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इतिहास के पन्नों से

भारत की स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने, भाग 1

क़ुतुबमीनार : हिंदू स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना

1974 में ‘वराह मिहिर स्मृति ग्रंथ’ के संपादक श्री केदारनाथ प्रभाकर ने इस स्तम्भ के बारे में विशेष तथ्यों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस स्तम्भ का निर्माण मेरु पर्वत की आकृति के आधार पर किया गया है। जिस प्रकार मेरु पर्वत का स्वरूप ऊपर की तरफ पतला होता गया है , उसी प्रकार इस स्तम्भ का भी स्वरूप ऊपर जाकर पतला होता जाता है। उन्होंने बताया कि मेरु पर्वत का व्यास 16000 योजन है तो इस वेधशाला के निर्माण करने वाले ने इसको 16 गज व्यास के आधार पर निर्माण कराया अर्थात एक हजार योजन बराबर 1 गज माना गया। सम्राट चंद्रगुप्त के नौ रत्नों में से एक थे महान गणितज्ञ वराह मिहिर । जिनकी यह अनुपम कृति उनकी यशोगाथा को बताने के लिए पर्याप्त है।

ताजमहल था कभी तेजोमहालय मंदिर

सर्वप्रथम ‘शाहजहांनामा’ (शाहजहां की आत्मकथा) इसका एक प्रमाण देता है। इस आत्मकथा के पृष्ठ 403 पर लिखा है कि (यह मंदिर भवन) महानगर के दक्षिण में भव्य, सुंदर हरित उद्यान से घिरा हुआ है। जिसका केन्द्रीय भवन जो राजा मानसिंह के प्रासाद (इसका अभिप्राय है कि शाहजहां से भी पूर्व से यह राजभवन था, जिसका वह भाग जहां मुमताज की कब्र है, केन्द्रीय भाग कहलाता था) के नाम से जाना जाता था, अब राजा राजा जयसिंह जो राजा मानसिंह का पौत्र था, के अधिकार में था। इसे बेगम को दफनाने केे लिए जो स्वर्ग जा चुकी थी, चुना गया।

लाल किले का निर्माता था राजा अनंगपाल

दिल्ली के वर्तमान लालकिले को 1638 ईस्वी में दिल्ली के तत्कालीन मुगल बादशाह शाहजहां द्वारा निर्मित किए जाने का झूठ इतिहास में पढ़ाया जाता रहा है । जबकि उसके सैकड़ों वर्ष पूर्व लालकिले का अस्तित्व था । स्पष्ट है कि इस मुगल बादशाह ने हिंदू राजा रहे अनंगपाल सिंह तोमर द्वितीय के द्वारा निर्मित लालकोट को ही कुछ नया स्वरूप देकर कब्जाने का प्रयास किया था। उसी का नाम लालकोट के स्थान पर लालकिला कर दिया गया।

आगरा का लाल किला था कभी बादल गढ़

महाराष्ट्रीय ज्ञानकोश के अनुसार आगरा का प्राचीन नाम यमप्रस्थ था। महाभारत काल में जिन 12 वनों का हमने संकेत किया है, उनमें से एक लोहितजंघवण भी था। बहुत संभव है कि वह लोहितजंघवण यहां ही रहा हो और उसी से इस किले का नाम लालकिला रूढ़ हो गया हो। जब बाबर यहां 1526 में आया तो वह भी बादलगढ़ में ही रूका था। भारत सरकार ने भी अब यह स्पष्ट कर दिया है कि परंपरा घोषित करती है कि बादलगढ़ का पुराना किला जो संभवत: प्राचीन तोमर या चौहानों का प्रबल केन्द्र था अकबर द्वारा रूप परिवर्तन किया गया था। जहांगीर ने कहा है कि उसके पिता ने यमुना के तट पर बने एक किले को भूमिसात किया था और उसके स्थान पर एक नया किला बनवाया था

मुरैना के 64 योगिनी मंदिर की उत्कृष्ट निर्माण शैली

मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के एक छोटे से गांव में मिले इन मंदिरों को 64 योगिनी मंदिर के नाम से जाना जाता है । वास्तव में इन्हीं चौसठ योगिनी मंदिरों के आधार पर हमारे देश की वर्तमान संसद का नक्शा बनाया गया था। भवन का डिजाइन मध्य प्रदेश में स्थित मुरैना जिले के एक छोटे से गांव में बने बहुत पुराने मंदिर से लिया था। इस मंदिर का नाम मितावली – पड़ावली का चौसठ योगिनी मंदिर है। कई रिपोर्ट्स में इस बात का उल्लेख है कि इसे संयोग कहें या सच कहें, ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस ने इस मंदिर को आधार मानकर ही संसद भवन का निर्माण कराया था। हालांकि कभी इस बारे में कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है। लेकिन यह मंदिर अंदर और बाहर दोनों से संसद से मिलता-जुलता है।

अंग्रेजों ने संसद भवन को अपने मस्तिष्क से नहीं बनाया था

हमारे देश के वर्तमान संसद भवन को अब से लगभग 100 वर्ष पहले अर्थात 1920 – 21 के लगभग अंग्रेजों ने 8300000 रुपए में बनवाया था। ऐसा माना जाता है कि अंग्रेजों ने संसद भवन का डिजाइन मध्य प्रदेश में स्थित मुरैना जिले के एक छोटे से गांव में बने हुए बहुत पुराने मंदिर से लिया था। इस मंदिर का नाम मितावली पडावली का चौसठ योगिनी मंदिर है। इसके विपरीत देशवासियों को यह झूठ प्रस्तुत किया गया है कि अंग्रेज बहुत अधिक बुद्धिमान थे और उन्होंने भारतवर्ष में जो भी भवन निर्माण किए कराए, यह सब उनके अपने मस्तिष्क की उपज थे। इसके साथ ही यह भी कह दिया जाता है कि भारतवासियों को पढ़ना लिखना रहना सहना सब अंग्रेजों ने सिखाया। इन मंदिरों को देखकर इस भ्रांति का स्वयं ही निवारण हो जाता है।

बटेश्वर के मंदिर देते हैं ताजमहल को भी मात

बटेश्वर के मंदिर समूह को देखने से पता चलता है कि इनको बनाने में आगरा के ताजमहल से भी अधिक परिश्रम किया गया है। इसके उपरांत भी इनको प्रकाश में नहीं लाया गया। इसका कारण केवल एक है कि यह मंदिर समूह पूर्णतया हिंदू स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूने है, जबकि आगरा के ताजमहल को कथित रूप से शाहजहां के नाम कर दिया गया है।उसका निर्माता शाहजहां को दिखाकर धर्मनिरपेक्षता के नाम पर शाहजहां और उसके ताजमहल को अतिरंजित ढंग से प्रचारित करके और इस मंदिर समूह जैसे अनेक हिंदू भवनों की उपेक्षा कर हिंदू इतिहास को विकृत करने का घृणास्पद कार्य भारतवर्ष में किया गया है।

कुंभलगढ़ किले की विशेषता

राजस्थान के राजसमंद में स्तिथ कुम्भलगढ़ किले का निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया था। इस किले की दो विशेषताएं हैं- पहली इस किले की दीवार विश्व की दूसरी सबसे बड़ी दीवार है जो कि 36 किलोमीटर लम्बी है तथा 15 फीट चौड़ी है, इतनी चौड़ी कि इस पर एक साथ पांच घोड़े दौड़ सकते हैं। दूसरी विशेषता है कि इस दुर्ग के भीतर 360 से अधिक मंदिर हैं जिनमें से 300 प्राचीन जैन मंदिर और शेष हिंदू मंदिर हैं। यह एक अभेध किला है, जिसे शत्रु कभी अपने बल पर नहीं जीत पाया। इस किले की ऊंचे जगहों पर महल, मंदिर और रहने के लिए अनेक भवन बनवाए गए। यहां समतल भूमि का उपयोग कृषि के लिए किया गया वहीं ढलान वाले भागों का उपयोग जलाशयों के लिए करके इस दुर्ग को पूर्णतया सक्षम बना गया।

डॉ राकेश कुमार आर्य

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