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इतिहास के पन्नों से

जब मुहम्मद ने कबूला कि मैं रसूलल्लाह नहीं !

हमने पिछले लेख में बताया कि इस्लाम के कलमा के दो हिस्से है , उसका दूसरा भाग ” मुहम्मदुर्रसूलल्लाह ” है इसका अर्थ है मुहम्मद अल्लाह का रसूल “आज सारी दुनिया के लोग जान चुके हैं कि इस दो टुकड़ों से बने कलमा के कारण जबसे इस्लाम बना मुस्लमान तब से आज तक अत्याचार ,आतंक , और उन सभी लोगों की हत्याएं करते आये है , जिन्होंने इस कलमा को पढ़ने से इंकार किया था ,यह कलमा कितना महत्त्व हीन है इसका अनुमान लोग खुद कर सकते है , कुरान में कुल 6666 आयतें हैं और जो 114 सूरा यानि अध्याय में विभक्त है , और कलमा का दूसरा भाग 111 सूरा में आधी आयत में मौजूद है , फिर भी इस आधी आयत को पढ़वाने के लिए मुसलमान शाशक फर्रुखसियर ने गुरुगोविंद सिंह के दो छोटे पुत्रों को दीवार में जिन्दा चिनवा दिया था , इसी तरह सूफी सरमद ने जब कलमा पढ़ने से इंकार किया तो औरगजेब ने उसकी खाल उतरवा दी थी ,सभी जानते हैं की मुहम्मद का एक ही उद्देश्य विश्व पर राज करना था , और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह हथकंडे अपनाया करते थे , और अगर कोई आपको बताये कि लोगों के दवाव से डर एकबार खुद मुहमद ने कबूला था कि वह अल्लाह का रसूल नहीं है , ,मुहम्मद ने यह भी स्वीकार किया की अल्लाह ” रहमान ” और ” रहीम ” भी नहीं है अर्थात यह सब झूठ है ,इसका प्रमाण इस्लामी इतिहास में मौजूद है , जो इस प्रकार है
1-मुहम्मद का मक्का से पलायन
मुहम्मद के कबीले का नाम कुरैश था , यह लोग मूर्तिपूजक थे ,इन के मुख्य देवता का नाम इलाह (चंद्रदेव ) था ,लेकिन यह लोग यहुदियों और ईसाई धर्म पर भी विश्वास रखते थे , इसके कारण काबा में इस्माइल और मरियम की भी मूर्तियां रखी थी , इसके आलावा कुरैश के लोग यहूदी और ईसाई नबियों पर आस्था रखते , पूरे अरब में नबियों के चमत्कारों की कथाएं प्रचलित थीं ,
लेकिन जब मुहम्मद ने कुरैश के देवताओं की निंदा करना और खुद को नबी बताना शुरू कर दिया तो कुरैश के लोग मुहम्मद की हत्या करने पर उतारू हो गए , क्योंकि वह जानते थे कि यह व्यक्ति कोई नबी नहीं झूठा , पाखंडी और धोखेबाज है ,और अगर इसको नहीं मारा गया तो यह धूर्त हमारे धर्म को नष्ट कर देगा ,और जब मुहम्मद को यह बात पता चली तो वह सन 615 ईस्वी यानी 7 हिजरी पूर्व रातों रात अपनी पत्नियों और अपने कुछ खास सहबियों के साथ “इथोपिया( Abyssinia ) भाग गए ,इथोपिया को अरबी में ” अल हबश – الحبشة‎ ” कहते हैं , और मुहम्मद यह पहली हिजरत थी ,जिसे “हिजरतुल इला हबशह – الهجرة إلى الحبشة‎ ” कहा जाता है .उस समय इथोपिया में ईसाई राजा “अश्मा इब्न अब्जार (Ashama ibn Abjar ) का राज्य था , अरब के लोग उसे ” नज्जाशी – نجاشي‎ ” भी कहते थे.उसने मुहम्मद के साथियों और परिवार के लोगों को शरण दे दी लेकिन इथोपिया में रहकर भी मुहम्मद का ध्यान मक्का में लगा रहता था। वह अक्सर अपने किसी दूत को मक्का भेज कर कुरैश के साथ कोई समझौता करने का सन्देश भेजते रहते थे. और जब कुछ समय बाद जब मुहम्मद ने कुरैश के लोगों से हज के लये मक्का आने का अनुरोध किया तो कुरैश केलोगों ने कुछ शर्तों के साथ मक्का में रहने की अनुमति दे दी
2-हुदैबिया की संधि
(The Treaty of Hudaybiyyah )
इस संधि को “सुलह अल हुदैबियह – صلح الحديبية ” कहा जाता है मक्का से कुछ दूर हुदैबिया नामका गाँव था , संधि मार्च 628 ईस्वी ( Dhu al-Qi’dah, 6 AH )को हुई थी ,एक पक्ष में मुहम्मद और मदीना निवासी उनके सहाबा थे ,तो दूसरे पक्ष में मक्का के कुरैश लोग थे , यह समझौता दस साल के लिए था ,
समझौते का प्रारूप तैयार करते समय मुहम्मद और सुहैल इब्न अम्र के बीच जो बहस हुई थी ,वह अंग्रेजी साईट में नहीं मिलती ,लेकिन अरबी में सर्च करने से मिल जाती है , मुहम्मद की तरफ से अली इब्न अबी तालिब थे इनके बिच जो बात हुई वह हम अरबी मुख्य वाक्य और उसका हिंदी लिपि के साथ अर्थ भी दे रहे हैं
3-कुरैश की आपत्तियां मुहम्मद का जवाब
आम तौर पर देखा गया है कि जब दो गुटों में किसी मुद्दे पर सुलह या समझौता कराया जाता है तो हरेक पक्ष अपनी अपनी बात को मनवाने की कोशिश करता है , फिर चर्चा में कोई बात मान ली जाती है , और कोई अस्वीकृत की जाती है , ऐसे ही हुदैबिया की सुलह के समय मुहम्मद ने भरसक कोशिश की , की कुरैश सुलह का वैसा ही मसौदा मान लें जैसा मुहम्मद चाहते थे , लेकिन कुरैश ने मुहम्मद की एक भी बात नहीं मानी , उलटे खुद मुहम्मद को कुरैश की बात माननी पड़ी .इस चर्चा में अरबी के कुल 9 वाक्य हैं ,पहले जिन्हें देवनागरी लिपि में दिया गया है , फिर हिंदी और अंगरेजी अनुवाद दिया गया है , ताकि किसी प्रकार की शंका की कोई गुंजायश नहीं रहे
فلما اتفق الطرفان على الصلح دعا رسول الله علي بن أبي طالب فقال له:-
(फ़लम्मा इत्तफक तऱफान अलल सुलह दआ रसूल अल्लाह अली इब्न अबी तालिब फ काल लहु )-1
अर्थ -जब दौनों पक्षों के बीच मुद्दे तय हो गए तो लिखने के लिए रसूल ने अली बिन अबीतालिब को बुलाया
Prophet said, “Now the matter has become easy,So, the Prophet called the Ali and said to him
” اكتب: بسم الله الرحمن الرحيم
(इकतब : बिस्मिल्लाह रहमानिर्रहीम )-2
अर्थ -कहा लिखो बिस्मिल्लाह रहमानिर्रहीम
, “Write: By the Name of Allah, the most Beneficent, the most Merciful.
فقال سهيل: أما الرحمن، فما أدري ما هو؟
(फ काल सुहैल :मा रहमान ?फ मा दरी मा हुव )-3
अर्थ -सुहैल बोला रहमान क्या होता है ?वह कौन है ?
Suhail said, “, I do not know what it means.
ولكن اكتب: باسمك اللهم كما كنت تكتب.
(व् लाकिन अक्तब :बिस्मिक अल्लाहुम्म कमा कुन्त कतब )-4
अर्थ -सुहैल बोला लिखो बिस्मिक अल्लाहुम ,जैसे पहले लिखा करते थे
So write: By Your Name O Allah, as you used to write previously
فقال المسلمون: والله لا نكتبها إلا بسم الله الرحمن الرحيم
(फ काल मुस्लिमून :वल्लाह ला नकतब हा इल्ला बिस्मिल्लाह रहमानिर्रहीम )-5
अर्थ -तब मुसलमानों ने विरोध किया बोले बिस्मिल्लाह रहमानिर्रहीम क्यों नहीं लिखा गया ?
The Muslims said, “By Allah, we will not write except: By the Name of Allah, the most Beneficent, the most Merciful.”
فقال: ” اكتب: باسمك اللهم ”
(फ काल : इकतब बिस्मिक अल्लाहुम्म )-6
अर्थ -रसूल बोले – बिस्मिक अल्लाहुम्म ही लिखो
Write: By Your Name O Allah.”
ثم قال: ” اكتب: هذا ما قاضى عليه محمد رسول الله ”
(सुम्म काल :इकतब हाजा मा काजी अलैह मुहम्मद रसूलल्लाह )-7
अर्थ -फिर जब लिखने लगे की यह मुहम्मद रसूल्ललाह पर लागू होगा
This is the peace treaty which Muhammad, Allah’s Apostle
فقال سهيل: والله لو نعلم أنك رسول الله ما صددناك عن البيت، ولكن اكتب محمد بن عبد الله
(फ़ काल सुहैल :वल्लाह नअ लम इन्नक रसूलल्लाह मा सददनाक अनिल बैत ,व लकीन इकतब मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह )-8
अर्थ -तब सुहैल बोला हमें मालूम है कि तू अल्लाह का रसूल नहीं , यदि होता तो हम तुझे काबा में आने से नहीं रोकते ,इसलिए लिखो मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह
if we knew that you are Allah’s Apostle we would not prevent you from visiting the Kaba,
فقال: ” إني رسول الله، وإن كذبتموني اكتب محمد بن عبد الله “.
(फ काल : इन्नी रसूलल्लाह व् इन कजबतमूनी इकतब मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह )-9
अर्थ -मुहम्मद बोले , मैं तुम लोगों को झूठ नहीं बोल सकता इसलिए लिखो मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह
even if you people do not believe me. Write (uktub) : Muhammad bin Abdullah.”
4-निष्कर्ष
हमारे विद्वान् पाठक अगर यहाँ दी गयी मुहम्मद और कुरैश की बातों को ध्यान से पढ़ें तो साफ़ पता चल जायेगा कि कुरैश के आगे मुहम्मद ने दो बातें कबूल की थीं ,जो इस प्रकार हैं ,
1 -अल्लाह रहमान रहीम नहीं है
क्योंकि जब मुहम्मद ने सुलहनामे में रहमान रहीम लिखवाना चाहा तो कुरैश ने आपत्ति की , और मुहम्मद ने खुद अली को बिस्मिल्लाह रहमान अर्रहीम की जगह बिस्मिक अल्लाहुम्म लिखने का आदेश दिया यानि मुहम्मद मुहम्मद ने मान लिया की अल्लाह रहमान रहीम नहीं है
2.मुहम्मद अल्लाह का रसूल नहीं है
इसी तरह जब मुहम्मद ने अपने नाम की जगह मुहम्मद रसूलल्लाह लिखवाना चाहा तो भी कुरैश आपत्ति की ,और कहा की हम लोग जानते हैं कि तुम झूठे हो , और अपनी पोल खुल जाने के डर से मुहम्मद तुरंत अपना असली नाम लिखवाने पर राजी हो गए यानि परोक्ष रूप से स्वीकार कर लिया की वह अल्लाह का रसूल नहीं अब्दुल्लाह का बेटा है
5-मुहम्मद की रसूलियत का भंड़ाफोड़
कुरैश के लोगों ने मुहम्मद को रसूल मांनने से इंकार इसलिए किया ,क्योंकि वह मुहम्मद को और उसकी हरकतों से अच्छी तरह जानते थे , की इसका उद्देश्य खुद को अल्लाह के समकक्ष साबित करके अपना राज्य स्थापित करना है , और इसके साथी लुटेरे , और औरतबाज है , इसके अलावा कुरैश में ऐसे भी लोग थे जिन्हें तौरेत और इंजील का ज्ञान था , अल्लाह की इन किताबों में रसूल शब्द कहीं नहीं मिलता , इनमे जगह जगह नबी शब्द आया है , नबी उन लोगों को कहा जाता था जो भविष्यवाणियां (Prophecy ) किया करते थे , रसूल किस चिड़िया का नाम होता है इस्लाम से पहले अरब में कोई नहीं जनता था ,वास्तव में रसूल शब्द अरबी नहीं ,बल्कि इथोपियन भाषा से लिया गया , जो इस्लाम के आने के कुछ साल बाद अरबी शामिल कर लिया गया ,
क्योंकि जब मुहम्मद इथओपिया गए तो उन्होंने वहां के राजा नज्जाशी की राज व्यवस्था का पता किया ,राजा अपने अधीन छोटे राज्यों से संपर्क करने हेतु अपने दूत भेजता रहता था , जो राजा का आदेश अधिकारीयों को बताता रहता था , इथोपिया की भाषा ” अहारामी ( Amharic ) ऐसे लोगों को रसूल “प्रवक्ता (spokeksman)कहा जाता था , जो अहारामी शब्द ” (ራስ रसु ड़ – *raʾڑ ” से बना है , चूँकि अरबी में ” ड़ ” ध्वनि नहीं है ,इसलिए अरब लोगों ने इसे “रसुल ” कहना शुरू कर दिया जो रसूल बन गया मुस्लमान इसका अर्थ सन्देश वाहक Messanger करते हैं .जबकि सारे मुस्लमान मानते हैं कि अल्लाह का सन्देश यानी कुरान लाने वाला जिब्राईल नामका फरिश्ता था , और 24 साल तक यही काम करता रहा,यही कारन है कि जब कुरान की 114 सूरा में 111 पूरी हो चुकीं तो आखरी समय मुहम्मद ने कुरान में” मुहम्मद रसूलल्लाह ” शब्द जोड़ दिया , इसके पहले कुरान की किसी सूरा या आयत में मुहम्मद को अल्लाह का रसूल नहीं कहा गया ,
और जब अल्लाह का रसूल झूठा है , तो इस्लाम सच्चा कैसे हो सकता है ?
Ref- Sahih Muslim » The Book of Jihad and Expeditions »
34)Chapter: The truce of Al-Hudaybiyah
34)باب صُلْحِ الْحُدَيْبِيَةِ فِي الْحُدَيْبِيَةِ
It has been narrated on the authority of Anas that the Quraish made peace with the Prophet (ﷺ). Among them was Suhail b. Amr. The Prophet (ﷺ) said to ‘Ali:
Write” In the name of Allah, most Gracious and most Merciful.” Suhail said: As for” Bismillah,” we do not know what is meant by” Bismillah-ir-Rahman-ir-Rahim” (In the name of Allah most Gracious and most Merciful). But write what we understand, i. e. Bi ismika allahumma (in thy name. O Allah). Then, the Prophet (ﷺ) said: Write:” From Muhammad, the Messenger of Allah.” They said: If we knew that thou welt the Messenger of Allah, we would follow you. Therefore, write your name and the name of your father. So the Prophet (ﷺ) said: Write” From Muhammad b. ‘Abdullah.” They laid the condition on the Prophet (ﷺ) that anyone who joined them from the Muslims, the Meccans would not return him, and anyone who joined you (the Muslims) from them, you would send him back to them. The Companions said: Messenger of Allah, should we write this? He said: Yes. One who goes away from us to join them-may Allah keep him away! and one who comes to join us from them (and is sent back) Allah will provide him relief and a way of escape.
https://sunnah.com/muslim/32
Reference : Sahih Muslim 1784
In-book reference : Book 32, Hadith 114
USC-MSA web (English) reference : Book 19, Hadith 4404
(398)

बृजनंदन शर्मा

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