ईश्वर के वेदोक्त सच्चे स्वरूप की उपासना

“अपने जीवन को सुंदर और सुखमय कौन नहीं बनाना चाहता? सभी चाहते हैं। परंतु उस की विधि ठीक प्रकार से नहीं जानते।”
वेदों के आधार पर ऋषियों ने इस विधि को अपने शास्त्रों में विस्तार से समझाया है। उनका संदेश इस प्रकार से है, कि “यदि आप अपने जीवन को सुंदर एवं सुखमय बनाना चाहते हैं, तो आपको ईश्वर के वेदोक्त सच्चे स्वरूप की उपासना करनी चाहिए। संसार में सबसे अधिक लाभकारी कार्य ईश्वर के वेदोक्त सच्चे स्वरूप की उपासना करना है।”
आप सोचेंगे, “क्या ईश्वर का स्वरूप भी सच्चा और झूठा दो प्रकार का होता है।” जी हां। जैसे “बाजार में घी तेल आदि वस्तुएं मिलती हैं । वे असली अर्थात शुद्ध भी मिलती हैं, और मिलावटी /अशुद्ध भी।” “इसी प्रकार से आजकल संसार में दो प्रकार का ईश्वर का स्वरूप बताया जाता है।” “एक – ईश्वर का वास्तविक स्वरूप, जिसका उल्लेख वेदो में हैं, और ऋषियों के शास्त्रों में है। और दूसरा – ईश्वर का मिलावटी स्वरूप, जिसका उल्लेख अवैदिक शास्त्रों में है। वह उल्लेख मिलावटी अर्थात पूरा शुद्ध नहीं है, उसमें कुछ सच्चाई है, और कुछ झूठ भी मिला रखा है।”
“जैसे शुद्ध भोजन खाने पर आपको जितना लाभ होता है, और जितनी शक्ति मिलती है, मिलावटी भोजन खाने पर आपको उतना लाभ नहीं होता, और उतनी शक्ति भी नहीं मिलती।” इसी प्रकार से “ईश्वर के शुद्ध असली सच्चे स्वरूप की उपासना करने से जो लाभ होता है, और जितनी शक्ति मिलती है, उतना लाभ और शक्ति ईश्वर के मिलावटी स्वरूप की उपासना करने से नहीं मिलती।” “यदि लोग ईश्वर के वेदोक्त सच्चे स्वरूप की उपासना करते होते, तो आज हमारा देश भारत, संसार में सबसे आगे होता, विश्वगुरु होता, जैसा कि भूतकाल में था। आज भी यदि लोग ईश्वर के वेदोक्त सच्चे स्वरूप की उपासना करें, और वेदों के अनुसार शुभ कर्मों का आचरण करें, तो भारत फिर से विश्वगुरु आज भी बन सकता है।”
इसलिए ऋषियों ने यह समझाया, “जैसे वृक्ष की जड़ों में पानी डालने से उसका लाभ पूरे वृक्ष को ऊपर वृक्ष की चोटी तक मिलता है। इसी प्रकार से ईश्वर के वेदोक्त सच्चे स्वरूप की उपासना करने से, आत्मा मन बुद्धि इंद्रियां शरीर आदि सबको बहुत शक्ति मिलती है, और व्यक्ति का पूरा जीवन सुंदर एवं सुखमय बन जाता है।”
“इसलिए वेदों और ऋषियों के शास्त्रों का अध्ययन करें। ईश्वर के वेदोक्त सच्चे स्वरूप की उपासना करें। शुभ कर्मों का आचरण करें। जिससे कि आपका जीवन सुंदर एवं सुखमय बन जाए।”
—- “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक – दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात.”

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