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इतिहास के पन्नों से

वीर शिरोमणि मराठा शूर शिवाजी की 344 वें महापरिनिर्वाण दिवस पर विशेष आलेख

आज के महाराष्ट्र में नागपुर व उसके आसपास के क्षेत्र के राजा गुर्जर जाति के थे जो शिवाजी के वंशज थे। शिवाजी का गोत्र बैंसला था। जिसको आज बहुत से साथियों ने बिगाड़ करके बंसल कहने का प्रयास किया हैं।
आप मैं से बहुत से लोग इस ऐतिहासिक तथ्य को पढ़कर गर्व की अनुभूति होगी कि आप शिवाजी महाराज के वंशज हैं।
आईए जानते हैं महापुरुष शिवाजी महाराज के विषय में।

वस्तुतः सन 1793 में रघुजी द्वितीय नागपुर के राजा थे ।जो शिवाजी के वंशज थे। उनकी एक बनूबाई नामक बेटी थी। जिसकी शादी वेंकटराव उर्फ नानासाहेब गुर्जर पुत्र श्री राम राव के साथ हुई थी। जो प्रतापराव गुर्जर के वंशज थे। लेकिन शादी के समय दूल्हा-दुल्हन दोनों ही अल्प वयस्क थे।
भिवापुर एक ताल्लुक होता था । उसमें 6 गांव लगते थे उनकी जो राजस्व से आमदनी होती थी ,वह 17415 रुपए होती थी ।यह शादी के समय बनुबाई को राजा रघुजी द्वितीय ने दान दी थी । रघुजी द्वितीय की मृत्यु 1816 में हो गई। प्रतापराव गुर्जर का वंशज हुआ तेज सिंह राव । जिसकी भूमि में से १७६.९१ एकड़ भूमि अतिरिक्त भूमि घोषित कर राज्य सरकार में निहित कर दी गई थी । जिसके विरुद्ध तेजसिंह राव गुर्जर ने मुकदमा लड़ा।
हाई कोर्ट महाराष्ट्र ने इसे पूर्ण रूप से एक निजी दान माना ,लेकिन यह राजा के द्वारा दी हुई कोई ग्रांट लेजिसलेटिव (अर्थात विधिक अथवा वैधानिक रुप से उचित विधिक दान) रूप में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानून के अनुसार वैध नहीं मानी थी ।इसलिए माननीय उच्च न्यायालय मुंबई द्वारा तेजसिंह राव की याचिका निरस्त कर दी गई ।
मामला माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष गया ।जिसमें 19 अगस्त 1992 को सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आया। वह भी तेजसिंह राव के विरुद्ध आया । जो माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय किया गया । तेज सिंह राव द्वारा जो यह कहा गया था कि 199 साल पहले जो सन 1793 में दान मिला था वह भूमि अतिरिक्त भूमि घोषित नहीं की जा सकती है । परंतु उनकी ओर से प्रस्तुत यह तर्क सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी स्वीकार नहीं किया गया।तेजसिंह राव गुर्जर की ओर से सर्वोच्च न्यायालय के सामने यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया था कि उनके पास यह भूमि रघुजी सेकंड द्वारा दान दिए जाने के कारण से आई है ।रजिस्टर माफी सन 1866 से 1914 तक रघोजी सेकंड द्वारा दी गई हुई भूमि पाई जाती है। जो रामाराव गुर्जर के बेटे व्यंकटराव उर्फ नानासाहेब गुर्जर को शादी के समय दी गई थी। बनोबाई और वेंकट राव के योग से एक लड़का पैदा हुआ। लेकिन उस लड़के को पुरसो जी भोंसले ने राजसिंहासन पर बैठाने के लिए दत्तक पुत्र के रूप में ले लिया ।फिर बनोबाई ने चितकोजी राव गुर्जर को गोद लिया। यह भूमि चितको जी राव गुर्जर को भिवापुर ताल्लुक की उस समय से ही गोद लेने के कारण मिल गई थी। तेजसिंह राव गुर्जर ने तत्कालीन गवर्नर जनरल इंडिया ऑफिस लंदन के पत्र दिनांक 16 दिसंबर 1867 का भी संदर्भ न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया। जिसमें कि यह भूमि गुर्जर भोंसले फैमिली को (जो नागपुर से संबंध रखती है ,)मिली थी ।
लेकिन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस तर्क को स्वीकार नहीं किया गया।
महाराष्ट्र एग्रीकल्चरल लैंड सीलिंग ऑन होल्डिंग्स एक्ट 1961 के तहत उक्त भूमि को अतिरिक्त भूमि घोषित किया गया था ।
यह सुप्रीम कोर्ट का निर्णय दिनांक 20 अगस्त1992 को टाइम्स ऑफ इंडिया में श्री राजेश भटनागर द्वारा प्रकाशित कराया गया था। अतः
सिद्ध होता है कि शिवाजीराव भोंसले गुर्जर थे। इसलिए उन्हें राज सिंहासन के समय अर्थात तिलक के समय कुछ लोगों द्वारा संकोच का कारण बनाया गया था। यद्यपि गुर्जरों का जो प्राचीन इतिहास है वह बहुत ही स्वर्णिम है।यही केवल छत्रिय लोग हुआ करते थे अर्थात् क्षत्रियों में गुर्जर सबसे विशिष्ट क्षत्रिय हैं । शिवाजी भोंसले महाराज को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा और उनके वंशजों को साफ-साफ ‘गुर्जर ‘शब्द दिया है । वह महाराष्ट्र में बैंसला के स्थान पर भोंसले बोले जाते हैं। लेकिन राजस्थान के लोग आज भी अपने आप को बैंसला ही बोलते हैं। कहीं कहीं पर बींसला भी बोला जाता है। यह केवल शब्दों के उच्चारण में अपभ्रंश हो जाने के कारण, स्थान परिवर्तन हो जाने कारण बोली, भाषा तथा उच्चारण का अंतर होने पर ऐसा होता है।
प्रस्तुतकर्ता
देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट चेयरमैन उगता भारत समाचार पत्र।

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