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संपादकीय

मोदी जी का फिर लौट कर आना क्यों आवश्यक है?

आज यह प्रश्न बहुत ही गंभीरता के साथ उठना चाहिए कि मोदी जी का निरंतर तीसरी बार प्रधानमंत्री बनना और सत्ता में उनकी पुनर्वापसी क्यों आवश्यक है? देश हित में इस प्रश्न पर गंभीरता से चिंतन होना चाहिए। जितने भर भी राजनीतिक नौटंकीबाज देश में इस समय काम कर रहे हैं , उन सब की ओर ध्यान न देकर जनता जनार्दन को और विशेष रूप से जनता के बीच रहने वाले वास्तविक बुद्धिजीवियों को, राष्ट्रभक्तों को, राष्ट्रहितैषियों को राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव रखने वाले लोगों को इस बात पर न केवल चिंतन करना चाहिए बल्कि जो लोग अधिक चिंतनशील नहीं होते ,उन्हें इस बात का सच भी समझाने का प्रयास करना चाहिए कि मोदी जी का सत्ता में तीसरी बार लौटना राष्ट्र के लिए क्यों आवश्यक है?
आइए, विचार करते हैं। सबसे पहले हमको इस बात पर विचार करना चाहिए कि जिस समय मोदी जी देश के प्रधानमंत्री नहीं थे, उस समय देश की राजनीतिक परिस्थितियों कैसी थीं ? देश की बाहरी और आंतरिक सुरक्षा कितने संकटों से या खतरों से जूझ रही थी ? देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति क्या थी ? आदि आदि। सबसे पहले देश की राजनीतिक परिस्थितियों पर विचार करते हैं। जिस समय मोदी जी सत्ता में नहीं आए थे, उससे पहले देश राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था । अटल जी अपने भाषणों में अक्सर कहा करते थे कि देश इस समय संक्रमण काल से गुजर रहा है । उनकी बात का अर्थ था कि देश एक निश्चित व्यवस्था को प्राप्त करने के लिए इस समय संघर्ष कर रहा है। उसने छलांग तो लगा दी है पर अभी छलांग को अपने गंतव्य पर पहुंचना शेष है। संक्रमण काल में सर्वत्र अस्थिरता देखी जाती है। अराजकता, अशांति, असंतोष सब कुछ सर्वत्र दिखाई दिया करता है। देश में नकारात्मक शक्तियों का प्राबल्य हो जाता है।
राजनीतिक हितों को साधने वाले लोग अपना-अपना उल्लू सीधा करते हुए देखे जाते हैं। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके ऐसा करने से देश की स्थिति क्या होगी ? उन्हें केवल और केवल अपने राजनीतिक स्वार्थ की चिन्ता होती है। ऐसे लोग गठबंधन करते हैं । यह अलग बात है कि उनका गठबंधन केवल हुकूमत पाने के लिए होता है और वास्तव में यह गठबंधन न होकर ठगबंधन होता है। ऐसे ठगबंधनों का उद्देश्य राजनीतिक शक्ति प्राप्त करके इतिहास की धारा को विकृत करना होता है। इसमें प्रधानमंत्री पद के अनेक दावेदार होते हैं। जिनमें से किसी एक का ही दांव प्रधानमंत्री बनने का लगता है। जो व्यक्ति प्रधानमंत्री बनने से वंचित रह जाता है वह प्रधानमंत्री पद के अन्य दावेदार लोगों के साथ मिलकर उस प्रधानमंत्री को हटाने की जुगलबंदियों को आरंभ कर देता है इसका प्रभाव और परिणाम यह होता है कि देश की राजनीति सत्ता के सांप सीढ़ी के खेल में व्यस्त हो जाती है । जिससे नौकरशाहों को भ्रष्टाचार करने का अवसर उपलब्ध होता है। क्योंकि उनके ऊपर बैठे जनप्रतिनिधि कमजोर सिद्ध हो चुके होते हैं। भ्रष्टाचार से देश का आर्थिक विकास प्रभावित होता है। देश के भीतर बैठे राजनीतिक लोग और नौकरशाहों के इस प्रकार के आचरण को देखकर जनता में भी वर्चस्व प्राप्त करने वाले लोग दूसरों के अधिकारों का अतिक्रमण करते हैं। इस प्रकार सारा देश अस्त व्यस्त और अराजकता का शिकार होकर रह जाता है । देश के भीतर विघटनकारी शक्तियां बलवती होने लगती हैं। देश को तोड़ने के लिए विभिन्न संगठन सक्रिय हो उठते हैं।
सत्ता में भागीदारी करने वाले लोग अपने-अपने भाग की लूट के लिए देश के राजनीतिक नेतृत्व पर दबाव बनाते हैं और वे देश के खजाने में से अधिक से अधिक हिस्सा पाने के लिए कोई ना कोई ऐसा हथकंडा अपनाते रहते हैं जिससे बहती गंगा में अधिक से अधिक हाथ धोने का उन्हें अवसर उपलब्ध हो जाए।
यही वह स्थिति थी जो प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता में पहुंचने से पहले सर्वत्र देखी जा रही थी। आप यदि थोड़ा सा अपनी स्मृति पर दबाव बनाएंगे तो आपको अनेक चेहरे ऐसे दिखाई देंगे जो उस समय अपने आप को प्रधानमंत्री पद का दावेदार कहते थे। उनमें मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, मायावती, ममता बनर्जी, शरद पवार, शरद यादव, नीतीश कुमार जैसे लोगों की लंबी सूची थी।
उस समय राजनीति एक ऐसी कीचड़ में धंसी खड़ी थी, जहां से उसे कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था। छोटे-छोटे दलों के और छोटे-छोटे दिलों के नेता बड़ी-बड़ी बातें तो करते थे, पर उनके पास ना तो कोई चिंतन था और ना ही देश को चलाने की कोई क्षमता उनके पास थी। राज्य स्तरीय अथवा क्षेत्रीय दलों के नेता भी अपने आप को प्रधानमंत्री पद का दावेदार मानते थे। उनकी सोच केवल एक होती थी कि किसी भी प्रकार से यदि उन्हें 20 से 50 तक भी सांसद अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर जीतकर मिल जाते हैं तो वह देश की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं और उन सांसदों के बल पर बड़ा राजनीतिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। अपने सांसदों की संख्या के बल पर वे देश के केंद्रीय मंत्रिमंडल में अपना स्थान प्राप्त करने में सफल हो जाते थे।
उस समय देश के लोगों को एक ऐसे राजनीतिक नेतृत्व की आवश्यकता बड़ी तीव्रता से अनुभव हो रही थी जो इस प्रकार की सारी राजनीतिक अव्यवस्था और अराजकता के परिवेश को समाप्त करने में सक्षम हो सके। जिसे अटल जी संक्रमण का काल कहते थे, वह वास्तव में राष्ट्र के लिए अमृत मंथन का काल था, चिंतन का काल था। तितिक्षा का काल था। देश का अंतर्मन संक्रमण के उस दुखदायक दौर से बाहर निकलना चाहता था। गठबंधनों के ठगबंधनों से देश दु:खी हो चुका था। वह समस्या का एक स्थाई समाधान चाहता था। देश का जनमानस इस बात के लिए आंदोलित हो चुका था कि अब राष्ट्र को विकास की सही दिशा में लेकर चलने वाले राजनीतिक नेतृत्व को बागडोर दी जाए। जन्माष्टमी की इसी अपेक्षा को पूरा करने के लिए सौभाग्य से देश के आम चावन का समय आया तो 2014 में देश के जागरूक मतदाताओं ने कमान मोदी जी के हाथों में दी। निश्चित रूप से उनके हाथों में दी गई कमान के पीछे का मंतव्य यही था कि देश का जनमानस अब स्थिरता चाहता है, शांति चाहता है, प्रगति चाहता है, विकास चाहता है और इन सबसे बढ़कर अपने राष्ट्र की समृद्धि और उन्नति में स्वयं की सहभागिता सुनिश्चित करते हुए वह देश को विश्व गुरु के रूप में स्थापित होते देखना चाहता है। इस प्रकार मोदी जी इन सब अपेक्षाओं का केंद्रीभूत पुंज हैं। पिछले 10 वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने देश के जनमानस की उन अपेक्षाओं को पूर्ण करने का सराहनीय प्रयास किया, जिनको लेकर लोगों ने उन्हें देश की कमान सौंपी थी। माना जा सकता है कि मोदी जी ने अपने पिछले 10 वर्ष के कार्यकाल में द्रुतगति से कई समस्याओं का सफलतापूर्वक समाधान दिया है। प्रत्येकक्षेत्र में देश को स्थिरता प्रदान की है , परंतु इस सबके उपरांत भी अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है।
यदि देश के जनमानस की नब्ज टटोली जाए तो पता चलता है कि लोग जिस उत्साह के साथ मोदी जी के साथ लग रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि वे एक बार फिर देश की कमान उन्हें सौंपने की तैयारी कर चुके हैं। देश के विभिन्न टीवी चैनल और सर्वे यह स्पष्ट कर रहे हैं कि मोदी जी के साथ देश का आम मतदाता बड़ी मजबूती के साथ खड़ा हुआ है। मोदी जी के साथ खड़े हुए इन लोगों को देखकर हम यही अनुमान लगा सकते हैं कि देश इस समय स्थिरता और राजनीतिक गठबंधनों के संक्रमण कालीन दौर से बहुत दूर निकल चुका है। वह स्थाई स्थिरता की ओर मजबूती के साथ आगे बढ़ चुका है और देश का मतदाता अपनी राजनीतिक परिपक्वता दिखाते हुए मोदी जी को ही एक बार फिर पीएम के पद पर देखना चाहता है।

डॉ राकेश कुमार आर्य
(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)

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