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इतिहास के पन्नों से

…..तो क्या इतिहास मिट जाने दें ? अध्याय 3 ख, क्या कहते हैं संविधान में दिए गए चित्र?

पुष्पक विमान में सवार राम, लक्ष्मण और सीता जी

 श्रीराम हमारी राष्ट्र साधना के प्रतीक पुरुष हैं । वह मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं। उन्होंने अपने जीवन काल में नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने का सर्वोत्तम कार्य किया था। अनेक राक्षसों का वध कर सारे संसार को 'आर्यों का परिवार' बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। यही कारण है कि हमारे संविधान में मौलिक अधिकारों के प्रसंग में पुष्पक विमान से श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी का अयोध्या गमन प्रदर्शित किया गया है । इन तीनों की उपस्थिति को नागरिकों के मौलिक अधिकारों के साथ दिखाना यह स्पष्ट करता है कि हम अर्थात भारत के लोग भारत में एक ऐसे राज्य की या शासन प्रणाली की स्थापना करेंगे जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने वाली होगी । पुष्पक विमान की उपस्थिति बताती है कि हम ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में उन सारी संभावनाओं के तालों को खोल देंगे जो हमारे पुराने वैभव को लौटाने में सहायक हों।
इसके माध्यम से रामराज्य की पुनः प्रतिष्ठा की कामना की गई है। यह कितने दु:ख की बात है कि जो कांग्रेस आजकल बात-बात पर संविधान के प्रति अपने समर्पण को व्यक्त करते नहीं थकती, उसने ही संविधान के भीतर दिए गए श्री राम जी के चित्र के रहते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय में श्री राम और उनके रामराज्य को कपोल कल्पित होने का शपथ पत्र दिया।

गीता का उपदेश देते श्री कृष्ण जी

श्री कृष्ण जी का गीतोपदेश राष्ट्र समाज या संस्थानों के प्रबंधन तंत्र का सार तत्व है। यदि इसकी शिक्षाओं को आधार बनाकर राष्ट्र ,समाज और संस्थानों का प्रबंधन किया जाए तो सर्वत्र धर्म की अर्थात नैतिकता और न्याय की स्थापना करने में सफलता प्राप्त हो सकती है। गीता व्यष्टि निर्माण से समष्टि की ओर चलने का संदेश देती है। यह स्पष्ट करती है कि व्यक्ति को यदि सुधार दिया जाए तो राष्ट्र, समाज और संस्थान अपने आप सुधर जाएंगे। राष्ट्र ,समाज और संस्थान के सुधार के लिए ही हमारे देश के संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को स्थापित किया गया है।
संविधान के अनुच्छेद 36 से 51 में जहां राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का उल्लेख किया गया है वहां पर श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को गीता का उपदेश देने वाला चित्र भी दिया गया है। जिसके माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि जहां श्री कृष्ण जी जैसा नीति निर्धारक महामानव योगीराज उपस्थित हो और जहां उसका पालन करने वाला पार्थ जैसा निपुण योद्धा उपस्थित हो वहां विजय निश्चित है। यह चित्र ब्रह्म शक्ति और क्षात्र शक्ति के बीच पूर्ण समन्वय का प्रतीक चित्र है। यह स्पष्ट करता है कि राष्ट्र, समाज और संस्थान के कुशल संचालन और प्रबंधन के लिए शस्त्र और शास्त्र का समन्वय बहुत आवश्यक है।

सिद्धार्थ के वैराग्य का चित्र

अनुच्छेद 52 से 151 के बीच का विषय संघ से संबंधित है। यहां पर सिद्धार्थ के वैराग्य से गौतम बुद्ध के देशाटन तक के चित्रों को प्रकट किया गया है। भाव यह है कि समरस होकर एकाग्र मन से गौतम बुद्ध का संदेश सुनने वाले ज्ञान पिपासु अनुयायी ही समुचित नीति निर्धारण कर उसका पालन करने तथा न्याय करने में सक्षम होंगे। स्पष्ट है कि भ्रष्ट और देश को लूटने वाले लोगों को संघ ना तो प्रमुखता देगा और ना ही उन्हें देश के लिए काम करने की अनुमति देगा। संघ उन लोगों को देश व समाज के लिए उपयुक्त और आवश्यक मानेगा जो वैराग्य भाव से संसार को भोगते हैं और संसार के काम आने को अपना सौभाग्य मानते हैं। जिनकी सोच राष्ट्र, समाज और संस्थान को प्रगति देने की होती है।

महावीर स्वामी का चित्र

अनुच्छेद 152 से 237 तक राज्य के विषय को लेकर व्यवस्थाएं दी गई हैं। यहां पर महावीर स्वामी द्वारा जैन मत का प्रचार करने वाला चित्र अंकित किया गया है। ज्ञात रहे कि महावीर स्वामी जी ने कई वैदिक सिद्धांतों को लेकर अपने समय में वैदिक धर्म की रक्षा की थी उन्होंने वैदिक धर्म की मान्यताओं को लेकर समाज को सुधारने का सार्थक प्रयास किया। यह अलग बात है कि उनके अनुयायियों ने उनकी शिक्षाओं का गलत ढंग से प्रचार प्रसार किया और जैन समाज को भारत के सत्य सनातन वैदिक समाज से थोड़ा अलग करके दिखाने का कार्य किया।
इस चित्र में शांत भगवान महावीर तथा आनंद विभोर मयूर यह स्पष्ट कर रहा है कि हर परिवर्तन आनंददायक बने सर्व स्वीकृत हो, सर्वमान्य बने। कहने का अभिप्राय है कि एक ऐसी आनंददायक क्रांति की परिकल्पना इस चित्र के माध्यम से स्पष्ट की गई है जो हर युग में हर व्यक्ति के लिए आनंद की वर्षा करने वाली हो और उस परिवर्तन को या क्रांति को समाज का हर वर्ग अपनी स्वीकृति प्रदान करे।

मौर्य काल की संपन्नता

अनुच्छेद 238 में मौर्य काल की निर्भयता व संपन्नता को स्पष्ट करने वाला चित्र दिया गया है । हम सभी जानते हैं कि मौर्य काल के शासको ने भारत की एकता और अखंडता के लिए कार्य किया। उन्होंने भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए भी अपने आप को समर्पित किया। इस चित्र के मध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि भय और विकार से मुक्त समाज के स्वरूप को राज्य अपना लक्ष्य मानकर चलेगा। किसी भी वर्ग या समुदाय को राज्य अपना संरक्षण प्रदान करेगा और उनके बीच मानवतावादी समरसता को स्थापित करने के प्रति भी गंभीर रहेगा। समाज के किसी भी व्यक्ति को भय और विकार से मुक्त रखना राज्य का प्रमुख कार्य होगा। राज्य का हर संभव प्रयास होगा कि देश के नागरिकों के मध्य भाईचारे भाव विकसित हो। जिस प्रकार सम्राट अशोक ने अपने समय में लोगों के भय और विकार का हनन करने में सफलता प्राप्त की थी, उसी प्रकार आज भी राज्य इसी प्रकार के लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ेगा। स्पष्ट है कि राज्य के द्वारा ऐसा गंभीर प्रयास भारत के सत्य सनातन वैदिक धर्म के सिद्धांतों को अपनाकर और शिक्षा संस्थानों में लागू करके ही किया जा सकता है।

कुबेर की छलांग वाला चित्र

संघ राज्य क्षेत्रों का प्रशासन भारत के संविधान के अनुच्छेद 239 – 242 में स्पष्ट किया गया है। यहां पर संपन्नता के लिए कुबेर की छलांग वाला चित्र स्थापित किया गया है। कुबेर को भारतीय संस्कृति में राष्ट्र की संपन्नता और आर्थिक समृद्धि का प्रतीक माना गया है। इस चित्र के द्वारा भी यही संकेत और संदेश दिया गया है कि राज्य राष्ट्र की संपन्नता और आर्थिक समृद्धि के लिए कार्य करेगा और प्रत्येक नागरिक को आर्थिक रूप से समृद्ध और संपन्न बनाने को अपना राष्ट्र धर्म मानेगा। प्रत्येक नागरिक की संपन्नता के लिए आर्थिक क्षेत्र में सूझबूझ के साथ कदम उठाए जाएंगे तो देश का सर्वांगीण विकास संभव हो पाएगा, ऐसा संदेश और संकेत इस चित्र के माध्यम से दिया गया है। कहने का अभिप्राय है कि संपन्नता के लिए और प्रत्येक नागरिक की समृद्धि के लिए राज्य किसी भी प्रकार की असावधानी नहीं करेगा।
क्रमशः

डॉ राकेश कुमार आर्य

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