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इतिहास के पन्नों से

देश के मध्यकालीन इतिहास में खाप पंचायतों का स्वाधीनता आंदोलन भाग 3

महमूद गजनवी के साथ पंचायती युद्ध

महमूद गजनवी के साथ पंचायती युद्ध के संबंध में ‘सर्वखाप पंचायत का राष्ट्रीय पराक्रम’ नामक उपरोक्त पुस्तक के पृष्ठ संख्या 101 पर लिखा है कि देश के वीरों ने तन – मन – धन सर्वस्व लगाकर महमूद गजनवी से भारी टक्कर ली। गजनवी के 80000 लश्कर को मारकर देश का माथा ऊंचा किया। पंचायत का इतिहास इस बात को सिद्ध करता है कि पंचायत संगठन ने देशहित पर सदा बलिदान दिया है। वीर पुरुष और वीर देवियां सदा युद्ध में लगे रहे और मुसलमानी राज्य की जड़ों को दृढ़ नहीं होने दिया। यदि राज वर्ग भी साथ देता और कुप्रथाओं का जोर न होता तो भारत देश सैकड़ों वर्ष पराधीन न होता।

शाहबुद्दीन गौरी के विरुद्ध पंचायत का राष्ट्रीय पराक्रम

शाहबुद्दीन गौरी ने दिल्ली पर कई बार आक्रमण किया। उस समय भारत का राजनीतिक नेतृत्व पृथ्वीराज चौहान जैसे वीर शासक के हाथों में था। पृथ्वीराज चौहान के कितने ही सरदार और सैनिक युद्ध की भेंट चढ़ चुके थे । उस समय पृथ्वीराज चौहान के पास अपनी 50000 की सेना थी। पृथ्वीराज चौहान के बहनोई समर सिंह ने चित्तौड़ से 12000 की सेना लाकर पृथ्वीराज चौहान की सेना के साथ मिला दी थी । उस समय देश को शत्रुओं से बचाने के लिए पंचायत ने भी 18000 मल्ल सेना में दिए थे। इस प्रकार कुल 80 हजार की सेना तैयार हुई। उस समय यदि कुछ देशघाती,नीच, द्रोही लोग शाहबुद्दीन गोरी से ना मिलते तो युद्ध के परिणाम दूसरे होते। राणा समर सिंह और पंचायती सेना के 30000 जवानों ने उस समय मोर्चा लिया था। प्राण रहते शत्रु को एक इंच भी आगे नहीं बढ़ने दिया था । पंचायती सेना का प्रधान सेनापति योद्धा सागर सिंह रोड था। इसके अतिरिक्त 3 जाट ,5 गुर्जर, 4 अहीर , 3 राजपूत, 2 सैनी, 4 ब्राह्मण सहायक सेनापति थे।
जब 30000 की सेना बलि चढ़ गई तब पृथ्वीराज की 50000 की सेना आगे बढ़ी। इस प्रकार इस सेना ने अपना बलिदान देश के लिए राजा पृथ्वीराज चौहान की सेना से पहले दिया। जब शहाबुद्दीन वापस अफगानिस्तान जा रहा था तो सिंधु नदी पर खोखर जाटों ने 25000 के जत्थे के साथ उस पर भारी आक्रमण किया। खोखरों के सेनापति अनिरुद्ध ने गौरी का सिर संवत 1262 वि0 में काटा था। आज के प्रचलित इतिहास से इस तथ्य को मिटा दिया गया है।

अलाउद्दीन खिलजी के खिलाफ पंचायत सभा

संवत 1354 विक्रमी में शिकारपुर नामक गांव में एक पंचायती सभा हुई। जिसमें उस समय के सबसे कट्टर बादशाह अलाउद्दीन खिलजी का सामना करने की रणनीति पर विचार किया गया। इस महापंचायत में 60000 जाट, 40000 गुर्जर, 38000 राजपूत, 25000 अहीर ,11000 रवे ,5000 सैनी और शेष 5000 ब्राह्मण, बनिया, भंगी और चमार इकट्ठे हुए।
खाप पंचायत में यह निर्णय लिया गया कि 18 और 40 वर्ष के बीच के सब जवान हथियार बांधेंगे। 41 वर्ष से लेकर 60 वर्ष के बीच के लोग लड़ाई के दूसरे कामों में भाग लेंगे। विवाह में सरकारी हस्तक्षेप कभी नहीं माना जाएगा । कोई जजिया कर किसी भी बादशाह को नहीं दिया जाएगा। इस पंचायत का प्रधान मस्तपाल जाट को बनाया गया। उप प्रधान मोह का सैनी था। मंत्री देवी चंद्र ब्राह्मण था। प्रधान सेनापति गंगाराम गुर्जर को बनाया गया था। उप सेनापति निराला रवा था। एक लाख मल्ल वीरों ने तलवार उठाई और अलाउद्दीन खिलजी के साथ युद्ध किया। हरफूल सिंह राजपूत की आयु और उस समय 75 वर्ष थी। मातैन भंगी की आयु 81 वर्ष थी। उन दोनों का उस समय बड़ा सम्मान किया जाता था। ये दोनों महायोद्धा उस समय वीर सैनिकों का मनोबल बढ़ाने और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण देने का काम करते थे।
अलाउद्दीन खिलजी की ओर से जफर खान 5000 की सेना लेकर आया था। पंचायत की ओर से 40000 योद्धा इकट्ठे हुए और उस समय मेरठ में हरनंदी नदी व काली नदी के संगम के पास बड़ा भारी युद्ध हुआ। शीघ्र ही मैदान पंचायत के हाथों में आ गया था। पंचायती सेना का सबसे बड़ा गुरु हरफूल सिंह राजपूत इसमें मारा गया था। कुल मिलाकर पंचायती सेना की देशभक्ति सर चढ़कर बोल रही थी।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत

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