 11 मार्च को ही हो चुका है। आज अर्थात् 9 अप्रैल को नया वर्ष प्रारम्भ नही हुआ है। हे आर्यों!, हे हिन्दुओं ! कब तक अज्ञानताओं की चिर निद्राओं में सोए रहोगे?, कब तक आलस्य रूपी शत्रुओं को अपने जीवन में अपनाओगे? जागो और निष्पक्ष होकर, सृष्टि के अनुकूल विचार कर सत्य को ग्रहण और असत्य को छोड़ने में सदा तत्पर होकर अपना तथा हिन्दू जाति एवं मानव जाति का कल्याण कर पुण्य का भागी बनो।

✍️ Bhupendra Kumar Ary

वयं राष्ट्रे जागृयाम

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