कैसे शिक्षा पुरानी भुलाई गई।।टेक।।

गर्भ से अन्त्येष्टि तक संस्कार करते थे।
पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य से प्यार करते थे।
गुरुकुल में पढ़ते थे इकरार करते थे।
गृहस्थी वेद विद्यालयों का उद्धार करते थे।
जो भी जिस प्रकार गृहस्थी धन कमाते थे।
नियम से दशमांश गुरुकुल में पहंुचाते थे।
इसलिये निःशुल्क गुरुकुल में पढ़ाते थे।
ब्रह्मचारिणी ब्रह्मचारी जीवन बनाते थे।
आज विषयों में जिन्दगी गंवाई गई।।1।।

गृहस्थी हवन सन्ध्या सदा पुण्य दान करते थे।
वेद के विद्वान का सन्मान करते थे।
सत्यासत्य की बुद्धि से पहिचान करते थे।
प्रातः सायं नित्य प्रभु का ध्यान करते थे।
गृहस्थ बना व्यभिचार का भण्डार आजकल।
विषय चक्की में पिस रहे नर नार आज कल।
हर प्रकार के फैशन हैं शृंगार आज कल।
युवक युवती हैं विषयों के बीमार आजकल।
ब्रह्मचर्य की शक्ति लुटाई गई।।2।।

वानप्रस्थी वन में जा निवास करते थे।
अपाम समीपे योग का अभ्यास करते थे।
ईश्वर को मन मन्दिर में तल्लाश करते थे।
वेद मंत्रों का अर्थ प्रकाश करते थे।
साधु पीवें सुल्फा चरस भांग आज कल।
गोली गण्डे दे और खावें मांग आज कल।
गृहस्थी देखने लगे सिनेमे सांग आज कल।
इसीलिये मुँह पिचके सूखी टांग आज कल।
बत्ती बिन तेल सूखी जलाई गई।।3।।

संन्यासी ही वेद का उपदेश करते थे।
छल कपट तज कर सच्चाई पेश करते थे।
गृहस्थियों के सारे दूर क्लेश करते थे।
गृहस्थियों से कार्य तीन विशेष करते थे।
बने साधुओं के ही हजारों पंथ आज कल।
सत्यासत्य गए भूल पंथ में संत आज कल।
सुरा सुन्दरी सेवन करे महन्त आज कल।
वर्ण आश्रमों का किया है अन्त आज कल।
भीष्म चक्कर पे दुनिया चढ़ाई गई।।4।।

शांतिधर्मी फरवरी 2013 अंक में प्रकाशित

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